अनन्त : एगो हुँकार

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव विवेक सिंह जी के लिखल अनन्त : एगो हुँकार, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा इ रचना कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।

युगम- युगम अमर अनन्त रहे
उ परेम रस भाखा भोजपुरी होखे

ई सोच, ई फिकीर हमरा अंदर काहे । कवना फायेदा खातिर। कवन लालच घेरले बा, समझ मे नइखे आवत।ई हमरा समझ से परे काहे बा।खुलल आसमान होखे। बदरी भा टटहात घाम होखे। दिन होखे चाहे रात होखे।

हमेसा मन में चलत एकही बात बा।

जेपे करी तन, मन, धन बलिदान
उ अनन्त मये भोजपुरी होखे

अइसन अनेको सवाल हमरा के चैन से बइठे नइखे देत।शुकुन के निन सुते नइखे देत। का हम निशा में रहत बानी।भा लोग जवन कहत बा उ हम साचो हो गइल बानी।’का’ हम पगलेट भइल जात बानी।
“ई सवाल अनन्त खुदे अपना से पुछले”।

आदमी अपना समस्या के जाल में उलझ के हतास अउर उदास होला।तब उ अपना अंदर के दु रूही रूप के देख पावेला।फिरो उ रूही रूप से बात करके आपन जटिल समस्या के निदान खोजे ला

निकले कबो कंठ से जयकार
उ जय हिंद के बाद जय भोजपुरी होखे

उहे पन्ति के मुक्ता अनन्त अपना रूही रूप के सुनवलस।

विवेक सिंह जी
विवेक सिंह जी

समय के मुताबित समाज के बदलाव त केहू रोक नइखे सकत।लेकिन समाज मे फईलत नग्नअश्लील भाखा, घृणात्मक दृस्टि, कुटिल बिचार आ समाज के बिखण्डता त रोक सकत बा। एतने में उनका कान्ह पर केहू के हाथ पड़ल आ उनकर एकांत भंग हो गइल।

“का भाई फिरो तू बरबरात बारअ। ई आदत कहिया छूटी। ई बात उनकर शहर में रहे वाला बचपन के संघतिया रुस्तम पुछलस।”

रुस्तम आ अनन्त बचपन के संघतिया रहे लोग।उ लोग के सोभाव में बहुत मेल रहे। लेकिन सात क्लास तक साथे पढला के बाद।रुस्तम के अब्बा रुस्तम के पढ़ाई खातिर अपना साथे शहर लेके आ गइले।

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तब से अब तक ई दुनु संघतिया खाली छूटी में मिलेला।कवनो बिशेष हिन्दू परब होखे तs रुस्तम गावे आ जास। आ जब कवनो मोहमदन परब आवे त रुस्तम अनन्त के शहर बोला लेस। बचपन कब जवानी में बदलल ई दौड़ पते ना चलल।काहे की उ दुनु के देह अलग-अलग रहे। लेकिन परान एक।जमाना के साथे साथे उहो लोग में बदलाव आइल।

शहर में रहला के बावजूदो रुस्तम के अंदर आपन गांव अपना माटी आपन भाखा से अनघा परेम रहे। साईद इहे उ तागा रहे जवन अनन्त आ रुस्तम के अभी तक एकमें गुथले रहे। अनन्त ठेठ गांवई रहले। गांव में रहला के बावजुदो शिक्षा के स्तर बहुते अच्छा रहे।नया दौड़ में रहला के साथे साथे उ आपन समाज अपना सभ्यता के मानस अउर पसन्द करस।

रुस्तम के टोकला के बाद अनन्त अपना अंदर गम्भीर सास भर के कहले।

“”तू अच्छा से जानत बारs की ई बरबराहट कइसे छूटी।हमरा अंदर गुजत हर सकेंड एकही हुँकार बा।

नवजीवन में जब-जब छाह मिले
उ आँचर माई भोजपुरी होखे

अउर जानत बारअ हमार आतमा का कहत बा।

“”उ जीभा घिच ली जवन अपना शबद से माई के चिर हरत बा।हम उ बाह काट दी जवन ई नगन शबद पिरो के अपने माईं के आबरू के सरेआम बेचत बा। उ तमाम लोग के बहीर बना दी जवन ई शबदन के सुन अपना में मस्त होता।

गुनाह खाली इहे नइखे ऐसे बड़ गुनाहगार उ लोग बा। जे सब कुछ देख सुन के चुप रहेला। अगर ई बगावत बा त हम बागी बने के तैयार बानी।हम फिर से अस्त्र उठावे के तैयार बानी।एगो अउर आंदोलन करे के तैयार बानी।

हम अपना के बहुत पतित महसूस करत बानी। जब दोसर परानत में आपन भोजपुरिया मार खात तारे। भगावल जात बारे।गन्दा गीत, गन्दा सिनेमा ख़ातिरि जानल जाले। हँसी के पात्र बन जात बारे।

ई कब सुधरी कइसे सुधरी।का एकरा ख़ातिर कवनो भगवान अवतार लेके अइहे।भा हमनी के ही आगे आवे के पड़ी। आपन खून आपन पसीना से आपन बिगड़त नवका पीढ़ी अउर उटपटांग शब्दन से रचल गीत गोवनई के मिटावे के पड़ी।

ई बात सुन रुस्तम के मुह खुला के खुला रह गईल। आँख के पलक गिरे के नाव ना लेव।

रुस्तम तनी गम्भीर होके।””तू हेतना काहे सोचत बारs। सब समय के हिसाब से बदलेला। अपना भोजपुरी के जे गन्दा करत बा एक दिन उहो मुह के भर जरूर गिरी। अनन्त आत्मिक जोस में होके ” जहिया गिरी तहिया नु। हम चाहत बानी की गन्दा अउर अश्लीलता के बढ़त ई भीत अभी ढाह दिआव। ताकि बाद में अउर जटिल समस्या ना होखे।

रुस्तम थोड़ा सा सास अपना अंदर खिचले।”” अनन्त तू ज्यादा जन सोचल करs।हमू चाहत बानी की आपन भोजपुरी के एगो अच्छा नजर से देखल जाव।ओकरा मान्यता मिले सम्मान मिले।कहियो आपन भोजपुरीया रहस उनका के कवनों कबो तखलिफ ना होखे।

लेकिन ई सब ख़ातिर ई जरूरी नइखे। की केहू के मारल जाव।केहू के काटल जाव।एकरा के हमनी सब मिल के एगो अभियान चलाके। आंदोलन कर के समेटल जा सकत बा”। अउर ह जवन काम शान्ति से हो जाव ओसे बड़ बात कवनो ना कहाई।

अनन्त अपना पास पड़ल एगो माटी के ढेला उठा के फेकत बोलले। “”ई सब मे बहुत टाइम लागी।केहू मानी केहू ना मानी।ई सब ख़ातिर हमनी सब के अपना आप से लड़े के परी। हर एक आदमी के समझावे के पड़ी। हर नवका लइकन के जगावे के पड़ी ई अभियान खातिर। लेकिन उ मनिहन तब नु।

रुस्तम अनन्त के कान्ह पर हाथ रख के “” तब अच्छा से सुन लs।हम तहरा साथ बानी। आ आज होलिका दहन बा। हमनी के आज आपन सब संघतियन के एक जुट कर के दहन के सामने स्वच्छ भोजपुरी के प्रतिज्ञा लिहल जाव।तब पता चल जाइ की के आगे आवल चाहत बा। अउर के मना कइल चाहत बा। तू आपन बात उ सभा मे रख दिहs। हम समर्थन कर देम””।

अनन्त खुश होके”” चलs तब सोचत का बारs। चल के सबके सूचित कइल जाव।

अनन्त अउर रुस्तम उठ के गांव के तफर चल देलस लोग।

रात के बेरा सब केहु ऐकाठा भइल।गांव के बुजुर्ग से लेके जवान, लइका सब केहू।होलिका दहन के तैयारी जो चुकल रहे। सब केहू अब होलिका जरावे के बात करत रहे। जइसही गांव के परधान जी आग लगावे गइनी।रुस्तम उहा के रोक के बोलल।

“” रुकी परधान जी, अनन्त कुछो कहल चाहत बारे।ऐजा सब केहू उपस्तिथ बा।ऐसे अच्छा मौका तहके कबो ना मिली अनन्त।तू आपन बात रख दs केहू साथ रहे ना रहे हम बानी। अनन्त के हिम्मत बढ़ल अउर अनन्त बोले के शुरू कइले।

“” समाज के हर व्यक्ति के दायित्व बा। उ समाज के स्वच्छ अउर सही मागदर्शन करे।काहे ना उ शिक्षा हो। केहू के पारिवारिक समस्या हो।चाहे आपन सभ्यता अउर संस्कार हो।ई सब के एगो सही राह मिले। जैसे आगे आवे वाला पीड़ी अच्छा राह पा सके।

भारत मे चल रहल बहुत से अभियान बा।ओमें से एगो स्वच्छ भारत अभियान बा। बाकिर हमनी भोजपुरिया पट्टी में जवन भोजपुरी के गन्दा कइल जाता।ओकरा ख़ातिरि हमनी के का दायित्व बनत बा। का हमनी सब उ नइखी रोक सकत। का आपन भोजपुरी के स्वच्छ नइखी कर सकत।आज रुस्तम से एहि बिषय में बात भइल घन्टो दुपहरिया।गांव से बहरी अपना गांव के देखत। की हमनी आज कहा बानी जा काहे हमनी अश्लीलता के नजर से बाहर के लोग देखत बा।काहे भगा देता दोसर केहू अपना परांत से हमनी के।

ई सब कमी हमनी में बा। आपन स्तर गिरा चुकल बानी हमनी सब।जब तक हमनी अपना माटी, आपन भाखा, आपन सभ्यता के इज्जत ना करब जा तब तक हमनी के कहियो इज्जत ना मिली।

ऐसे हम अपना सभ्यता अपना माई भाखा के इज्जत अउर सम्मान ला लड़म। जब तक सास रही हम आगे बढ़म। ऐसे आप सब से निहोरा करत बानी। हमार साथ दी आ आपन भोजपुरी के विकसित करी। ताकि आपन सर उठा के हर भोजपुरिया कहियो कवनो देश मे चलस। अपना भाखा से लजास ना सीना तान के कहस की हम भोजपुरिया हई।

आज हम अग्नि के साक्षी मान के अपना भोजपुरी माई ख़ातिरि परन करत बानी। जब तक अश्लील मुक्त भोजपुरी ना होइ तबले हम आवाज उठावत रहम।अउर अपना माई ला आपन तन, मन, धन निछावर करत रहम।

अनन्त अपना रूही रूप के जवन मुक्ता सुवले रहले। उ सब केहू के सामने गवले।

युगम-युगम अमर अनन्त रहे,
उ परेम रस भाखा भोजपुरी होखे।
निकले कबो कंठ से जयकार,
उ जय हिंद के बाद जय भोजपुरी होखे।

नवजीवन में जब-जब छाह मिले,
उ आँचर माई भोजपुरी होखे।
चली अंगूरी पकड़ छोटपन में जेकर,
उ गिरहस्थ पिता भोजपुरी होखे।

पली, बढ़ी, पढ़ी जहा हम,
उ माटी खांटी भोजपुरी होखे।
मिले जहा संस्काअउर सम्मान,
उ आदर्श समाज भोजपुरी होखे।

जवन लिखी,बाँची,आ गाईं हम,
उ मीठी मिश्री शब्द भोजपुरी होखे।
आषाढे देही शने जहा पाक,
उ धनहर खेत कानव भोजपुरी होखे।

लिपटे रोम रोम अउर माथे जहा धुर,
कार्तिक बावग खेत रवि भोजपुरी होखे।
दिखे हर जाति एक संग जहा,
उ गांव हमार भोजपुरी होखे।

जहा श्लीलता के पाठ मिले,
उ विश्व बिख्यात भोजपुरी होखे।
जे अपना भाखा से कहि ना लजाएँ,
उ हित, मीत खाँटी भोजपुरिया होखे।

जेकरा कान में घुल के करेज में समाये,
उ मधुरस बोली भोजपुरी होखे।
तृप्त करे मन, दोसरा के सिखे पे मजबूर करें,
उ देशी बोली हमार भोजपुरी होखे।

अश्लीलता के जमल जटिल जड़ जे काटे,
उ कुल्हाड़ी श्लिलल तेज धार भोजपुरी होखे।
जेपे करी तन, मन, धन बलिदान,
उ अनन्त मये भोजपुरी होखे।

युगम-युगम अमर अनन्त रहे,
उ परेम रस भाखा भोजपुरी होखे।
निकले कबो कंठ से जयकार,
उ जय हिंद के बाद जय भोजपुरी होखे।।।

जब उनकर ई प्रतिज्ञा भरल गीत खतम भइल तs। सब जगह गहिरा चुप्पी खाड रहे।खाली आँख आपन भोजपुरी के परेम के नापत रहे।उहो अपना किमती मोतीयन से।आ सामने होरिका धधक धधक जरत रहे।

सब के मुह से एक साथ आवाज निकलल। हमनी सब तहरा साथ बानी जा अनन्त। उ आवाज में केहू छोट बड़ ना रहे। फिरो जय जयकार के गुज उठल।
अउर धुर के साथे साथे अबीर उड़ल।

जय हिंद जय भोजपुरी।।

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