बाथा : दिलीप पैनाली

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बाथा अइसन चीज ह$ जवन इंसान का जिनगी में उपटत रहेला, कबो शारीरिक त कबो मानसिक त कबो समाजिक । लेकिन इ बाथा अब हाइटेक हो गइल बा आ आपन परिसर बढा लेले बा ।अब इ सास पतोह का पटला से, मरद मेहरारू में पटला से, केहू का लड़िका बा लड़की का परगति कइला से, मरदा का बा मेहरारू का सोशल साइट पर व्यस्त रहला से, फेसबुक पर आर डँराड़ भूलइला वगैरह वगैरह से उठे लागल बा बढ़े लागल बा।लेकिन आज हम बहुते पूरान बाथा के चरचा कइल चाह$तानी ।

दिलीप पैनाली जी
दिलीप पैनाली जी

अइसे एह बाथा से अधिकतर लोग परिचित होई —जवना के नाम हऽ हाथा के बाथा से —–तब हमार बेसी से बेसी दस बा बारे बरिस के उमिर होई गंहू में पानी पटवे के रहे अपटा ना उबिछ के, लढ़क में हमहुँ चल देनी हाथा चलावे। ई थोड़े पता रहे जे हरवाही,कुदरवाही, ढ़ेकिवाही आ हाथावाही के बाथा ना सुते देवेला ना बइठे देवेला।

श्रीकिषुण ठाकुर के बनावल हाथा पनरे बरिस का बादो खिया के दस चिरुआ पानी उबिछे लाएक रहे,हांथ में उठा के पानी उबिछे लगनी । ओह दिन त बडी आनंद आइल ।असल माजा बिहान भइला मिलल जब कवनो अंग हिलबे ना करे ।लगनी बाप दादा चिल्लाए। आजी तेल में लहसुन पका के लागल मले। जलने मले हम ओतने चिल्लाई ।दू दिन का बाद उ बथा ठीक भइल

समे बहुत तरह का बाथा के इलाज क देवेला। त आशा बा आज का तारीख में देश में उपटल बथनों के कवनो ना कवनो इलाज जरूर होई।आ होई त कारगरे इलाज होई।

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