विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता नारी सम्मान

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शक्ती के स्वरूप से,
नारी के पत्वारी बा!

एकरा के कमजोर मत समझअ,
ई देश-दुनिय पे भारी बा!

सब के हित मे सोचे,
ई नारी के शुबिचारी बा!

जे ममता के प्रित के बोझे,
जेकरा हाथ मे परिवार के जिमेदारी बा!

आपन दुख के दुख ना समझे,
अपना बच्चन के पालन हारी बा!

जोना कलाई पर राखी ना बन्धे,
उ कलाई केतना निन्दा कारी बा!

हर नारी के सम्मान से देखअ,
ओकरा मे बहीन-माई के छबी धारी बा!

शक्ती के स्वरूप से,
नारी के पत्वारी बा!

समाज मे कुछ दुराचारी बारे,
नारी के अपमान करे खातिर अगारी बारे!

अईसन बिचार ना धरअ लोग भाईया,
नारी के सम्मान करअ लोग भाईया!

हर समाज के गंदगी एही से मिटी,
जब नारी के आगे कोनो अाख ना उठी!

शक्ती के अस्तितव से ई जुटल बिया,
फिर भी नारी अपना-आप से रूठल बिया!

नारी के स्वरूप मे जे मिलल बा,
माई, बहीन, भउजाई से आगन खिलल बा!

ई लोग से कबो दुखी मत होखी,
हमनी के जिन्दगी एही लोग से मिलल बा!

शक्ती के स्वरूप से, नारी के पत्वारी बा!
बान्धेम प्रित से त बन्ध जाई नारी,
जादा दबाव देम त टूट के बिखर जाई नारी!

नारी सम्मान के मूर्ती बिया,
अपना खातिर ना जिअत बिया!

सम्पुर जिन्दगी तेयाग के बा,
फिर भी हस के ई जहर पीअत बिया!

इंसान के कामेयाबी मे एकर हाथ बा,
जब तक ई इंसान के साथ बा!

बेटी-बहीन बिपती ना समझी,
दुख के संघती ना समझी!

एकनिये से घर के सिंगार बा,
एकनी से आगन गुलजार बा!

“नारी से ही पुरा श्रीस्टी के अवतार बा”
शक्ती के स्वरूप से, नारी के पत्वारी बा!

रउवा खातिर:

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