कन्हैया प्रसाद रसिक जी के लिखल भोजपुरी कहानी लोचन

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तरूण के शादी कइला दु साल हो गइल बाकि अबहीं कवनो फर फूल ना लागल बा एह से उनकर माई मन ही मन उदास रहली। संग हीं के बिआहल रजमतिया के गोद भर गइल आ ना जाने हमरा घरे कबले छीपा बाजी। तरूण के मेहरारू सुशीला रसायन शास्त्र से एमएससी एमएड रही , आ घर से दस कोस दूर पो एगो इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ावत रही।

रोज उनकर सवांग मोटर साइकिल से छोड़के अपना काम पो जात रहन। तरूण के आपन दवाई के दोकान रहे।जिनिगी बाड़ा हँसी खुशी में बितत रहे।एक दिन सवितरी फुआ तरूण के घरे आइल रही, आ तरूण के माई से कहले रही “ए भउजी, अरे बचवा बो के कतहीं देखाव दु बरीस से जादा हो गइल कवनो लइका थोड़े बा लोग हमार त काम तोहरा से कहे के बा बाकि तोहार मर्जी दोसरा के घर में हम दखल ना देनी ”

ओह दिन से तरूण के माई के मन में शंका पैदा होखे लागल पता ना पतोहिया बांझ त नइखे, अपना लइका के बेरे में केहु खराब ना सोचेला एह से सभ दोष सुशीला के उपर थोपा गइल।एक दिन सभे बइठल रहे त तरूण के माई आपन मन के बात बतवली तब सुशीला कहली कि अम्माजी परेशान काहें होत बानी अपना हाथ में थोड़े बा जब होई तब होई।

बहू के जबाब से सासजी के मन ना मानल कहली ” ए बहुरिया ना होखे त एक दिश ब्रह्म बाबा के देवल अगोर के आवल जाय बड़ी उनकर चलती ह, जे गइल बा उ खाली हाथ नइखे लौटल।” बहुरिया सासजी के मंशा समझ गइली आ इहो जान गइली कि के कान भरले बा कहली कि अम्माजी हम एह में विश्वास ना करेनी। आ कवनो बाबा में अइसन शक्ति नइखे जेकरा आशीरबाद से केहुके दिन चढ़ जाई हम विज्ञान पढ़ले बानी आ इ सब ढ़ोग के मरम हम जानतानी। ओही दिन से सास बहू में खटपट चले लागल। सासूजी तरह तरह के गारी देके आपन भड़ास निकाले लगली। अब उ बचवा बो ना कहके बंझिनिया कहे लागल रही जे सुनत रहे निक ना लागत रहे। एक दिन सासूजी तरूण से कहली कि एह बंझिनिया के हम मुँह देखतानी त हमार दिन खराब हो जाता एकरा के नइहर पेठा आव । माई के एह बेवहार से तरूण तिलमिला गइलन उ जानत रहले कि कमी केकरा में बा आ ओकर इलाजो करावत रहले। पहिले त माई के कबो जबाब ना देले रहले बाकि ओह दिन माई से कहले ” हम शादी कइले बानी त हम साथे रहब नइहर कहें भेजी आ जब तु ओकर मुँह नइखु देखल चाहत त हम ना देखाइब आ काल्ह से हमनी के दुनो बेकत घर छोड़तानीजा।”

माई जोर से बात करत रही ताकि सुशीला भी सुन लेस, सुशीला संस्कारी बहू रहली अपना जबान से माई के कुछो जबाब ना देली खाली सुसुक के रोवत रही। अगिला दिन तरूण आ सुशीला शहर में जाके रहे लगले लोग ।उहाँसे सुशीला के स्कूल भी नजदीक रहे आ तरूण के दोकान भी, सुशीला मरद के नास्ता खाना बनाके पैदले स्कूल चल जात रही , खाना भी जब टिफिन होत रहे त घर हीं में लोग आ के खात रहे। सुशीला शिक्षक रही त उनका पो समाज के बहुत उत्तरदायित्व रहे आ आपन निजी दुख के कबो स्कूल में ना ले जात रही। काफी इलाज करवला के बाद आशा के कुछ किरन देखाई पड़ल, दुनो बेकत के खुशी के ठेकाना ना रहे।

बड़का अस्पताल में जाके जाँच करावल लोग त खुशी पो डाकटर ठप्पा मार देलस। सुशीला पति से निहोरा कइली कि ए जी इ खबर आम्माजी के दे दीं ना ।तरूण साफ मना कर देलन त सुशीला जादा जोर ना देली।

पन्द्रह अगस्त के पुरा देश स्वतंत्रता दिवस के जश्न मनावत रहे ओही दिन सुशीला के भी बाँझपन से स्वतंत्रता मिल गइल। अस्पताल के दाई तरूण से नेग लेबे खातिर नखरा करे लागल।तरूण भी ओहदिन बगली में जतना पइसा रहे देखलन ना मुठ्ठी में लेके दाई के पकड़ा दिहलन। तरूण आज लइका के बाप रहले। अस्पताल में सुशीला के माई बाबूजी साथे रहले बेटी के माथ से बाँझिन के टीका मिटिक गइल रहे खुशी के मारे उहो अपना काबू में ना रहलें। अपना गाँव के नाउ के बोला के खुशी के लोचन लिखके तरूण के घरे पेठवा देले।

जब नउआ लोचन लेके तरूण के घरे चहुँपल आ उनकर माई सुनली त धाधा गइली, ओह घरी उ छत पो कपड़ा पसारत रही तले तरूण के बाबूजी जोर से चिल्ला के कहले ” ए मलकिनी सुनतारू पोता भइल बा हो पोता ” एतना बात जब कान में परल त सभ कपड़ा उपर छोड़के लोचन पढ़े खातिर सीढ़ी से उतरे लगली । खुशी के मारे लामे लामे डेग बढ़ाके दु दु गो सीढ़ी एके साथे उतरे लगली तले गोड़ छटक गइल आ पलटी मारत निचे गिर गइली, अब घर में हाहो दइया मच गइल फटाफट कार में बइठा के अस्पताल लोग ले गइल। डाकटर जाँच क के बतवलस कि इनका दिमाग में चोट लागल बा आ खून के थक्का जम गइल बा अपरेशन करे के परी। कुदरत के खेल देखीं ओही अस्पताल में सुशीला भी रही बाकि उनकर छुट्टी मिल गइल रहे घरे जाहीं वाली रही तले तरूण उनका के खबर देलन ।तरूण पहिलहीं माई के सेवा में हाजिर हो गइल रहले। माई होश में रही बाकि हाथ गोड़ ना चलत रहे , कवनो नस दब गइल होखी एही से लकवा जइसन मार देले रहे। सुनिता सुनली त लइका के उठाके आम्माजी भीरी आ गइली आ रोवते आँख से कहली आम्माजी हई लिहीं आपन थाती आ आशीर्वाद दीहीं। माई के आँखी से ढ़र ढ़र लोर चुवे लागल । सुशीला लइका के छाती पो सुला देली । माई अंदर से टूट गइल रहली उनका सोझा वंश बिलात लागत रहे आ जब सुनली के सुशीला के बाबुजी लोचन भेजले बाड़े त खुशी के बटोर ना पवली। उनका आँखी के सोझा सुशीला के गरियवल , बाँझिन कह के घर से निकालल छन भर में सभ लउके लागल । पोता के मुँह देखली त हिरदेया जुड़ा गइल , लइका के भर आँख देखते देखत एक देने मुड़ी ढ़रका देली।

भोजपुरी कहानी लोचन
लेखक: कन्हैया प्रसाद रसिक जी

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