कन्हैया प्रसाद तिवारी रसिक जी के लिखल लोकनी

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रमेश के शादी शीला से हो गइल दुनो जाना एके कवलेज में पढ़त रहे लोग देखा देखी होत रहे बाकी दुनो जाना अपना कुल मर्यादा के सीमा में रहे लोग। रमेश गोपीचंद शर्मा के लइका रहले आ शीला के बाबूजी के नाम कामेश्वर प्रसाद रहे ।दुनो जाना एके साथे एगो कंपनी में काम करत रहले जा।गोपीचंद कामेश्वर प्रसाद के जूनियर रहन,बाकी प्यार मुहब्बत में गोपीचंद सिनियर लागत रहले , कंपनी के हर आदमी से दुआ सलाम करत रहले चाहे उ छोट होखे चाहे बड़। आ इहे खूबी उनका लइका रमेश में रहे।कामेश्वर के लइका बचपन से हीं पसंद रहे आ मन हीं मन सोचत रहलें हमरा इकलौती लइकी के शादी भगवान करस कि रमेश के साथ हो जाय।

भगवान उनकर सुन लेले रहले आज शीला अपना पति रमेश के साथ बाबूजी के घर छोड़के अपना ससुराल जात बाड़ी । शीला के विदाई कराके कार जब रमेश के दुआर पो रूकल त लोकाचार के तैयारी होखे लागल पहिले दुलहिन के परीक्षण होई एकरा बाद कार से उतरीहन । टोल परोस के मय मेहरारू जुटे लगली सन मंगल गीत गवावे लागल दूर से हित नाता आ गाँव के लोग भी दुलहिन के देखे के फिराक में लागल रहे।जबकि घूंघट में मुँह त ना दिखायी दित बाकि देह धाजा पर हीं संतोष करे के मन बनवले रहे लोग।

अरेरेरेरे इ का इ त बिना परिछावन के हीं उतरके साइड में खड़ा हो गइल मने मने सभे बुदहुदाइल। एक आदमी कार के नजदिक जाके देखलन त समझ गइलन कि दुलहिन ना केहु और ह हो सकेला कि दुलहिन के बहिन होखे।बाकि बहिनियो ना रहे , अब रउआ सभके उत्सुकता बढ़ रहल बा कि इ औरत के ह जे रूप आ सिंगार में दुलहिन से कम नइखे त थोड़ी देर और इंतजार कर लीं दुलहिन के परिछावन हो जाये दीं।

टोला परोसा के सभ मेहरारू जुटके दुलहिन के परिछावन कइली जा फिर दउरा में डेग डलाइल साथे साथे उ औरत भी दुलहिन के पकड़ के चलत रहे और उत्सुकता बढ़ गइल , जरूर कोई हितलग्गु बिया नात दुलहिन के एतना नजदीक ! ओहु में परिछावन से लेके कोहबर तक।

अब हम रावा सभे के उत्सुकता खतम कर देत बानी उ दुलहिन के देखभाल करे खातिर उनका गाँव से आइल बाड़ी आ लोकनी कहाली।चूकिं दुलहिन के नया घर मिलल बा एह से अभी खुले में थोड़ी समय लागी त आपना मन के बात गाव के लोकनी से बेहिचक कह सकेली ।इ लोकनी भेजे के रिवाज आज से ना बहुत पहिले से चलल आ रहल बा , राजस्थान के राजा महाराजा लड़की के साथ कुँवार लड़किन के झुंड़ दहेज में देत रहे लोग जेकरा के गोली कहल जात रहे। उ गोली राजा के राज्य के हिस्सा मनल जात रहे शादी वियाह आ घर बसावे के सभ जिम्मेदेरी राजा के रहत रहे। बाकि लोकनी बियाहल औरत होली आ कुछ दिन दुलहिन के साथे रह के फिर से वापस चल जाली ।अब कवन लोकनी कितना दिन दुलहिन के साथ रही उ घर में ओकर इज्जत आ सम्मान के उपर रहे।एगो चतुर लोकनी अपना व्यवहार आ वाक् पटुता से महिनो रहत रहीजा आ घरवाला लोग उनकर इज्जत करत रहे। लड़की के ससुरार में लोकनी के लोकनी ना कहके आदर सूचक शब्द किसाइन ( जे शायद किसानिन के अपभ्रंश ह) कहल जात रहे।

इ जवन किसाइन( लोकनी ) दुलहिन के साथे आइल बाड़ी उनकर परिचय रावा सभ से करा देत बानी , इनकर पढ़ई -लिखाई बीए पास हई , गरीबी के कारण आगे तक ना पढ़ पवली आ उनकर बाबूजी शादी कर देलन । इनकर मरद राज मिस्त्री के काम करेलन अभी इनका देह से कवनो संतान नइखे।पढ़ल लिखल होखला से इनका में बात करे के तहज़ीब कूट कूट के भरल बा , जे एक बार बात कर लेला उ उनकर मुराद हो जाला , हमरा पता ना उनका बात में आकर्षण होला कि उनका रूप में या कि दुनो में जे केहु अलग होखल ना चाहत रहे।

जब से किसाइन आइल बाड़ी पुरे घर में खुशी के माहौल छा गइल बा , उनका मुँहसे दुलहिन के बड़ाई सुनके सासजी के मन ना भरत रहे बार बार किसाइन के उकसा देस कि कुछ कहे। किसाइन भी एह बात के भाँप गइल रहली रात में सुते के बेरी पुरे परिवार में जेतना औरत लोग रहे सभके मालीस करत रही। जब सासू माई के बारी आवत रहे तब मालीश के साथे सारे दुलहिन के बड़ाई भी करत रही जेकरा से परिवार में दुल्हिन के मान सम्मान बढ़ गइल रहे। कबो कबो भसुरजी मजाक में किसाइन से कह देत रहन, “काहो किसाइन तनि हमरो मालिश क द ना” एह पो किसाइन के बहुत हीं उम्दा जबाब रहे बाबूजी मलिश त अइसन क देब कि रउआ रोज रोज मालिश करवावे के मन करी बाकि तनि अपना बाल बच्चन के भी सोचीं ।” ओह रात भसुरजी के मेहरारू से खूब खिंचाई भइल रहे।

टोला मुहल्ला में किसाइन के हाजिर जबाबी के हल्ला सरेआम हो गइल त एकजाना चुस्की लेबे आ गइलन कहलन का हो किसाइन बाड़ा लहरा ताड़ु फिर त किसाइन चढ़ बइठली , अरे नतिया हम लहरा तानी त तोर काहें करेज फाटता । अइसन उत्तर के आशा उनका ना रहे सीधे दुम दबा के भाग गइलें। ओह दिन से जेकरा से चाहत रही खुदे मजाक करत रहीं बाकी मर्यादा के उलंघन ना होत रहे शुद्ध श्रृंगार बरसत रहे उनका वार्तालाप में।

जब सुनले रही कि बबुनी के विदाई होखेवाला बा त उनका बाबूजी से निहोरा कइले रही कि बाबूजी हमरा के लोकनी बना के भेज दीं बबुनी के साथे रहब आ कुछ हमरो कमीनी हो जाई । आ कवनो दोसरा घरे थोड़े जायेके बा , किसाइन के बात से सभे परभावित हो जात रहे त बाबूजी मान गइनी आ किसाइन बबुनी संगे चल गइली । इहाँ आ के अपना बेवहार से सभके मन मोह लेली केहु ना चाहत रहे कि किसाइन जास खासकर छोट छोट लइका बहुत पसंद करत रहलन. ओहनी के बात बात में सीखावत पढ़ावत रही जे पढ़ाई स्कूल में ना होत रहे ।

अब उहो दिन आ गइल जब किसाइन के जाये के रहे, उनकर विदाई के तैयारी बड़ा धूम धाम से होत रहे जइसे पतोह के विदाई होखे। सभके आँख डबडबिया गइल रहे दुलहिन त भोंकार पारके रोवत रही ओतना त विदाई के दिन भी ना रोवले रही, लाता कपड़ा दस हजार रूपया मलिकारा से मिलल रहे ओकरा अलावे सभे अपना भिरी से दिल खोल के देले रहे। किसाइन अपना घरे चल गइली बाकी आपन छाप छोड़के गइल रही , बार बार उनकर चर्चा घर में सुने के मिलत रहे ।चले के बेर सभके आँख में आँसू रहे ।

लेखक: कन्हैया प्रसाद तिवारी रसिक जी

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