डाॅ पवन कुमार जी के लिखल एगो भोजपुरी लहरा

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धीरे धीरे ना हो धीरे धीरे ना हो धीरे धीरे ना
बीतल जाला हो समइया भइया धीरे धीरे ना।
नव रे महीनवा गरभिया में बीतेला,
दुई चार साल दूध पीयते में बीतेला,
खेलते कुदते बीते सारी लरिकइयां भइया धीरे धीरे ना
बीतल जाला हो _______________।

चढ़ल जवानी बीते काम के अगन में,
आगे के बयस बीते दाम के लगन में,
धमके बुढ़ारी तब थकले शरीरिया भइया धीरे धीरे ना
बीतल जाला हो ________________।

एके गो जिनिगिया बा चाहे जइसे जी लऽ,
जस अपजस अपना करम से लेइ लऽ,
जइबऽ जरूर पवन छोड़ि के धरतिया भइया धीरे धीरे ना
बीतल जाला हो _________________।

—-डाॅ पवन कुमार

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