संत सिरोमनी जोगीराज देवरहा बाबा

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देवरहा बाबा के नाव सुनते सिर अपनी आपे सरधा-सनमान से झुकि जाला। देवरहा बाबा महान संत रहनीं। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला त धनि बा काहें की बरमहर्सि जोगीराज देउरहवा बाबा के इ करमस्थली रहि चुकल बा। देवरिया जिला के जनता त हिरदय से सुकुर गुजार बा ए परम मनीसी, जोगीराज जी के, जे देउरियां के आपन निवास बनावल अउर ए छेत्र की माटी के अपनी पावन चरनन से पवित्तर कइल। अपनी ग्यान अउर जोग की बरखा से सरधालु जनमानस के सराबोर कइल। ए जोगी के ही कीरीपा बा की आज देवरियां इहां की नाव से जानल जाला अउर विस्वपटल पर उभरि के सामने आ गइल बा। देवरहा बाबा त ब्रह्म में बिलिन हो गइनीं लेकिन उहां की ईस्वरी गुनन के चरचा तरत आज भी सरधालु लोग अघाला ना।

महान राजनीतीग्य माननीया सोवरगबासी इंदिरा गांधी जी देवरहा बाबा के परम भगत रहनीं। एतने ना, माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी भी देवरहा बाबा के कई बेर दरसन कइनी अउर ए महान मनीसी की बातन के लाभ उठावत आपन जीनगी सँवरनी। जनता-जनार्दन के बात सुनीं त देवरहा बाबा एगो परम सिध महापुरुस रहनीं, ए में कवनो दु-राय नइखे।

देवरहा बाबा की मूल निवास की बारे में लोगन में भरम बा। हँ इ हो सही बा की देवरहा बाबा देवरियां के ना रहनीं, उहां का कहीं बाहर से आइल रहनीं। इहां का देवरिया जिला की सलेमपुर तहसील में मइल नामक एगो छोट सहरी-बाजार से लगभग एक कोस की दूरी पर सरजू नदी की किनारे एगो मचान के आपन निवास बनवनी अउर धरम-करत करत जनता-जनार्दन के कल्यान करत एगो महानी मनीसी जीवन बितावे लगनीं।

रउआं सब के जानि के अचरज होई की बहुत ही कम समय में इ महान बिभूती अपनी करम अउर बेयक्तित्व से एगो सिध महापुरुस की रूप में परसिध हो गइल। बाबा के दरसन खातिर रोजो जन समूह उमड़े लागल अउर बाबा की सानिध्य में सांति अउर आनंद में गोता लगावे लागल। बाबा सरधालुअन के जोग अउर साधना की साथे-साथे ग्यान के बात बतावे लगनीं। बाबा के जीवन सादा अउर एकदम संन्यासी के रहे। बाबा भिनसहरे नित क्रिया से निवृत्त, नहा-धो के धेयान में लीन हो जाईं अउर पूजा-पाठ की बाद मचान पर आसीन हो के सरधालुअन के दरसन अउर ग्यानलाभ कराईं।

बाबा के लीला कहीं, भा चमत्कार, चाहें बाबा के ईस्वरी कर्मन के दरसन कहीं। बाबा के रोजो कवनो न कवनो चमत्कार सरधालुअन के बिस्मय क दे। बाबा के सबसे बड़हन खूबी भा लीला इहे रहे की उहां का अपनी लगे आवे वाला हर मनई से परेम से मिलीं अउर सबके कुछ न कुछ परसाद जरूर दीं। परसाद देबे खातिर बाबाजी आपन दहिना हाथ मचान की खाली भाग में एहींगा घुमाईं, हाथ घुमावते एगो चमत्कार होखे अउर बाबा की हाथे में फल, मेवा भा कुछ अन परसाद आ जा पर विस्मय इ की मचान पर कुछ रहे ना। सर-धालु लोगन के कोतुहल होखे की आखिर इ परसाद बाबा की हाथ में कहां से आ जाता।

बाबा पानी पर भी चले। कुछ लोग त कहेला की बाबा के जहां भी जाए के होखे पानी पर चलिए के जां, काहे की बाबा पूरा भारत के भरमन कइनीं पर कबो केहू उहां के सवारी पर चढ़ल ना देखले रहे। बाबा हर बरिस कुंभ की समय परयाग आईं अउर कुछ भक्तन के सुनीं त बाबा सरजू जी से हो के आंखि भंजते परयाग पहुँचि जाईं। एतने ना हमरी जिला के बुढ़-पुरनिया त कहेला की बाबा के सब पता होखे। उहां का इ हो पता रहे की कब, कहां, के उहां की बारे में चरचा करता। बाबा जोग में महारथी रहनीं। उहां का रोजो सरजूजी में नहात समय आपन लाद-ओद, अंतरी-संतरी बाहर निकालि के धो दीं अउर फेर से अंदर डाल दीं। उहां का प्रानायाम में महारत हासिल रहे। कइगो असाध्य जोग किरिया के उहां का साधि ले ले रहनीं।

हमार बाबा पंडित रामबचन पांडेयजी एगो बात बराबर बताईं। एकबेर के बाति ह की हमार बाबाजी खूब सबेरवें कुछ गाँव-घर की लोग की साथे देवरहा बाबा के दरसन करे गइनीं। हमरी बाबा की साथे-साथे सब सरधालु लोग देवरहा बाबा के परनाम कइल। देवरहा बाबा सबके आसिरबाद देत हमरी बाबा से कहनीं की ए ब्राह्मणकुमार! एगो कीरतन सुनावै। एकरी बाद हमार बाबाजी सरधालु लोगन की साथे मिली के हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे… गवनीं। एगो अउर घटना सुनीं। श्री महाबीर प्रसाद मुजफ्फरपुर में मुंसिफ रहनीं। उहांका पहिला बेर देवरहा बाबा के दरसन करे खातिर सरजू किनारे गइनीं। उहांकी साथे उहां के पूरा परिवार-रिस्तेदार आदी भी रहे लोग। बाबा के दरसन क के श्री महाबीर परसाद जी वापस लौटत रहनी की रास्ता में उहांकी सारे के सांप काटि लेहलसि। सांपे के बिस चढ़े लागल अउर उहांकी सारे की मुंहे से गाज निकल लागल। श्री महाबीर परसादजी बिना देरी कइले फेर से बाकि साथे लवटि के देवरहा बाबा की लगे पहुँचनी। मचान की लगे पहुँचते देवरहा बाबा के नजर श्री महाबीर परसादजी की सारे पर परल। उहांका मचानिए पर से पूछनि की ए लइका के काहें कटले ह। देवरहा बाबा के बाति सुनि के श्री महाबीर परसादजी की सार कहि बइठल की हमरी ऊपर लात ध देहने हँ ए से। ए पर देवरहा बाबा कहने की जानबूझि के थोड़े धइले होई। एगो काम करै तूँ लइका की देहीं में से सारा जहर खिंचि ल। बाबा के आदेस सुनते श्री महाबीर परसादजी की सार एकदम्मे ठीक हो गइल अउर उठि के खड़ा हो गइल। फेर सब लोग बाबा के जयकारा लगावत अपनी-अपनी घरे गइल।

काफी दिन ले देवरिया में रहले की बाद देवरहा बाबा बृंदाबन चलि गइनीं। एकर कारन इहो रहे की कुछ लोगन के उहां के खेयाति से चिढ़ रहे। खैर बाबा के त केहू के बुरा करे के ना रहे, उहां खातिर सब लोग समान रहे। बाद में बाबाजी समाधि ले लेहनीं। परेम से बोलीं संत सिरोमनी देवरहा बाबा की जय।

लेखक: पं. प्रभाकर गोपालपुरिया

पं. प्रभाकर गोपालपुरिया
पं. प्रभाकर गोपालपुरिया

ध्यान दीं: ई संस्मरण भोजपुरी साहित्य सरिता के अंक ३ से लिहल गइल बा

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