भिखारी ठाकुर से परिचय

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धनंजय तिवारी
धनंजय तिवारी
हमनी के बचपन में मनोरंजन के मुख्य जरिया ड्रामा ही रहे, केहु के बारात होखे या कवनो और फंक्शन, रात में ड्रामा के मंचन होखे और हमनी के खूब चाव से देखि जा। वैसे त वीडियो के भी आगमन हो गईल रहे पर ओकर पहुंच ज्यादा ना रहे काहे की बिना जनरेटर के उ ना चल पावे, जबकि ड्रामा के साथे अइसन कवनो बाध्यता ना रहे , पंच लाइट टाँगके ड्रामा के मंचन होखे।

हमरा इलाका में ड्रामा के ढेर सारा पार्टी रहली सन और सगरी के आपन विशेषता रहे , कवनो धार्मिक खेल खातिर मशहूर रहली सन त कवनो एक्शन खातिर। पर भावनात्मक ड्रामा खातिर एकहि पार्टी मशहूर रहे जेके सब केहु भिखारी कहे। भिखारी के रहे , हमरा या हमरा संगी संघतिया कुल के बिलकुल जानकारी ना रहे और हमनी के आपन सोच रहे की ऐ पार्टी के सदस्य कुल भिखारी होइह सन ऐ वजह से इ भिखारी के नाच कहाला। भिखारी के नाच के प्रति जेतना भयंकर रूप से हमनी के विरक्ति रहे , हमरा बाबा के एकर ठीक उलट प्रेम रहे। भिखारी के नाच होखेवाला बा एकर खबर महीना भर पहिले से ही फइल जाउ और गाव के बड़ बुजुर्ग लोग एकर चर्चा। हमरा अइमे तनिको रूचि ना रहे। धीरे धीरे वीडियो नाच पर हावी हो गईल और डांस और ड्रामा पार्टी के डिमांड बहुत ही कम हो गईल। हम १२ साल के रहनी जब हम और हमरा जवार के लोग आखरी बार भिखारी के आखिरी नाच देखल बिदेसिया और वोइदीन हमके पता चलल की वो ड्रामा पार्टी भिखारी ना रहे बल्कि उ पार्टी के नाम महान भोजपुरिया नाटककार और कलाकार भिखारी ठाकुर के ऊपर रखाईल रहे।

ओइदिन बिदेसिया के मंचन बड़ा सशक्त भईल रहे और पहिला बार हमरा आँख में कवनो ड्रामा देखके आंसू आयिल रहे। हमरा इलाका के भिखारी ड्रामा पार्टी त ख़तम हो गईल पर, भिखारी ठाकुर हमरा दिल में अमर हो गईनी । समय बीतत गईल और भिखारी ठाकुर से हमार परिचय और गहरा होत गईल।

उनका जीवनी के पढ़नी, उनका काम के पढ़नी और पढ़के हमार निष्कर्ष बा की भले ही लोग उहाके भोजपुरिया शेक्सपिअर कहे पर हमरा नजर में उहाके स्थान शेक्सपिअर से बहुत ऊपर बा काहे से की शेक्सपिअर वो धवज के वाहक रहले जवन पहिले से ही फहरल रहे जबकि भिखारी ठाकुर भोजपुरिया साहित्य के रेगिस्तान में अपना सृजनशीलता से भोजपुरिया भाषा के ध्वज फहरवले। जियले भोजपुरीया और मरले भोजपुरिया। उ शायद पहिला आदमी होइहे जे कम पढ़ा लिखा भईला के बाद भी अइसन रचना कईले जवन वो बेरा से ज्यादा एह टाइम में प्रासंगिक बा। भले ही विदेशिया वो बेरा लिखाईल रहे पर आज के समय से इ ज्यादा यथार्थ बा और हमनी जइसन लोग खुद विदेशिया बन गईल बानी जा। बिदेशिया जइसन ही उनकर और रचना (भाई विरोध, बेटी बेचवा , कलयुगी प्रेम , गंगा स्नान, विधवा विलाप , पुत्रबध ) भी ओतना ही प्रासंगिक और यथार्थ बाड़ी सन।
लोग चाहे जवान सोचे पर हमार नजर में भोजपुरी साहित्य के असली पितामह भीखारी ठाकुर जी ही बानी और हमनी के धन्य बानी जा की हमनी के अइसन महान कलाकार के अपनी मातृभाषा में पानी जा पवनी जा।

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