शहर पूरा नाया था

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एक साल हो गया गाँव छोर के गाया था,
मानता हूँ हमरा खातिर शहर पूरा नाया था।

हिन्दी ना आता था भोजपुरीए बोलाता था,
किसी से बात करने में बहुते शरमाता था।

एके साल में भूल गया भाषा आउर गाँव को,
माई के आंचरा आ बाबूजी के पांव को।

बाबूजी के पापा अब कह के बोलता हूँ,
अंग्रेजी में ममी नाही कहने में डेराता हूँ।

गंउआ के लोग अब तनिको ना भाता है,
का जानी भोजपुरी में काथी बतियाता है।

खेतवा बधार हमको कुछो ना चिन्हाया था,
मानता हूँ हमरा खातिर शहर पूरा नाया था।

अंग्रेजी को माने हम घोर के हूँ पि गया,
गंउआ में मर जाता शहर जाके जी गया।

गोरी गोरी चाम वाली उहंवा भेटाती है,
हाय हलो करे नाही किसी से लजाती है।

गंउआ में हमरा से तेज कोई बेटा नही,
हमरा से बात बतिआले कोई भेंटा नही।

बुझे मेरा बात हम जेतना भी कह गया,
बचपन से इंहवा बेकारे हम रह गया।

जिनगी के बिस साल गाँव में बिताया था,
मानता हूँ हमरा खातिर शहर पूरा नाया था।

शहर पूरा नाया था(हास्य-व्यंग्य)
सुजीत सिंह(शिक्षक)
कन्या मध्य विधालय अपहर
ग्राम-सलखुआँ
पोस्ट-अपहर
थाना-अमनौर
जिला-सारण(बिहार)
मो0न0-9661914483

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