बोली से भोजपुरी भाषा कब बनेगी? : मधुप श्रीवास्तव

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सबसे पहले विश्व भोजपुरी दिवस की हार्दिक शुभकामना।
हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भोजपुरी बोली मीठी जुबान की वजह से या गरीब मजदूरों की बोली होने के वजह से इस बोली को बोलने वालों की संख्या लगभग 30 करोड़ से भी ज्यादा है। अभी तक भोजपुरी को एक भाषा के रूप में मान्यता नही मिला है, यह हमारे लिए शर्म की बात है. नामर्द भोजपुरिया जनप्रतिनिधि की वजह से यह हाल है। मोदी सरकार में सबसे ज्यादा भोजपुरिया जनप्रतिनिधि है इसलिए आशा है कि भोजपुरी बोली के भी अच्छे दिन आएंगे, विडंबना यह है कि सबसे पहले बिहार सरकार ने भोजपुरी अकादमी बनाया मगर अकादमी का हाल यह है कि खुद का अब तक ऑफिस नही है और साहित्यिक किताबे सड़ रही है।

ऐसे में भोजपुरी-भाषा का कैसे भला होगा? बिहार के बाद दिल्ली सरकार ने मैथली – भोजपुरी अकादमी बनाया, यहाँ भी यही हाल है. यह अकादमी थोड़ा पैसे के मामले सम्पन है इसलिए चोरों का अड्डा है, उसके बाद सतना में कभी पुरबियों को गाली देने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोजपुरी अकादमी बनाया परन्तु हाल वही है, अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने भोजपुरी अकादमी बनाया है। अकादमी बनने से भोजपुरी बोली और बोलने वालों को कोई फायदा नही है सिर्फ अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की जागीर बन जाती है. अकदमी के अध्यक्ष बनने के लिए लोग नेताओं के तलवे तक चाटते है…… गर्व की बात है कि मस्कट ( खाड़ी देश ) में भी भोजपुरी विंग नाम से संस्थान है इतना ही नही 180 वर्ष पूर्व गिरमिटिया मजदूर बन के मॉरीसस गए गरीब मजदूरों ने माँ भोजपुरी का वहाँ पताका फहराया, मॉरीसस में भोजपुरी को एक भाषा का रूप में मान्यता प्राप्त है. वकायदा वहाँ सरकारी काकाज आदमी अपने इच्छा से भोजपुरी में कार्य कर सकता है भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन के रूप में एक सशक्त भोजपुरी की संस्थान है।

29 से 4 नवंबर तक गिरमिटिया मजदुर के 180 वर्ष पूर्ण होने पर विश्व भोजपुरी सम्मलेन चल रहा है और हमारे भारत देश में भोजपुरी की कई प्राइवेट पार्टी संस्थान है जो कलाकारों को लेकर हमेशा कार्यक्रम करते रहते है और उनको अवार्ड देकर सम्मानित भी करते रहते है. साथ ही ले दही दे दही किया करते है और समय-समय पर भोजपुरी फिल्मों के अश्लीलता को लेकर उनको ही गरियाते रहे है, जिससे और अश्लीलता बढ़ गई है। लखनऊ में 2 नवंबर 2010 को एक कार्यक्रम में भोजपुरी संसार के संपादक मनोज श्रीवास्तव भैया से मिलना हुआ जिनका भोजपुरी के प्रति निस्वार्थ भाव दिल को छू गया उस दिन से मैं भोजपुरी पत्रकारिता और फिल्म में कार्यरत हुँ।

मधुप श्रीवास्तव

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