अक्षय नवमी के कथा : शशि रंजन मिश्रा

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अरे महाराज दम धरीं… कथा त कहबे करब…

बाकी बिना पान सोपाड़ी आ दक्षिणा लेले इ मिसिर बाबा के पोथी के पन्ना ना पलटाई
कम से कम ग्यारह रोपेया इ पोथिया पे चढ़ाईं त हमहूँ आगे बढीं
का कहत बानी… पान आ सोपाड़ी नईखे… अरे भेजीं इ महँगुआ के … रामचनर पटेहरी के दोकान कवन कोस भ पे बा, भाग के जाई आ दउर के आई

तब ले कथा के भाव सुनी.. मेन कथवा हम बाद में कहेंगे…
ए बाबू साहेब जानत बानी, सभे बरत-त्यौहार एक के पीछे एक… आ सब एक दोसरा पे डिपेंडेंट.
अरे चिहात काहे बानी ! डिपेंडेंट ना बुझनी ह की हमार बतिया ना बुझाईल ह ?
अच्छा-अच्छा , त अंग्रेजी बुझिला !!!
हँ, त कहत रहीं… सभे बरत एक दोसरा पे निर्भर बा |
सोहराई बितल त गोधन आईल… दिवाली के बांचल लड्डू मिठाई एह गोधन में निपटारा हो गईल… त हमार कहलका ठीक बा की ना?
फेर आईल छठ…
आरे हँ … रउआ घरे त भईल रहल हा… ठेकुआ आ कचवनिया त बनले होखी | काहे ना दू-चार ठेकुआ कचवनिया सीधा खातिर बान्ह लेनी ह …
लीं हई मंगरूओ आ गईल… पान सोपाड़ी साथे |
त कहत रहीं छठ के बाद इ अक्षय नवमी के अयिला के |
कथा शुरू करत बानी… इ लीं हाथ में फूल ,पान, सोपाड़ी… कुछ दरब दक्छिना भी निकाल लीं |
आँख तोपिके ध्यान करीं ….
ओम बिसनु.. बिसनु बिसनु…. अमुक गावें , अमुक नावें, अमुक गोतर अमुक पितर… पधारीं | एह आंवरा के फेड के नीचे हमरा संगे अक्षय नवमी बाबा के कथा सुनी |
हाथ के सभे चीज नीचे राखीं… आ हाथ जोड़ीं |
परेम से बोलीं – बिसनु भगवान की जय |
त कथा बा-
“एकदा नैमिशारण्ये……. प्रणमामि शम्भो||”
ना बुझाईल त हिंदी में अरथ सुनीं-
एक बेर … निमिषा के जंगल में इकट्ठा भईल…
अरे ! घुमे फिरे… आ आपन पोसुआ सवरीयन के जंगल के हवा खियावे | इनर महाराज के हाथी सरग में बयिठल बयिठल पगलात रहे… भोला बाबा के बैल के हरियरी चाहत रहे… त मय देवता जंगल ओरे चलले… कि चल ए मन, ढेर भयिल रम्भा-मेनका सुनरी लोग के नाच… सरग में खा- पिअ आ दिनभर बईठ के नाच देखला से देह के दुर्दशा भईल जात बा… गणेश बाबा के कोलेस्ट्रोल बढ़ल बा… तोंद नईखे कम होत… जंगल के हरियरी के हवा लागी त मन-मिजाज हरियर हो जाई |
अब जंगल में डेरा डलाइल आ बयिठकी लागल त एक जाना ब्रह्मा बाबा से कहले-
“की ए बाबा, सोहराई बित गईल… लक्ष्मी जी के पूजा मिलल… गणेश बाबा के लड्डू भेंटायिल… अभि ले पाचल नईखे… डेकार मारत बाड़े… गोधनो कुटायिल, आ छठो बीत गईल… माने एह साल के कोटा पूरा हो गईल… अब हमनी के कवन पूजा भेंटाई जवना से हमनी के जाड़ा कटो …
ब्रह्मा जी कहले- अरे जाड़ा में नाक ना बहे आ देह में कैल्सियम के कमी ना होखे एह से आंवरा खाए के चाहीं | एह से अईसन बरत बतावत बानी, जवना से हमनी के जाड़ा में पूजा चढ़ी आ हमनी के जाड़ा कटी |
एक बेर लक्ष्मी जी घुमे निकलली… हँ, उहे दिवाली के बाद…
सोचली की हमार पूजा त हो गईल, बाकी हमार मरद के पूजा त भयिबे ना कईल … आ एने गउरा बहिन के भी पूजा भईल बाकी भोला बाबा छूंछे रह गईले |
हे मन… का करीं !!! हमहीं पूजा कर देत बानी | बाकी भोला बाबा के हम पूजा करीं आ गउरा बहिन खिसिया जास त बड़ फेरा बा |
ध्यान लगयिली … त आंवला के फल लउकल.. कहली की इ धात्री फल में त तुलसी आ बेल दुनो के गुण एकरा के ही पूजा करब त दुनो जाना के पूजा हो जाई आ गउरा बहिन खिसियइबो ना करिहें |
त लक्ष्मी जी ओही आंवलवा के बिसनु आ शिव के प्रतिक बना के पूजा कर देली |
दुनो जाना प्रसन्न भईले | आके कहले- ए लक्ष्मी, जईसे तू आज हमनी के पूजा कयिलू ओहसे तहरा अभी कमी ना होखेवाला पुन्य मिलल | एह पुन्य के क्षय ना होई |
दुनो जाना आशीर्वाद दे घरे गईले |
ब्रह्मा बाबा कहले – इहे पूजा इ पृथ्वी पे जे करी ओकरा ओइसहीं अक्षय पुन्य मिली |
लीं ये जजिमान इहे कथा त रहल ह …
बोलीं – बिसनु भगवान की जै …. भोले बैजनाथ की जै
अब निकालीं कुछो खाए पिए के.. एह आंवरा के फेड़ के निचे कुछ खा के हमहूँ पुन्न कमाँ लीं | आरे छठ के बांचल ठेकुआ- कचवनिए खियायीं | कहबे कईनी ह पहिलहीं कि इ नवमी, छठ पे डिपेंडेंट बा …
अच्छा त आंवरा के अचार लायिल बानी… दिहीं, सुखलो आंवरा के खाए के महातम बा |
स्कन (द) पुराण में लिखल बा…
आरे ना सकरकन पुराण ना… स्कन्द पुराण के कातिक महातम में बा की जे सुखलो आंवरा खायी उ नारायण हो जाई –
‘धात्री फल विलिप्तातांगो धात्री फल विभूषित:। धात्री फल कृताहारो नरो नारायणो भवेत।।’
त एगो ठेकुआ आउर बढायीं… ब्रहण के मुख ब्रह्मा के होला.. नारायण त रहबे करेले… ढेर आशिर्बाद बा | अयिसहीं सालों साल ठेकुआ कचवनिया खियायीं |
आबाद रहीं…
बोलीं बिसनु भगवान की जै…

– शशि रंजन मिश्रा जी

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