अमन पाण्डेय जी के लिखल भोजपुरी आलेख पहचान के संकट

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हर सभ्यता आपन आरम्भ अउरी चरम के एगो मापदंड लेके आवेले , जवन आरम्भ होके तरुण फिर चरम पे आवेले ।

चरम अवस्था के का लक्षण हो सकेला ? बस अभियांत्रिकी विकास ? की ज्ञान के व्यापार और बौद्धिक संपदा के केराया ही सभ्यता के चरम व्यवसाय व सामाजिक स्थापना के एगो परिचायक ह ?
हम अइसन नइखी कहत की विकास यात्रा ना होखे के चाही! विकास होखे के चाही काहेकि विकास के अनुक्रम ही सभ्यता के सार्थकता के देखावेला , अगर बिकास ना होखि त आखिर सभ्यता के लो कइल का आज के ई यक्ष प्रश्न मन मे उठत रही !

विकास के दु आयाम के चर्चा करतानी उपभोगवादी विकास ,एगो सतत विकास ।

ई कुल्हि आएम में लागू होला आचार विचार, संस्कृति,संबंध,क्रीड़ा, मनोरंजन, शिष्टाचार, कार्यसंस्कृति, और अध्यात्म और धर्म के तार्किकता तक व्यापकता बा एकर ।

हम रउआ मानसिक विसंगति या आपन लइका के मन मे रचल बसल दिमागी संरचना के एक बैग नइखी हटा सकत काहे की उ बहुत ढेर दिन के यात्रा के दौरान फीड भईल बा दिमाग मे ।
सीधे संस्कृति और सभ्यता पे आवतानी …….

संस्कृति सभ्यता के आधार ह , संस्कृति एगो धुरी है ,एगो खम्हा ह जवना के सहारे सभ्यता के मूर्त रूप मिलेला ।

रउआ आ हमार माई जवना भावना से घर के चूल्हि में खाना बनावत घरी खदकत अदहन में चाउर डरला से पहिले 2 दाना चाउर चूल्हि के ओइन्छ के आगी में डार देली लो,ई संस्कृति के एगो झलक ह की हमनी के अग्नि और अन्न के देव तुल्य मानेनी…और ओहि परिवार के युवा पीढ़ी खाना खइला के बाद कुछ लो खैनी रगड़ के खाला त कुछ को खेत या कहि सुनसान अड्डा देख के सुट्टा मार लेला लो… त देखी एहिजा सीगरेट और सुर्ती सभ्यता में फर्क करत बिया बाकी चूल्हि के संदर्भ वाली संस्कृति अभी ले एक ही बा जवना में मय सभ्यता समाहित बा।

हमनी के आपन देश के वैभवशाली सभ्यता के देख के सीना गर्व से फूल जाला की हमनी के विकास के स्तर हईं रहे !

जब यूरोप के लोग नग्न रहत रहे अशिष्ट शिकारी रहे ,,,ओह समय हमनी के अंतरराष्ट्रीय व्यापार करत रहनी ह जा,,शिल्पकला , ज्ञान उपचार में चरक ,धन्वंतरि, और गायन में हरिदास ,तानसेनके के साथ हमनी के भूभाग पर महाकवि कालिदास जी जइसन महामानव साहित्यिक हस्ताक्षर भी हमनी के धरोहर ह ,,,,

खैर दुख के बात आज हमनी के पश्चिम के उच्च मानेनी काहे की उ लो अंग्रेजी बोले ला ह न ?

उ लो गोराई में बीस बा ,,लमहर कद काठी होला ,,,इहे कारण ह न ?

आज जरूरत बा हर भारतीय के एगो जामवंत के जे हमनी के पुरातन विद्या, कला कौशल्य और विदोपनिषद के ज्ञान के आज पुनः जागृत करे के जरूरत बा जेमे ,बहुत पहिले विमान शास्त्र ,,शस्त्रास्त्र के ज्ञान ,,राजनीति पारिवारिक संरचना ,अन्य भी बहुत चीज ।

बहुत सुनियोजित दुर्घटना बा हमनी के साथ सभ्यता के ओढला के ,,,,,,,,हमनी के शादी बियाह त सात जन्म के रिश्ता मान जाला जेमे अग्नि के शाक्षी मान के सात फेरा लियाला दू नया जीवन एक मे एकाकार होला और अंतिम तक समर्पण और एकनिष्ठता व त्याग के बचन देला ।

पश्चिम में शादी एगो समझौता ह आज राउर सीगरेट के धुंआ मालकिन के पसंद ना आइल त तलाक!

दोसरा प मन आइल त तलाक !
आपसी मेलजोल में कमी का आइल त तलाक !
हमनी के सभ्यता में समन्वय के अपार संभावना बा जेमे समाज परिवार सब आजाला ।

घर मे दु परानी का बना के खा लेला या ना भी खा पावेल बगल के लोग ना जान पावेला।

भारतीय समाज मे भी स्वतंत्रता बा बाकी निर्वस्त्र होके फ्लैगमार्च कइले के स्वच्छंदता नइखे ,,,,,,ना ही हमनी के भारतीय परिवेश में स्वच्छंदता समाहित हो सकेला ।

हमनी के हर कदम पे सामाजिक दायित्व से बान्हल बानी जा जवन हमनी के तकनीकी नइखे बाकी एगो मानवीय निकाय में श्रेष्ठ बनावेला ।

हमनी के समाज के विपरीत कुछ भी पश्चिम के अइसन नइखी कर सकेनी जैसे और लोग प असर पड़े ।आज नारी सशक्तिकरण के बात जोर शोर से होत बा केतना जमीन पर आइल उ हमनी के जानत बानी । नारी हरमेसा से हमनी के संस्कृति में “स्वामिनी” के दर्जा पाइल रहे ,,आज भी बा हमनी के हर सृष्टि के केंद्र नारी के मानल जाला चाहे उ एगो जन्म होखे या पुरा परिवार के देखभाल एहि से ,,,,,,नारी सर्वत्र पूज्यते । के हमनी के चरितार्थ करेनी जा ।

हमनी के समाज मे नारी नाक कबो विनिमय के चीज़ रहल ना ही कबो ईगो समान के तरह व्यवहार्य ! यह बात के साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता के 3000 साल पुरान मातृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था बतावेला ,अपवाद बा त बस्स विदेशी आक्रांता के शासन काल जेमे नारी प घोर अत्याचार भईल बा।

हमनी के आजाद भइनी त हमनी के संस्कृति बस घायल रहे मरल ना रहे बाकी उ मरल तब शुरू हो गउवे जब हमनी के आपन संस्कृति ,सभ्यता के परिसंस्करण कइले बिना अंग्रेजी ,पश्चात सभ्यता ओढ़ लेहनी जा ,उहो बिना कवनो परीक्षण के …………..

आधुनिकता हमनी के यहां अभी जब चलन में बा उ हमनी के विकसित कइल नइखे उ त उधार के ह ,,,तर्कहीन ह,,, ओढ़ लिहल ह जेमे लोग कर्तव्य से ढेर अधिकार पे बल देला लो ,,,,,,हम का क सकेनी ई नइखे बाकी हंमके का मिले के चाही ई जरूर याद बा, बहुत प्रकरण अइसन बा।

इहो पढ़ी: दिनेश लाल यादव निरहुआ के पत्रकार शशिकांत के साथे गाली गलौज आ मारे के धमकी

दुखद बा हमनी खातिर ई ,जवन हमनी आज समाज मे देश मे परिवार में और कार्यात्मक इकाई रसोई से लेके आपन शयनकक्ष तक ई उधार के आधुनिकता हमनी के सामाजिक पारिवारिक, सांस्कृतिक ,अउरी शैक्षणिक व्यवस्था के साथ ही हमनी के भ्रातृत्व अउरी स्नेह के बंधन, पारिवारिक दायित्व बोध के माधुर्य के निगल रहल बा आ हमनी के कुछ नइखी क सकत ! वाकई में समय के पहर काफी आगे जा चुकल बा जवना के एकाएक ना बदल सके केहू बाकी अगर कहि से गंदगी के अम्बार हटावाल कठिन बा त ओहिजे निर्मलता के बाढ़ ले आवे के प्रयत्न करे के चाही ।

हमनी के सभ्यता में “काम ” के अद्भुत व आध्यात्मिक उत्कर्षक वर्णन बा, आज दुनिया मे “काम”वासना और तृष्णा के आगी में जरत बूझत बा बाकी हमनी के सभ्यता में पूर्व में कहल गइल बा “काम ” के अगर युग्म चेतना से बा त ई सर्जन के अनुपम उदाहरण ह, अगर वासना से बा त ई खाली भोग ह, शारीरिक तृष्णा ह, हमनी के अग्रणी साहित्यिक पुरोधा’ प्रसाद’ जी कामायनी में वर्णित कइले बानी – “कर्म का भोग भोग का कर्म यही जड़ चेतन का आनंद ,”
काम से सृजन के परिकल्पना बा एमें बाकी आज हमनी के उनकर वंशज हईं कहा जातानि जा?

आज सर्च इंजन में 70 फीसद से ढेर पोर्न फिल्म सर्च होला एगो इंटरव्यू के मुताबिक , ! समाज मे संचार क्रांति के इहे परिणाम हमनी के जोहत रनी जा ?

जाए दी …..सही त ई रहल ह न कि बेटी बेटा लो के घर मे सिखवाल जा रहे कि बेटा नम्रता व्यक्ति के आभूषण होला ! आज के बेटा, बेटी एटीट्यूड नामक धारणा से मण्डित बा लो सच मे आज ले ना बुझ पौवी की एटीट्यूड कवन चिड़िया के नाम ह s? बाकी घर में परिवार में प्रेम संबंध में पति – पत्नी के बीच एटीट्यूड और बनावटी ढकोसला रिश्ता के नींव दिन दिन कमजोर करत बा ।

त्याग और समर्पण ही जीवन के जब एकदूसरा के साथ मे खुशी और गम में बिता देला ना बुझाई ।

हमनी के सभ्यता अउरी साहित्य में सौंदर्य पे बहुत लिखल पढ़ल गइल बा बहुत अनन्य विषद चर्चा भी बा।

सौंदर्य से प्रेम होला अनुराग होला ओकरा खातिर त्याग होला ।सौंदर्य के विभिन्न आयाम बा अउरी ओकरा आकर्षण के भी ……….चाहे सीता राम के पुष्प वाटिका में “बाल विलोकत रॉज कुंवर दो आए” गीत में रहे चाहे , पान की लालिमा अधर हो रक्तिम करती हुई तब आकर्षण का केंद्र बनती है जब — खाई के मगहिया पान ………जइसन गीत से सौंदर्य पान में दिखाई दे देला । जब प्रेम और अनुराग ईश्वर के भक्ति के नीयन पाक बा त ऐमे प्रदर्शन कइसन ?

प्रेम त अनुभूति के और दर्शन के विषय है फेर प्रदर्शन काहें ? परिधान हमार सभ्यता और रहन के परिभाषित करेला हमार चिन्तन शक्ति के सूक्ष्म कुंजी ह हमनी के आभूषण अउरी परिधान !

परिधान के अभिप्राय तन के ढकल होला ,खास कर के ईश्वर के अनन्य अनुकृति “स्त्री” जवन हमनी के समाज मे चिर काल से स्वामिनी के दर्जा पवले बिया ओकरा के वस्त्र के सूचिता और संस्कार त देखल मौलिक बा ! बाकी लिखे वालें भय से न लिखे के कोशिश करेलन की नारिअधिकार चेतना के विरोध के रूप में ना देख लिहल जाव ,,,,,,बाकी साँच के आंच ना होखे के चाही !

आज गरीबी ,असमानता अउरी भ्रष्टाचार जाइसे हमनी के हड़बड़ी में कीनल लोकतंत्र के परिणाम ह ,,,,,,,,,,ठीक वैसे संबंध के संकट पारिवारिक कलह ,रिश्ता के विखण्डन , संबध के बिखराव आदि हमनी के पश्चात सभ्यता के अवनावल से ह ,,,,,,,,ई कड़वा सच ह की आज परिधान व रहन सहन एगो संस्कार से ज्यादा प्रदर्शन ह, सड़क से जात कवनो युवती के ड्रेस अगर भारतीय ना पश्चात ह सिरफिरे दिमाग के बेहाया लइका टिप्पड़ी करेला, आपन पापी आंख से चक्षुतृप्ति करेला ओह लईकी पर ! एहिजा का केकर पूरा दोष बा कहल आसान नइखे ! काहे की सुधार और चिंतन से हल निकल जा सकेला कवनो समस्या केे, अइसन कइल टिप्पड़ी में अधिकांश तृष्णा होखेला प्रेम ना !

कवनो सभ्य अउरी उदात्त परिधान के युवती जाली त कवनो आवारा भी या साधारण लइका भी ओकरा में नारी के पवित्रता के दर्शन पावेला और ओकरा के जीवनसंगिनी तक बनावे के आकांक्षा भी राखेला ,बाकी तृष्णा ना उ लईकी तृष्णा से खुद के और अपने स्त्री गरिमा के भी बचा ले जाले आपन स्त्रीत्व और परिधान के सुचिता से।

जवन ओकरा जीवन के मध्य व अंतिम काल मे ओकरा जीवन के चारित्रिक सद्भाव से प्रेरित शांति व आत्मसंतुष्टि के भाव लावेला।

सुंदरता तबले प्रासंगिक बा जबले उ आवरण में ढकल बा अनावरित भईला पे उ सौंदर्य ना ईगो नुमाइश बन के रह जाला ।

तुम कनक किरन के अंतराल में,
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो,
मौन बने रहते हो क्यो ?

नत मस्तक गर्व वहन करते
यौवन के घन रस कन झरते।
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो,
मौन बने रहते हो क्यो ?

अधरों के मधुर कगारों में,
कल कल ध्वनि की गुंजारों में।
मधु सरिता सी यह हंसी तरल,
अपनी पीते रहते हो क्यों ?
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो,
मौन बने रहते हो क्यो ?

बेला विभ्रम की बीत चली,
रजनीगंधा की कली खिली।
अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल,
कलित हो यों छिपते हो क्यों ?
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
मौन बने रहते हो क्यो ?

निर्लज्ज सौंदर्य वीभत्स होता है,
उससे वितृष्णा होती है,
लज्जा युक्त सौंदर्य ही
“सौंदर्य” कहलाता है. ई महाज्ञानी प्रसाद जी के लज्जा भरा सौंदर्य के पंक्ति ह ।

अब हमनी के आपन समय मे ई संसार के देख रहल बानी सुन रहल बानी हमनी के देखे के बा कि हमनी के जिनगी के सार्थकता ,पवित्रता अउरी प्रेम कवने स्तर के होखे के चाही । का प्रेम खाली फिल्मी रहन सहन से प्रभावित बा त शायद राधा कृष्ण के लता और प्रकृतिमय प्रेम झूठ रहल का?

प्रेम और सौंदर्य परिधान ,जगह , परिवेश ,समाज के दास नइखे । मानवीय सभ्यता अउरी संस्कार से अउरी आपन साहित्य व संगीत परंपरा में रॉक अउरी रैंप म्यूजिक जइसन दानव ले आके आपन मौलिकता के दोहन कइल जाइ त एक दिन हमनी के ई पंक्ति पे ठहर के तमाशा बन जाए के पड़ी।………..

“आंसू से भीगे अंचल पर मन का सबकुछ रखना होगा
तुमको अपनी स्मित रेखा से यह सन्धि पत्र लिखना होगा।”

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