आधुनिक भोजपुरी के पहिल कवि-पंडित श्याम बिहारी तिवारी उर्फ देहाती जी : सन्तोष पटेल

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भोजपुरी साहित्य के नवजागरण काल के कृष्णदेव उपाध्याय, पंडित गणेश चौबे डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव आ प्रो गदाधर सिंह ‘आधुनिक काल’ कहले बानी। उहे डॉ तैयब हुसैन पीड़ित आ रासबिहारी पांडेय एह काल के ‘वर्तमान काल’ आ डॉ राजेश्वरी शाण्डिलय ‘उत्कर्ष काल’ कहले बाड़ी। आधुनिक, वर्तमान भा उत्कर्ष काल नवजागरण के कालखंड ह जेकरा में भोजपुरी में रचनात्मक सक्रियता साहित्यिक दृष्टिकोण से बढ़ल।

एही कालखंड में करीब 1947ई के आसपास ‘भोजपुरी के पहिल साहित्यिक कविता संग्रह’ ”देहाती दुलकी” आइल जइसन कि डॉ ज्योत्स्ना प्रसाद ‘देहाती जी के व्यक्तित्व आउर कृतित्व’ में लिखले बानी। ‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ के 9वां अधिवेशन में आपन अध्यक्षीय भाषण में पंडित गणेश चौबे स्वीकार कइले रही कि बेतिया के पंडित श्याम बिहारी तिवारी देहाती जी पहिल कवि रहनी जे आपन कविता संग्रह -‘देहाती दुलकी’ पर लिखले – “भोजपुरी की कविताएं।” एह संग्रह में 14 गो भोजपुरी के कविता बा। जेकर नाम बा -गोहार, आज चईत के चढ़ल अँजोरिया, पनघट, भंवरा, उठल मास मधुआइल,जेठ महीना,बदरी, नाच गुजरिया कजरी गावे, सावन के आसमान,सुख गइल बरसात, एह जतरा में केहू मत छीकों, उठ$ बालम निमन ऋतू आइल, आपन करनी पार उतरनी आ उठल$ राग बा होरी हो।

सन्तोष पटेल जी
सन्तोष पटेल जी

देहाती जी के चर्चा डॉ उदय नारायण तिवारी आपन शोध ग्रन्थ भोजपुरी भाषा और साहित्य में कइले बानी। डॉ उदय नारायण तिवारी देहाती जी कविता के बारे में “आप भोजपुरी में सुंदर तथा सरस कविताएं लिखते हैं।(पृष्ठ-277)। देहाती जी कविता के उधृत भी एह ग्रन्थ में कइल बा-

का का केतना देखनी, का का देखनी
भीतरी ना देखनी, बाहर के लिफाफा देखनी
अरे भाई, अइसन सत्कार कतहूँ ना मिलल
देहातियो के साथे खाये के तकाज़ा देखनी। ( का का देखनी कविता, भोजपुरी भाषा आ साहित्य, पृष्ठ 278)

उहें श्री दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह ‘भोजपुरी के कवि आ काव्य’ में कइल बा। दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह लिखत बानी- “देहाती जी गंभीर विषयों पर भी अपनी अच्छी रचनाएं की है।” एगो बानगी देखीं-

पुरखन जे भुला गइल$ दिलेरी कहाँ से आवो?
घोड़ा त छुटिए गइल, गदहो के सवारी सिख$
केहू केहू अइसन बा जेकरा धन काबू अधिका बा
दुनू बहावे के होखे त$ चढ़े के अटारी सीख$ ।

(भोजपुरी के कवि और काव्य, पृष्ठ 252)

भारतीय लोक संस्कृति शोध संस्थान वाराणसी से 1972 में प्रकाशित डॉ ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ में डॉ कृष्ण देव उपाध्याय लिखत बानी कि आप भोजपुरी में सुंदर तथा सरल कविता करते है।”(पृष्ठ 262)

लोग प्रकाशन, पटना भोजपुरी साहित्य के संक्षिप्त इतिहास (2009) में नागेंद्र प्रसाद सिंह देहाती जी के कविता उधृत कइले बानी-

“उनका दिमाग में त हर घड़ी अन्हार छपले बा
गोलिया कइसे मारस? उ निचे ऊपर शोर छपले बा
बात कइसे पूछब कुछउ त पढ़$
मकई कइसे होइ ? सउँसे खेत त जनेर छपले बा।” (पृष्ठ 48)

डॉ संजय कुमार यादव के एगो आलेख बा – दुर्लभ थाती: पंडित श्याम बिहारी तिवारी ‘देहाती’। परम्परा के कीर्तिस्तम्भ (2009) में छपल एह शोध आलेख में डॉ यादव जवन लिखत बानी उ बड़ा प्रासंगिक बा-

“बीसवीं शताब्दी के शीर्षस्थ भोजपुरी कवि में देहाती जी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह, प्रसिद्ध नारायण सिंह, डॉ रामविचार पांडेय और आचार्य महेंद्र शास्त्री के साथ इनका नाम भी अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है।” (पृष्ठ 159)

जनार्दन द्विवेदी ‘भोजपुरी काव्य साहित्य’में देहाती के कविता में हास्य व्यंग्य, श्रृंगार, विरह वर्णन आ प्रकृति के विख्यात कवि मनले बानी। उहाँ के आपन पाठ आलेख जवन नालन्दा खुला विवि पटना के एम ए(भोजपुरी) के 9वां पत्र में संकलित बता ओकरा में विकाकाल के कवियन में शामिल कइले बानी।

देखी तनी मधुमास के एगो चित्र जवन देहाती जी पेश कइले बानी-

उठल मास मधुआइल
बाग बाग में मोज़र लरकल
जरल घास हरियाइल
——
देखि ह हो परास के फूलल
झूँठहू में भंवरा के भूलल
जान दे देवे पर तूलल
भन भनात लरीआइल।—-( देहाती दरपन, पृष्ठ 33)

ईहाँ पर शोध डॉ श्रीमतीं ज्योत्स्ना प्रसाद। देहाती जी के किताब के नाव ह ‘देहाती दुलकी’बाकिर ज्योत्सना प्रसाद ‘देहाती दरपन’ के प्रकासन करइले बाडी। (क

पं श्याम बिहारी तिवारी देहाती जी क लिखल विरह के आग के धंधोर के लहास देखीं। विरह में गर्म सांस के लोर के सुख गइला के उपमा शायद ही विश्व साहित्य में कवनो भाषा मे मिले-

आँख कहे हम लोर गिरायब
साँस कहे हम तुरते सोखब
इहे देख के पपनी कइलस
हम त अब विचवनिया होखब
मुंदले मुंदले आँख पिराता।।

भोजपुरी के साहित्यिक कविता के शुरुआती साहित्यिक कविता के देखल परखल जरूरी बा।
देहाती जी के एगो कविता बा – सुख गइल बरसात। एह कविता में

सुख गइल बरसात भइया
सुख गइल बरसात भइया

पेट काट के खेत कमइनी
दाना बोअनी भूसा खइनी
माटी में मिल माटी भइनी
जर गइल जजात
भइया …सुख गइल बरसात भइया

खेत जोत खढीआवल बाटे
बिया बाल गिरवाल बाटे
बडकी आस लगावल बाटे
कइसे खायब भात /भइया …सुख गइल बरसात भइया

कइसन बा अबकी के मंहगी
उडल इहाँ से लहंगा लहंगी
रुई लाव भर भर बहंगी
घर ही चरखा कात/भइया …सुख गइल बरसात भइया।

देहाती जी श्रृंगार रस के सङ्गे सङ्गे हास्य रस के कवि रहनी। देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर के चरितार्थ करत रहीं-
तू हउव पिया ललका पियाज
हम तीत लवंगीया मिरचाई
तू इंजिन के कोयला कलूठ
हम भूइयाँ के छाँटल छाई।

देहाती जी के एगो कविता बा ‘का का देखनी’।

का कहीं केतना देखनी, का का देखनी
भीतरी ना देखनी बाहर के लिफाफा देखनी।
आरे भाई अइसन सत्कार कतहूँ ना मिलल
देहातियो के साथे खाये के तकाजा देखनी।

देहाती जी आपन छोट जीवन में जेतना भोजपुरी के भंडार भरले बानी उ भोजपुरी साहित्य में मिल के पत्थर बा। भोजपुरी साहित्य के भंडार भरे में एह साहित्यकार के चमापरन के तरफ से लमहर योगदान मानल ज़ाई।

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