विवेक सिंह के लिखल भोजपुरी कहानी दुमुहानी

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी दुमुहानी (Bhojpuri Kahani), रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर आ लाइक जरूर करी।

“रोज-रोज के काँव-काँव से पता ना कहिआ छुटकारा मिली। इहे दिन देखेला हम एहि घर में आइल रहीं? नइहर के सँजोवल सभ सपना बेअरथ हो गइल। हँ, मालूम रहित कि इन्ह ईजतिहीन लोग किहाँ इहे करम कुटाई त हम गवना से कबो ना अइतीं।”

शांति चुहानी में तावा पर रोटी पलटत तंज में कहली। शांति के ताना कसे के मौका मिले के चाहीं, बस शुरू हो जास। उनका कुछो ना सूझे कि हमरा बात से केकरा केतना घात पहुँची आ केतना ना।

“जब काँव-काँव से तहरा नकदम होता तs अपना मरद से कहि के दोसर घर बनवा लs, एहि घर मे तs बिना हल्ला-गुल्ला के कुछो होइए नइखे सकत।” खउलत अदहन में धोवल चाउर डालत देवन्ती टुभुकली। देवन्ती से बात सहल ना गइल त ढेर बरदास कइला का बाद, हरला मने जबाब देले रही।

जब आदिमी आपन मान-मरिजादा ख़ातिर चुप्पी साधेला तs चुप्पी कबो-कबो मरिजादा के नाशे पर ऊतारू हो जाला। साइद लोक-लाज के डरे अइसन चीज रहे जवन देवन्ती के शांति से एकदमे उलट सुभाव के बनवले रहे। शांति के सुभाव ऊलूल-जुलूल, इरिखा, भेद- भाव, ँच-नीच, जरताही से भरल रहे, देवन्ती बिपरीत रहली। मिलनसार, बड़ के आदर देवे के, छोट के प्यार बाटे के, लोक-लाज, सरम आ संस्कार के गुन देवन्ती के बात-बिचार, पहनावा आ बोल-चाल सब में लउके। ई एक दिन के झगड़ा ना रहे, रोज के नाटक रहे आ रोज-रोज के खिचखिच मन के सोहाला थोरे? ।

विवेक सिंह जी
विवेक सिंह जी

बात कवनो बड़हन ना रहे। ई झगड़ा ओकरा ला होत रहे जे घर के दुमुहानी में खटिआ पर थँउसल आपन लाचारी पर माथ धुनत रहले। इहे कुफुत शांति के मन के ना सोहाय, अदबद के आपन मन में भरल बिख मुँह का राहे ऊगिल देस। देवन्ती सभ दिन त ना बोलस बकि जब बात बरदास से फिजूल हो जाय त खुद के रोक ना पावस। रोकबो करस त काहे? देवन्ती आ ऊनकर मरद, इहे दुनु बेकत त रहन जे ओह लाचार, असहाय आ बलहीन बूढ़ी के सेवा करस।

जिनगी के सबसे अहम हिस्सा बुढौती ह। कुछ खुद के करम, कुछ परिस्थिति के परिनाम सब ओही बखत चढ़ि आवेलें जब आदमी देहमन से थाकल आ जिनिगी के अंतिम पड़ाव प होला। अइसन समय ह जब मन के बस देह प ना चले। मन अबोध लइके बनल रहेला बकि उमिर के असर से मारल देह का भीतरे बुद्धि सरबस रस में पगाइल गुर के भेली भ गइल होखे जइसे। बुढ़ौती में उहे लोग तजुरबा के गुरभेली फोर के बाँटत रहेले। कुछ अइसनो होला जब भेली फोड़े के पारी आवेला त उमिर के पड़ाव पर अइसन-अइसन बेमारी बा जवन मधुमाखी बन गोट भेली के चाट के भुरभुरा बना देवेला। साइद अइसने हालत हो गइल रहे लीला के।

अब ई घर दु पट्टीदार के आंगन रहल। अबहीं कुछे साल अलगौंझा के भइल रहे। अंगना में घेरा ना रहे खाली चुल्हा बटाइल रहल बाकी सब साझा रहे। एके चुहानी में दुगो चुल्हा भ गइल रहे। दुनू दयादिन ख़ातिर साइदे कवनो दिन होई जवन बिना बोल-ठोल के बाँव जात होखे।

जब तक रामधनी जीअत रहले दुनु बेटा राम आ लखन लेखा रहे लोग बकि रामधनी के गुजरते दुनु भाई में अलगौंझा हो गइल। एह बाँट बखरा के चकरी में पिसात रहली रामधनी के पत्नी लीला। अब त उहो थँऊस गइल रही। उनकर इहे थँऊसल उनका जिनिगी के काल आ कलंक दुनु बन गइल रहे।

ना चलला-फिरला से लीला के सब किरिया कलाप खटिए प होखे हालांकि उनकर बड़ लइका आ पतोहू सब सेवाटहल करस लोग। देवराज आपन काम पर जाए से पहिले अपना माई के नहवा-धोवा देस, माथ में तेल लगावस, केस सोझिआवस फेरु खाना खिआ के खटिआ पर नीके सुता देस, तब काम पर जास। देवराज के इ रोजो के रूटीन में रहे।

रामधनी के दु लइका रहले। बड़ लइका रहले देवराज आ देवराज के मेहरारू रहली देवन्ती। छोट लइका रहले देवरूप आ इनका मेहरी के नाव रहे शांति।

देवरूप अपना मेहरारू शांति के कबो ना बोलस ना डाटस। उनका सुघराई पर लट्टू रहले। उनका लागे कि गाँव-जवार में हमरा मेहरी से सुघर केहू के मेहर नइखे। साँच बात इहे रहे। शांति अपना सुघराई के वजह से अपना सगरो बिरादरी में जानल जास बकि सुघर चीज के चमक जादे दिन ले ना रहेला, ओपर कहिओ ना कहिओ करिअई छइबे करे ला। सोना के चमक सनूख में रखले-रखल जेतरि मलिन हो जाला ओही तरे अदिमी अपना सुघराई आ चतुराई के घमंड में खुद-ब-खुद इरिखा आ मन के कदोराई से पतित होत चल जाला आ समाज से लेके अपना नज़दीकी लोगन के आँखिन से गिर जाला। अब इहे दसा पर पहुच गइल रहली शांति।

शांति के नइहर के लोग पइसा वाला रहे। उनका अपना नइहर पर बहुत घमंड रहे। देवरूपो शहर के कवनो बड़ फैक्टरी में बढ़िया पइसा कमास। इहे रूपिआ-पइसा के घमंड आ हमता शांति के मन बढ़ा देले रहे।

देवराज शुरू से गाँव में रह गइल रहले। उनका खेती-बाड़ी में मन लागे का जानत रहले कि उनके संगे अइसन होई? बाबू जी के मरते भाई अलग हो जाई? माई के हवा लाग जाइ आ बेजान देह होके खटिआ पकड़ि लीहें? समय के मार आदिमी के आपन गुजर करे जोग राह देखा देवेला। इहे मार के आघात से देवराज गिरहस्थी के साथे-साथे एगो बस पर कंडेक्टरी के काम करस। दुख में कटत दिन देवराज आ देवन्ती के जतना हीन ना बनावे ओतना शांति के जलल-कटल बात सुन के अपने-आप के ओछ समझे लोग।

“तहरा से के बोले गइल हs? तू अपना के गिरहस्थिन माने लू नू? अरे एही से अभी ले तू बाँझ बाड़ू। तहर कोख़ में कवनो गिरल धूरो के फूल नइखे।” चूल्हा पर से तावा उतारत शांति ई अंगारी जइसन धधकत बात बोलली।

अब ले देवन्ती के कवनो बात के दुख ना लागल रहे लेकिन ई बात उनका ममता आ कोख पर कलंक जइसन रहे। शांति से कुछो ना बोलली आ तसली में डबकत चाऊर के निकाल के अँगुरी से मिस के देखली आ मँड़पसौना से तसली उतार के माड़ पसवे लगली। माँड़ का सङ्गे-सङ्गे देवन्ती के आँखों पसवे लागल। फिरो चुहानी से निकल के अपना कमरा में चल गइली।

जब शांति चुहानी से निकल के अपना कमरा का ओरि जात रहली त दुमुहानी में खटिआ पर सुतल लीला शांति के टोक दिहली। उनकर आवाज में कंपन रहे- ” अरे छोटकी बहु, तू बड़को के ए तरे काहे बोलेलू? तहरा अइसे ना बोले के चाहीं, उनकर आत्मा पर का बीतेला ई तू ना समझबू। सबकुछो के बाद बड़को के भगवान जी एगो संतान दे देतीं त सब दुख दूर हो जाइत। तहरा त एगो लइका बा, तू त बाँझ नइखू फिरो तहरा ई बात ना बोले के चाहीं। बड़को तहरा लइका के हरदम अपने समझली आ तू खाली ऊटपटांग बोल बोलत रहेलू।”

शांति आपन सास के बात सुन के खीस में लाल-पिअर होखे लगली। अब उनकर भवों तन गइल रहे। आपन ओठ चबा के अइसन बिखाद पित्त उगीले लगली जइसे कि कवनो नागिन आपन समूचा माहुर केहू के डसे के बेरा उगीले ले। अइसहूँ शांति अपना सास के कबो फुटली आँखि देखे के ना चाहत रही।

“बाह रे बुढ़िओ, जबान में आज बहुते ताक़त आगइल बा। लागत बा भैयाजी बहुत सेवा करत बानीं। हम आपके केतना बार कहले बानीं कि आप बीच में जनि बोलल करीं लेकिन आप त बिना बोलले ना रहब। पता ना भगवान कहा सुतल बाड़े, तहरा के उठावतो नइखन। अरे, भगवान के तहरे जइसन सास हमरे माथे मढ़े के रहे? जब देखऽ तब काँव-काँव करत रहे के बा, कबो कँहर के त कबो आपन सरल गियान से। आपन गियान अपना लगे रखीं, हम उहे करब जवन हमके सही लागी। हम कवनो नया कनिआ नइखीं जे बार-बार हमके कवनो चीज के लूर सिखावल जाई। आपके जवन कुछो सिखावे के बा त कोख़ जरनि के सिखाई, अपना श्रवन बेटा के सिखाई। हमरा आ हमरा मरद के कुछो उपदेश देवे ले कोशिशो जनि करब। पड़ल पड़ल कवनो काम त बा ना। हूँह! काम के ना काज के दुश्मन अनाज के।”

शांति के जहर जइसन बात सुन के लीला से रहल ना गइल। करमहीन, अभागिनी अपना खीझ के छुपा ना पवली आ आपन देह के सगरो जोड़ लगा के आपन खीझ देखावत बोलली- “तहरा अपना नइहरमरद के पइसा पर घमंड बा त सुन ल, देवराज कवनो भिखमंगा नइखन। उहो अपना कमाई के खालन उनको पास ओतने जमीन बा जेतना तहरा मरद देवरूप के लगे।”

“ओ होs ई बात बा? मने रसरी जरि गइल बकि ऐंठन ना गइल। अरे हमरा नइहर के देखि के आप कहिया जुड़ाइल बानी जे अब जुड़ाइब। हमनीं के फुटलो आँखिन ना सोहानींजा। पता ना भगवान कहा सुतल बारे।” शांति आपन हाथ चमका के ई बोल देवन्ती के सुनावत कहली। तब तक देवरूप आ गइलन। कुछ दिन पहिले देवरूप छूटी आइल रहलें आ अबहीं छूटी पूरा ना भइल रहे।

आपन छोट बेटा के देख के लीला के साहस बढ़ गइल, आपन काँपत हाथ उठा के लटपटात जुबान में कहली-
“देवरूप तू अपना मेहरी के समुझाई दs, अदबद के काहे बड़को से रार बेसाहेली। इनका इहे कहला-सुनला के नतीजा ई बा कि आज तू दुनु भाई में अलगौंझा हो गइल। इनका जिद्द के आगे ई घर तहस-नहस हो गइल। इनका जवन समुझ में आवेला, करेली। इनका के केहू टोके तक ना जाला तबहूँ आपन बात के शूल से काहे छेदेली सबके?”

देवरूप अपना माई के बात पर तनी सा हँसले ”अरे माई, तहरा ए सब से का मतलब बा। शांति जवन कुछो करेली सही करेली। ई कवनो छोट बच्ची थोड़े बारी। ई हमर पत्नी हई, आ हमरा इनका बात पर पूरा भरोसा बा। ई जवन करिहें ठीके करिहें। तू खाली अब अपना पर ध्यान दs बिना मतलब के केहू के बात भा केहू के काम में आपन टांग जन अरावल करऽ। ई नवका जबाना हs माई। इहाँ सब कुछो तहार पुरान समय के हिसाब से ना चली। अब तू आराम करऽ आ हमनी के चैन से रहे दs।”

देवरूप आपन उपदेश देके शांति के साथे अपना कमरा में चली गइले। तबे उनकर सात साल के लइका टीमल आइल जवन कहईं से खेल के आवत रहे। इहे टीमल पर त शांति के आपन माई भइला के घमंड रहे आ रहि-रहि के देवन्ती प बोल मारस। देवन्ती आपन नसीब प बेबस होखे के बजाए टीमल के आपन बेटा जइसन दुलार करस। अलगैन का बादो देवन्ती अपना देवर आ देवरानी के कबो अपना से हीन ना ताकस। इहे उनकर निःस्वार्थ प्रेम रहे जवन उनका के देवी सरूप बनवले रहे आ देवराज उनकर इहे सुभाव के पूजस। टीमल लीला के लगे जाके पूछलस- ” इआ तू कहिआ मुअबू?”

ई बात सुन के लीला के देह सिहर गइल। उनकर मुँह भय से पिअरा गइल। डबडबाइल आँखे लड़खड़ात जुबान से पूछ बइठली–“का बात बा टीमल..? हम मर जाइब त तहरा का मिली आ ई बात तू काहे पूछत बाड़े नाती?”

टीमल आपन धुर से लपटाइल हाथ अपना इआ के मुँह पर रखत कहलस-
“जोड़ से ना बोल इआ, ई बात हम मम्मी-पापा के आपस में करत सुनले बानीं। पापा बोललन कि माई मर जाइत तs हमनी के शहर में ले जइते आ अपने पास रखिते। तहरा मुअला के बादे मम्मी के सब जवाबदेही से छुटकारा मिली। अइसन मम्मी बोलत रहली पापा से।”

टीमल के बात सुन के लीला के आँखिन से सावन-भादो बेरोक झरे लागल। कबो जिनिगी हेहू मुहानी प आ जाई ई आज देखे के मिलल रहे। अइसन लाचार हालत में आदमी के जिनगी आ जाई जहाँ मऊअत के इंतिजार अपने कोखि के जनमल करी? ई जुगे के दोस बह कि आपन फूटल किस्मत के? लीला टीमल के माथ पर हाथ फेरत कहली-
“बाबू तू जा जाके खेलऽ। हम बहुत जल्दिए मुअब आ तू आ तहर माई जरूर शहर जइबऽ जा।”

टीमल फेरु बाहर भाग गइल, खेले। लीला खटिआ पर करवट बदलत आँखिन से लोर गिरावत रही तबे देवराज आ गइले। देवराज कबो कहईं से आवस त सबसे पहिले अपना माई लगे जास आ उनकर समाचार पूछस तब अपना कमरा में जास।

“माई.. ए माई.. कइसन बारू..? देवन्ती खिअइली हs, कुछ कि ना.?”

देवराज के आवाज सुन के अपना लोर के कवनों तरे पोंछत लीला बोलली-
”हs बबुआ हम खा लेले बानी। तू जा कुछ खा लs।”

लीला के आवाज में आज हुलस ना रहे जवन रोज रहत रहे। देवराज के कुछ शंका भइल माई के अपना ओरी घुमा के देखले तs उनकर आँखिन में मोती जस लोर चमकत रहे। देवराज अपना हाथ से अपना माई के लोर पोछत बोलले- “माई तू रोअत बाड़ू आ उहो हमरा से छुपा के। आखिर काहे? कवनो तखलिफ बा त बतावऽ हमके। हम अबहीं डाकडर भिरी ले चलब। का बात बा माई, बोलऽ ना?”

लीला अपना दुख के हँसी के ओट में छुपावत कहली- “ना बबुआ अइसन कवनो बात नइखे। ई लोर तहरा बाबू जी के इयाद में आ गइल हs। आज उहाँ के रहतीं त तहरा लोगिन में बटवारा ना भइल रहित आ सब कुछो नीक चलित।”

देवराज के मुँह प तनी उदासी छा गइल “माई जवन होखे के रहे तवन तs हो गइल। समय कबो लवट के ना आवे। बस तू बाड़ू नू हमनी संगे इहे बहुत बा। भगवान तहरा के बनवले राखस बस। तहरे में बाबुओं जी के देखीले हम। बाबू जी जब मर गइनी तब से तूही तs दुनु फरज निभवलु। सब तूही तs कइलू, का ई कम बा? भलहीं आज तू कइसनो बाड़ू बकि आँखिन के सोझा बाड़ू ई बहुत बड़ बात बा। तू आपन आशीर्वाद हमनी प एही तरे बनवले रहs, हमनीं अऊर का चाही?”

देवराज के बात सुन के लीला के आँखि में फेरु से बरिसे लागल। भरभराइल गला से कहली- “ठीक बा बाबू, तू जा, जाके कुछो खा लs। आराम करऽ थाक गइल होखबऽ। साँझ के तहरा फेरु जाये के बा तोमन किहाँ। उनका बाबू जी के बरखी हs, खुदे आइल रहले, तहरे के बोलावे।”

देवराज खटिआ से उठत बोलले- “ठीक बा माई, तू आराम करऽ हम जात बानीं।”

देवराज अपना कमरा में चल गइले आ लीला अपना मन में सोचे लगली। ई कइसन लीला बा भगवान, कि एके कोखि के जनमल आ एके अमरित के फुहार से सींचल, एक बिआ के फर आ दुनु में हेतना अंतर? ई साइद हमरे कवनो करम के फल हs जवन देखे के मिल रहल बा। आज एहि लाचारी का घरी में हम दुमुहानी के भीतर खटिया पर पड़ल बानी। ई दुमुहानी में पड़ल-पड़ल इहो देखे के मिल गइल कि अपने जनमल दुनु जने दुमुहानी नियन हो गइल बाड़न। अइसन फरक कइसे हो सकेला भगवान! एसे तs अच्छा तू केहु के संताने ना दिहितऽ।”

दुपहरी से साँझ हो गइल आ साँझ से रात। सब केहू रोज लेखा आपन-आपन खाना-पीना क के सभ काम निबटवला के बाद सुते चल गइल। देवराज तोमन किहाँ उनका बाबू के बरखी में गइल रहले। राति में ना आ पवले काहे कि तोमन के गाँव दु कोस के दूरी प रहे। खान-पान देर रात ले चलल आ अबेर हो गइल तs देवराज के तोमन रोक लेले।

कुँआर के भोर में रात के पड़ल शीत फुलाइल धान के डाँठि के पुलइन पर अइसन लागत रहे जइसे कवनो राजा के मुकुट प मनी। मनी पर पड़त सुरुज के ललकी किरिन ओकर खूबसूरती के अऊर निखार देवे। ओ से छिटिकत आभा मकड़ी के बनाबल रेशमी जाला प बिछिलल जाय। भोरे में तोमन के गाँव से लवटत बखत अपना खेत के आर प खड़ा भइल देवराज एहि दिव्यजोत के दरस से अभिभूत रहले तबे देवराज के केहू पीछा से छुअलस आ बोलल- “देवराज भइया, तू एजा का करत बारऽ, घरे सब केहू तहरे राह जोहत बा, जल्दी जा मर्दे..जल्दी जा…।”

देवराज सन हो गइले कि अइसन का भइल जे ई जल्दी जाए के कहत बा। देवराज बहुत पूछले बकि लइका देवराज के कुछो ना बतवलस। देवराज अब घर का ओरि भगले। दुआर पर बहुत लोग जुट गइल रहे सभे उनुके राह देखत रहे। देवराज के करेज अब जोर-जोर से धड़के लागल। उनका अब कुछ-कुछ अनहोनी के शंका होखे लागल रहे। अपना ओसारा में देखले तs उनकर माई के भुइयाँ सेज दिहल गइल रहे। चारो ओर लोग खाड़ रहले, देवरूप आ उनकर पत्नी पुका फाड़ के रोअत रहे लोग। देवन्ती चउखठ के आड़ में खाड़ रहली आ आँख सूज गइल रहे लेकिन लोर के दरस ना रहे।

टीमल आके देवराज से कहलस- “बड़का बाबू जी.. बड़का बाबू जी, अब हमनीं शहर जाइब जा।”

टीमल के बात सुन के देवराज एक बेरि टीमल के देखले आ फेरु अपना माई के। माई के सिरहाने थँऊस के बइठ गइले आ पुक्का फाड़ के रोए लगले। माई के निश्चल जर्द चेहरा आँखि के सामने रहे।

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