तारकेश्वर राय जी के लिखल भोजपुरी कविता फगुवा ह फगुवा

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पुरनकी पतईया, फेड़वा गिरावे |
जइसे गिरहथ, कवनो खेतवा निरावे ||
नईकी पतइया बदे, जगहा बनावे |
जायेके बा एक दिन, इहे समझावे ||

चईती फसलिया बा, गदराइल |
लागत फगुनवां बा ,नियराइल ||
सरसो पियरकी से, खेतवा रंगाइल |
अमवाँ मउराईल, महुवा मोजराईल ||

चारु और सुनाता, कोइलिया के बोली |
भइया त खुश बान, देख भौजी के डोली ||
ढोल मृदंग के, धमाल खोरी खोरी |
उड़ता रंग, अबीर, चारु ओरी ||

फगुवा में भंगिया के, कदर बढ़ जाला |
भख के बुढ़वो, जवान होइ जाला ||
मस्ती में देखीं सभे, बाटे रंगाइल |
केहू बा पसरल, केहू टँगाईल ||

मसती के नाद में, सभे बूड़ल बा |
रंग में रंगाइल, तरंग से जुड़ल बा ||
ये पाहुन, ये काका, कहाँ गइली भऊजी?
केहू चिन्हाते नइखे, मुहवा प रंग बा ||

बलटि में घोराइल बा, रंगवा के शीशी |
हुड़दंगई देख भऊजी, नाच गइली खिशी ||
देवरा त ऊपर बा, ननदिया बिया निचे |
कबो भऊजी खींचे, कबो उनके मीचे ||

भर भर फिचकारी के, रंग डाले ससुरा |
लागत की छोड़ी नाही, ताकताटे भसुरा ||
दौर हो, छोड़ हो, भाग जिन घिसरा |
नन्दोई त भाग गईले, भेटा गईले मिसरा ||

जी भरके रंगईले , खूबे पटकइले |
मिसरा के छोड़ावे में, भइयो धरइले ||
देख के भइया के, गजबे सुरतिया |
हँसेले पाहुन, खूब हँसेले मइया ||

रंग से रंगाइल, अब अबीर पोताई |
सुन ल ऐ भइया, सुन गोसाई |
गोझिया खाई खाई, फगुवा गाई |
फुहर ना गाई, न फूहर गवाई ||

हंसी मजाक के, फगुवा तेवहार ह |
रंग में गोताइल, ई अलगे बहार ह ||
अगिया बूतावे पानी, मिठ चाहे खार होखे |
रंगवा से धोय ल, जवन मनवा में रार होखे ||

बिहँस के मिलला से, जुड़ा जाला जियरा |
नाही फर्क कवनो, रही चाहे लमा नियरा ||
नाते से त जरेला, जिनगी के दियरा |
ना त सुने सिवान, जइसे फेकरेला सियरा ||

~तारकेश्वर राय~
ग्राम + पोस्ट : सोनहरियाँ, भुवालचक्क
गाजीपुर, उत्तरप्रदेश

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