रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी बाल कथा डोकी डोका

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एक रहली डोकी आ एक रहले डोका,डोका मरले डोकी रिसिया के चल दिहली, जाते जाते एक ठो बरगद परल, बरगदवा कहलस ये डोकी हमरे घरेलू रहबू, डोकी कहलि का खिअइब कहां सुतइब का ओढइब, बरगदवा कहलस गोदा खिआइब पत्ता बिछाइब पात्ता ओढाइब, डोकी कोहली तब तुहरे घरे नाई रहब, फेर जाते जाते एक ठो बकुला भेटाइल बकुलवा कहलस ये डोकी हमरे घरे रहबू ।

डोकी कहली का खिअइब का बिछइब का ओढइब। बकुलवा कहलस मछरी खिआइब, लेडई बिछाइब लेडई ओढाइब, डोकी कहलि तब तुहरे घरेलू नाई रहब।

फेर जाते जाते एक ठो मूस भेटाइल मूसवा कहलस ये डोकी हमरे घरे रहबू, डोकी कहलि का खिअइब कहां सुतइब का ओढइब मूसवा कहलस दाल भात खिआइब घरमे सुताइब रजाई ओढाइब, डोकी कहली तब तुहरे घरेलू रहब।

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रामचन्द्र जी
रामचन्द्र जी

एक दिन डोकी भात बनावत रहलि त पानी घटि गइल । डोकी कहलि ये मूस हम पानी के जात बाटी आ तू भात जनि चलइह नाई ते जरि जइब।डोकी पानी के चलि गइलि आ मूस का कइले केवाड़ी के किल्ली बन्न‌‌‌ कके भात चलावे लगले। बस का भइल बटुला मे गिर गइले आ जरि के मरि गइलें।

जब डोकी पानी लेके अगली ते चिल्लाति हई कि ये मूस केवडिया खोल,मूस ते मरि गइल रहले ,बोले कइसे ,डोकी गइली लोहार बोला के ले अइली आ केवाड़ी खोलवली ते देखति हई कि मूस बटुला में गिर के मरल हवें ,तब लगली रोवें आ का कहति हई।

वर छोडली बरगदवा छोड़ली तलवा भर बकुलवा छोडलीं हाय मूस हाय मूस, इहें कहि कहि लगली रोवे।

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