एगो एहसास | भोजपुरी कहानी | ‎अमन पाण्डेय‎ जी

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काहो सुनीता ! बड़ा जल्दी नइहर आ गईलू , बुझाता तहार दुलहा परदेश गइलन का?? “आपन दायाँ आंख के सोझा के लटकल बाल के अंगूरी में फंसा के गंगा पुछली” !!
ना हो तनी भउजी के तबियत ठीक ना रहुवे एहिसे भइया हमके विदा करा ले अइनी , कुछ दिन रहेम त भउजी के भी तनी आराम हो जाई हमहू हाथ बटावल करेम , ” आँख चोरावे के बहाना कs के सुनीता जबाब देहली” !!

सुनीता के छह महीना के भतीजा के खसरा के टीका लागल रहे सुई के दरद से लगातार रो रहल बा, सुनीता बाग में ओकरा के घुमा के चुप करावे के असफल कोशिश करतारी…!! सुनीता भी तीन मास के गर्भवती रहली, उनके हाथ में 6 किलो के तन्दरुस्त लईका रहे….. डेढ़ घण्टा में लईका के भार से हाथ मे दर्द होखे लागल, सुनीता के..!!

अमन पाण्डेय जी
अमन पाण्डेय जी

भादो के दिन में कब बादर पानी ले ले आवे कौनो ठीक नइखे….., बरखा के मौसम बनत रहे….आ सुनीता गोदी में लईका लेके आपम ध्यान कहीं आउर ही लगवले रहलीं …, और कहाँ ध्यान लाग सकेला ?आजु सुनीता के तीन महीना अइला हो गइल रहे नइहर में !! पाटीदारी के मेहरारू सन के इहे सूक्ष्म चर्चा के विषय रहे कि सुनितवा दु काहें , हरमेसा उदास रहेली…., दुबाराइयो गइल बियs…!

ई सब बात से बेफिकर सुनीता गोदी में भतीजा के लेके , आपन मरद के ख्याल में शून्य में डूबल बाड़ी…, उनकर होठ , ” चँदा मामा आरे आवs…” गुनगुना रहल बा !! जइसे ही उनकर आवाज धीरे होता लईका के रोअल चालू…!!

शंकर ( सुनीता के पति ), हमेसा सुनीता से कहस , ” सुनीता जानतरु जब तहरा गर्भ में हमनी के संतान रही न त हम तँहके रोज जी भर के हँसाएब, आ तहरा के रोज रामायण के पाठ कs के सुनाएब…., हमर लईका राम जइसन धैर्यवान, आ पराक्रमी होखी….!! ओकरा में सगरी सतोगुण के अंश रही…., आ सुनs मलिकाइन ! हमके तहार जीभ के भी ख़्याल बा चाट फुल्की के पुरहर स्टॉक मंगवले रहेम!!

रोज सुनीता से देर रात तक भावी सन्तान के बात होखते रह जाए….., बाकी एक दिन अइसन आईल कि धीरज आ सहनशीलता के कमी के कारण छोटमोट लड़ाई से दुनो बेकर तितर बितर हो गईल रहे, सुनीता त निश्चय भी कs लिहले रहलीं की उ फेर शंकर के घरे वापस ना जइहन…!!

सुनीता के ध्यान टुटते ही, बरखा के बड़का बूंदी पड़े लागल, सुनीता आपन भतीजा के आपन दुपट्टा में ढाँप के बाग में से पलानी के तरफ तेजी से डेग बढ़ावत चल जात रहलीं !! गोदी के लइकन से सुनीता के बहुत लगाव रहे…ओतने ध्यान आ ख़्याल भी…!!

पलानी के ओरी से टपकत बरखा के हर बून्द सुनीता के भीतरे भीतर मारत रहे…., “बरखा” शंकर आ सुनीता के सबसे प्रिय मौसम रहे……! अइसन दिन में शंकर दिन भर घरे रहस् आ सुनीता पकौड़ी बना के शंकर के खियावस…..!!
जवन खेलौना खातिर शंकर रोज बतियावस खेलौना आजु सुनीता के गोदी में भतीजा के रुप में रहे…, लेकिन ओहपर शंकर के छाप ना रहे….!!

पलानी में अइला के बाद भी जमीन पs बैठ के सुनीता आपन दुख में अइसन डूबल बाड़ी कि मानो….., का छूट गइल बा जवन जिनगी में बेर बेर ना मिले..! सुनीता बेसुध बाड़ी…., आ उनकर करेजा से देर से लागल नवजात लईका , सुनीता में आपन माई जोहे लागल , भुखाइल लईका के नाजुक होठ के स्पर्श आपन स्तन पs पाके सुनीता के बदन में जइसे बिजुरी दौड़ गईल होखे..!!

अब सुनीता चाह के भी लईका के मुहँ ओहिजा से हटावल नइखी चाहत…जी लेवे के चाहतरी ई एहसास के…! आ मड़ई में ऊपर देख के आपन आँख से ढरकत लोर के सम्हार नइखी पावत…!! लईका के आपन करेजा में जोर से दबा के टूट के रोअल जातरी !!

सुनीता के मन से शंकर के हटते नइखे….!! आजु शंकर के अनुपस्थिति में आभासी ही सही , लेकिन दु पल खातिर सुनीता एगो माई के एहसास के जी के शंकर के सपना के साकार करतारी..!!

शायद सुनीता जइसन , हर भारतीय स्त्री के सबसे अनमोल सुख मातृत्व होला…!!

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