१८५७ के गदर के जनक अमर शहीद मंगल पांडे जी

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” एगो बहाना चाहत रहे , करेजा मे धधकत आगि के बहरी निकले खाति बहाना , आगि जवन कई बरिस से धधकत रहे ओह के उसुकावे खाति उटुकेरे खाति कि धधकत आगि के लहकावे खाति आ ओकरा लव मे अंग्रेज लहकि के जरि जा स ओह लहर के जगावे खाति काम कइलस बंदुख के कारतूस जवना मे चर्बी लागल रहे । ”

दुर्भाग्य बा हमनी के कि अमर शहीद मंगल पांडे के जन्म स्थान जन्म दिन आ शहादत दिवस आदि के बारे मे इतिहास लगभग चुप बा , ई त कुछ लो कोट मे गईल जांच भईल ओकरा बाद ई सत्यापित भईल कि अमर शहीद मंगल पांडे के जनम युपी के बलिया जिला के नगवा गांव मे १९ जुलाई १८२७ मे भईल रहे । बाबुजी के नाव श्री दिवाकर पांडे आ माई के नाव अभय रानी रहे , गांवे प पढाई लिखाई भईल कसरती देहि अखाडा दंगल के सवख अमर शहीद के करेजा के भी कसरती बना देले रहे ।

टांठ करेजा, छरहर कसल देहि १८ साल के होत होत जइसे कि साधारण पुरबियन के अधिकतर स्थिति रहे कमाये धमाये पुरब देस जाये के मजबुरी , अमर शहीद के एहि १९-२० बरिस के उमिर मे ईस्ट इंडिया कम्पनी ज्वाईन करे खाति मजबूर कई देहलस आ ई भारत माता के लाल १८४८-४९ मे बैरकपुर के सैनिक छावनी मे ३४ बंगाल नैटिव इंफेंट्री के पैदल सेना १४४६ नम्बर के सिपाही के रुप मे ईस्ट इंडिया कम्पनी के सिपाही बनि गइले ।

एनफील्ड पी ५३ बंदुख के कारतूस ओह लुत्ती के काम कइलस जवना के इंतेजार मे संवसे भारत रहे , असल मे ई बंदुख , ब्राउन बैस बंदूख से ढेर बरिआर सही निशाना आ ब्राउन बैस लेखा मिस फायर ना करत रहे ना एकर नाल ढेर फायरिंग प फाटत रहे , एहि से अंग्रेजन के अकुताई धईले रहे एनफिल्ड पी ५३ के मय सैनिक लो के हाथ मे देबे के , बाकि एनफील्ड पी ५३ के संगे दिक्कत ई रहे के कि एकरा मे कारतुस भरे से पहिले कारतुसवा के दांत से नोचे के परत रहे फेरु बंदूखिया मे भरे के परत रहे , करतुसवा के बहरी चरबी लगावल जात रहे जवना से उ सिले ना नमी जनि धरे आ बंदुखिया मे भरे से पहिले उहे चर्बिया के दांत से नोचे के परत रहे । जब ई बंदूख सैनिक लोगन के मिलल ओहि बीचे ई हावा फईल गईल कि कारतूस के कभर जवन दांत से नोचाता उ चरबी ह आ उ चर्बिया गाई आ सुअर के ह । बस अतना सुनते सगरे हडकम्प मचि गईल आ का हिन्दू का मुसलमान सभे मेआन से बाहर ।

मंगल पांडे भी ओहि मे एगो रहले, पहिले लोकतांत्रिक तरिका से विरोध कइले बाकि अंग्रेजी सेना जवना के नीयत ही रहे भारत के संस्कार संस्कृति के कचरल , लागल बरिआरी करे । आ इहे बरिआरी की बागी बलिया के एह सपूत के ई कुल्हि सहाईल ना , आ विरोध शुरु हो गइल ।
२९ मार्च १८५७ के अपना संग साथ जवार के सैनिक लोगन के अपना ओजस्वी भाषण से जगवले आ ओहि दिने अंग्रेजन के कैम्प प हमला भईल , भारत के जनता सोचते रहे , तबले भारत के बेटा जागि गईल रहलन स , कुछ कई गुजरे खाति, आगि लहक चुकल रहे , शुरुवात हो गईल रहे माँ भारती के बेटा अमर शहीद मंगल पांडे ललकार देले रहले । खबर अंग्रेजन तक पहुंच गइल रहे की मा भारती के सपूत चल देले बाडन स ।

मेजर हडसन अपना सैनिक के टुकडी संगे मंगल पांडे आ इनिका संघतिया लो के रोके खाति निकलले एने से मंगल पांडे आ इनिकर संघतिया , मंगल पांडे आगे बढि के मेजर हडसन के निशाना बना के गोली दागते कहि कि उनुका संग के सैनिक लो लेह लम्मी आ मेजर हडसन ओजुगे सेल्हि गइले । मेजर हडसन के मुअला के खबर जइसे अंग्रेजी सेना के हेडक्वार्टर मे गइल त लेफ्टिनेट बाब लाव लश्कर ले मंगल के मारे चलले , युद्ध शुरु हो गईल रहे , लडत लडत एगो समय अईसन आईल कि मंगल पांडे आ लेफ्टिनेट बाब मे तलवार से युद्ध होखे लागल आ अंत मे मंगल पांडे लेफ्टिनेंट बाब के दुनि बाँहि काटि देहले । बाब के मुअत देखि कर्नल व्हीलर आगे बढले तलेले मंगल पांडे के संघतियन के गर्जना सुनि उ भागि चलले ।

बाद मे अंग्रेज सेना अपना लाव लस्कर के साथ हजारन सिपाहियन आ कई गो अंग्रेज अफसर के मंगल पांडे के पकडे खाति भेजलस कई गो हमला भईल आ अंत मे बलिया के बीर धरा गइले , कोर्ट मार्शल ६ अप्रैल १८५७ के भईल, कोर्ट मार्शल के बेरि ई तई भईल कि १८ अप्रैल के अमर शहीद के फांसी के सजा दिहल जाई । बाकि लुत्ती से लहकल आगि जवन संवसे देस मे पसर गईल रहे , ओकरा ताप से अंग्रेज लोग झुलसे लागल रहे आ इहे डर अंग्रेजवन के घात करे के हुदुकवलस, जवना वजह से अंग्रेजवा , आठे अप्रैल के चुप्पे चोरी शहीद मंगल पांडे के फांसी दे देहलन स । फांसी के बाद कई महीना ले एह विद्रोह के आगि जरत रहे आ एकर नतीजा ९० साल बाद मिलल जब देस १९४७ मे आजाद भईल ।

इतिहासकार एह इतिहास के अपना अपना कलम से अपना अपना हिसाब से लिखले बा लो , लिखाईलो ओतना नइखे जतना लिखाये के चाही बाकि ई हमनी के फर्ज बा कि इतिहास जवन रहे जवन हमनी के अपना पुरखा पुरनिया के मुहे सुनले बानी जा जवन लो देखले बा ओह के आगे आवे वाली पीढी मे पहुंचावल जाउ …. इतिहास गवाह बा , वर्तमान ओकरे सही रहे जे अपना इतिहास के कदर कइले बा , जे आपन इतिहास भुलवावल ओकरा नाव प दिया जरावे वाला केहु नइखे ।

कुछ सीखल जाउ कुछ सोचल जाउ कुछ नीमन कइल जाउ अपना समाज अपना क्षेत्र अपना माई भाषा अपना मातृभुमि अपना देस खाति ।

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