विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा पगली

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फसल के कटाई के बाद चारो तरफ दूर-दूर तक नजर के रोक-थाम खातिर कुछो न लऊके | आपन नजर के जहाँ तक दौड़ाई उ दौडी , लेकिन ज्येष्ठ के तलफत दूपहर मे नईखे दौड़ सकत ! काहे की अगनी अस तमतमात घाम और ओकर असहाये ऊष्मा अखियन मे जलन पैदा कर देवे लाs !!||

अईसने दूपहर मे जहां ऐगो चिरई के भी अता-पता न चलत रहे | कबो-कबो गर्म हवा अपना मोजुदगी के ऐहसास दिला ज़ाए . मुनीया जोन अपना घर के दुवारी पर अपना गुडिया के सजावत-सवारत बिया ! अचके मे ओकर नजर केहु पर पड़ल और चिल्लाए लागल…

“मुनीया-: “पगली”,, माई पगली आईल बिया ,, “”माई रे “”पगली “” आईल बिया ||

मईल-कुचइल कपडा,बाल बिखरल हाथ मे मोटरी लेले जोन बदबुदार और देखे मे भदा बा! खुद अपने-आप से बात करत एगो औरत मुनीया के पास आ के बईठ गईल रहे ओर मुनीया से बोललस…

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“”पगली”: ई गुडिया हमार ह ई हम के देदs |

मुनीया फिर चिलाईल “” “माई आव न” ना त ई पगली हमार गुडिया छिन लीs |

हाथ मे दुगो रोटी और ओपे आम के अचार रख के मुनीया के माई “गिरजा” लेके आवतिया और पगली के देत बिया ||

गिरजा” ल “सिन्धु” हई रोटी खा ल और मुनीया के खेले दs |

उ पगली के नाम ही सिन्धु ह . सायद गिरजा ओकरा के जनत बाड़ी ! सिन्धु रोटी लेके तलफत घाम मे मुनीया और गिरजा के आँख से ओझल हो जात बिया | फिर मुनीया अपना माई से पुछत बिया!!

मुनीया” माई ई पगली के तु नाम कईसे जानतारू, ई पगली के ह माई “”..

गिरजा”” मुनी’ ई पगली न ई सिन्धु हई. इहो बहुत खुसहाल, मन मोजी और हमनी अस हसत बोलत रहली “”,?

‘मुनीया” फिर का भ्ईल माई इ काहे अईसन हो गईली . बताव न माई , बताव न “”..

‘गिरजा”- बेटी इ अईसन प्रमपरा और समाज के रिती-रिवाज बा की का बताई • भगवान अगर गरीब के बेटी देस त धन और दौलत भी देस ओकरा के |

सिन्धु के बाबू बहुत गरीब रहले और उनकर गरीबी के ई नतिजा आज सिन्धु के भोगे के पड़ताs ,,.. ओकर बाबू ओकर बिहाअ अपना हेसियत से ऊपर ही घर मे कईले. लेकिन सब बहुत लोभी रहे! ओर सिन्धु के हर तरह से तंग करे लोग, लेकिन सिन्धु सब कुछ अपना अन्दर दबा के खुश ही रहत रहे ! कुछ समय बाद माँ बने वाला रहे ,, एक दिन ओकर पिडा बढ़ल और अराम करत रहे लेकिन ओकरा सास से देखल न गईल ! ओर ओकर सास ओके आ के मारे-पिटे और गाली देवे लागल|

अचके मे सिन्धु के पेट मे चोट लागल और सिन्धु अचेत होके गिर गईल ! जब सिन्धु के होश आईल त होस्पिटल मे रहे ओर . और जब ओकरा पता चलल की ओकर बच्चा पेट मे ही दम तोर देले रहे! सिन्धु ई सदमा सह न पवली ! और आज ई दौड़ से गुजरत बारी ||||

मुनीया” माई आज के बाद हम उनकरा के पगली न कहेम |

गिरजा” ह बेटी केहु के भी जाने-अंजाने मे कुछो न कहें के चाही |

फिर दोसरे दिन दूपहर मे मुनीया गुडिया के सजावत-सवारत रहे और सिन्धु “”पगली”” ओकरा पास मे बैठ के रोटी-अचार खात रहे ||||

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