संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी गद्दी

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“का रे बबुआ, अभी ले, इहे ले जनल सन, तनी सब गद्दी पर कब बैठ के मजा लेब सन” इ बात सुन के रामु के मन मे बड़ा दुख लागल। बड़ी दिन से इ प्रयाश मे लागल बाड़न की केहु लेखान गद्दी पर बैठल जाव की मन खुश हो जाव, आ औरि लोग खानी, हमहू गद्दी पर बैठे वाला कहइ ती। ओहिजा सोनुआ , मंसुखवा, हसमुखवा सब गद्दी पर बैठ के मजा लेत बाड़न सन, आ हम अभी ले ना बइठनि।

रामु तु कबहु ना बईठ पइब। रामु के रोज रोज एकेगो बतिया सुन के मन थाक गइल। खाली ओकरे बारे मे सोचस। दिने मे रामु सपनाए लगलन, कि आह गद्दी पर बैठल बानी, धरती के ऊपर , हवा मे, वाह केतना मजा आ रहल बा, पाव जमीन पर नइखे पड़त,पूर्वा हवा से बात हो रहल बा, मुड़ी के बाल एइसन लहरात बा जइसन कि पनिया मे हिलोर उठल बा, आस पास के लोग अइसन देखत हउअन, जैसे कोई राजा महाराज हउअन, …….

ए रामु चल चल, स्कूले चले के बा, सोनू आवज देहलन।

ठीक बा चलत बानी, रामु कहलन।

संजीव कुमार जी
संजीव कुमार जी

बतकहि करत चल दिहल लो, स्कूल । सोनू बतिया बतियावत मे कहलन, रामु जबले तु तीन चार बार गिरब ना, जबले कहि कटाई ना, तबले ताहरा गद्दी पर बैठे के मौका ना मिली, गद्दी पर बइठ के मजा ना ले पईब। अब त इ बात रामु के दिमाग मे घर कर गइल, बेचारु रामु, टेंशन मे आ गइलन। तले स्कूल आ गइल।

प्रार्थना के बाद स्कूल लाग गइल। सबे क्लास मे बइठ गइल लो। आज शनिचर रहे, संजीव सर के क्लास रहे, हमनी इंतजार करी सन रोज शनिवार के ओ दिन संजीव सर, एगो कहानी सुनावेनि और आपदा प्रबन्धन के बारे मे बतावेनी। संजीव सर आज खाली कहानी सुनावे के कहनि।

संजीव सर कहानी शुरू कईनी….

सब बच्चा लोग के आज हम सायकल पर एगो कहानी सुनाईब।

एगो आदमी सायकल चलावे के ना जानत रहलन। उनकरा सायकल चलावे के मन कइलस।आपना मेहरारू से कहलन, मेहरारू खिसिया गइल, लइका सुन के हसे लगल सन कि हमनी के बाबु जी 40 साल के उम्र मे सायकल से चालिहन। अब यार सन के लगे गइलन, जे सुने से हसबे करे। मन मे आइल बा त सिखबे करेम। उनकर नाम रहे हीरालाल। यार सब मिल के एगो सायकल सिखावे वाला उस्ताद के खोजल लोग।………

जब सायकल सिख लिहलन, त शहर मे घूमे निकल लन। धीरे धीरे आखिर मे मेहनत कई के सिख ही लिहलन।

संजीव सर कहानी के आखिर मे बतईनि की लगन होके त कुछउ भारी नइखे सब आसान बा। लगन से पढ़ लेब लो त एक दिन बड़का अधिकारी भी बन जइब।

रामु के मन मे बात बइठ गइल। स्कूल के छुट्टी भ गइल। रामु अब शाम मे खूब मेहनत कइलन, पहिले त कैची चलाये के सिखलन, धीरे धीरे गिरत ढ़ीमलात सीखत गइलन, एक दु हालि गोड़ भी कटा गइल, लेकिन तबहु प्रयाश ना छोड़लन। धीरे धीरे एक दिन गद्दी पर बैठ, के हवा से बात करे लगलन। खूब मजा आइल। लागत रहे की राजा साहब जा रहल बाड़न। गद्दी माने सायकल की सीट, जऊन कौनो राजगद्दी से कम कहा बा। हमनी भी बचपन मे सायकल सीखे मे बड़ी उत्साह दिखइले रहनि सन, बड़ी मजा आवे।

एक दिन गांव मे संजीव सर,सायकल पर लोग के जागरूक करे ला रैली निकलले रहलन, अचानक से संजीव सर के नजर पड़ल, 10 साल के रामु भी जागरूकता रैली के हिस्सा बन गइल रहलन। संजीव सर के इ देख के बड़ी खुसी भइल।रामु अब पर्यावरण के बचावे मे ई अभियान के हिस्सा बन गइलन।खूब प्रशंसा सुन के रामु के मन गदगद हो गइल। रामु अब सायकल चलावे के सिख गइलन।

अगिला दिन स्कूल मे उत्साही बच्चा के रूप मे संजीव सर, उनके टोपी औरि एगो टी शर्ट पहीनवनि जौना पर आगे पीछे सायकल के चित्र बनल रहे, जेहीपर लिखल रहे,” सायकल चलाइ, पर्यावरण बचाई।”

संजीव कुमार रंजन
राजेंद्र नगर, गोपालगंज।

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