अब्दुल ग़फ़्फ़ार जी के लिखल भोजपुरी कहानी दंगा

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चार दिन पहिले चारों तरफ़ लागल आग बुता गईल रहे। डरेड़ पर बइठ के लतरी के साग आ अनंदी के भूजा खात महंगू – घीसू बतियावत रहे लोग –
“शहर के बेमारी देहातो में पसरे लागल भाई। का जाने गांधी जी के कर्मभूमि में ई जहर कैसे पसरल जाता। कई गो कमिटी समिति चलल बा। गाँव में नया नया लोग नया नया झंडा लौकत बा आ नया नया नारा सुनात बा। ई कुल से नवका लईकन में अऊरी बिगाड़ होता।”
महंगू – “एतना उमिर बीत गईल बाकिर गाँव देहात में ई कुल देखे सुने का ना मिलल रहे।”
घीसू -” महंगू भाई हम त बरबाद हो गईनी ई दंगा में। सगरी ओर अन्हार लऊकत बा।”
महंगू -” तोहार दुख देख के त भाई करेजा फाटल जाता। लैकाईं में गांधी जी के पीछे पीछे घूमे वाला के साथे इ कैसन अनर्थ हो गईल। हे भगवान!

अब्दुल ग़फ़्फ़ार जी
अब्दुल ग़फ़्फ़ार जी

कुछ दिन बितले दंगा के आग जब पल्ला भईल त गाँव में सरकारी बाबू आके घीसू के समझावत रहलें –
” सुन रे घीसू ! मंत्री जी आने वाले हैं। अच्छे से नहा धो कर आना और कपड़े भी साफ़ सुथरे पहन लेना। ये लो सौ रुपये, जितना समझाया है उतना ही बोलना। बेटा और बहू को भी साथ लेते आना।”
सकुचात सकुचात घीसू कहलन ” बबुआ घरे आवे खातिर गाड़ी पकड़ लेहले बाड़न हजूर आ कनिया त दंगा के भेंट चढ़ गईली।”
अधिकारी पूछलन ” कैसे ?
घीसू फाटल चदरा में लोर पोंछत कहलन – “कनिया दु जिऊवा रहली हजूर। दंगाइ में से कौनो उनकर पेट पर लात मार दिहलस और………..खून एतना गिरल की चल बसली।”
“अच्छा ये सब मंत्री जी को मत बताना बाद में उसका भी मुआवजा मिल जाएगा।”

मंत्री जी के काफ़िला आइल आ गुज़र गईल बाकिर घीसू राह निहारत रह गईलन के मंत्री जी अईहन त कुछ मदद मिल जाई आ पतोहू के श्राद्ध करम हो जाई। बाकिर सरकारी बाबू मंत्री जी के दुसरा रास्ता से घुमा ले गईलन।
मंत्री जी के गईला के चार दिन बाद कोतवाली से बड़ा बाबू के बुलावा आईल। कोतवाली गईला पर पता चलल की दंगाई में घीसू के बेटा के भी नाम बा।
घीसू – “बाकिर हजूर हमार बबुआ त दंगा के दिन अमृतसर रहलन फेर उनकर नाम कैसे आ गईल!”
“चुप रहो तुम्हारे बेटे का नाम सीआईडी की रिपोर्ट में है।”
ई सुन के घीसू के माथा चकराए लागल आ धड़ाम से गिर पड़लन – आंख के सामने गांधी जी के चेहरा नाच गईल आ सोचे लगलन कि ऐह शासन से निमन त अंग्रेजीए शासन रहे….

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