गांव के पिंडदान | भोजपुरी कहानी | अमित सिंह लोहतम

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव अमित सिंह लोहतम जी के लिखल भोजपुरी कहानी गांव के पिंडदान, रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा अमित सिंह लोहतम‎ जी के लिखल भोजपुरी कहानी अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

गांव के नाम सुनते ही अगर मन मउराईलो होला न त भोर के खिलल गुलाब नियन मन भीतर से खिल जाला जे गांव में रहल हौखॆ ओकर। जे गांव के पिंडा पार के शहर धइले बा ओकरा त लागी पिछड़ापन गरीबी अनपढ़ अवरू ढेर कुछ ही। केहू कतनो कुछ बन जाए कलेक्टर, एस पी , डागडर, माहटर,इंजीनियर चाहे उ बन जाए राष्ट्रपति बाकी गांव हरमेश याद रहेला हिर्दया में। अगर तनी सा आंख मूंद के गाव के याद कइला पर तुरंतले बीस बारिश चाहे पचास बारिश के लमहर गांव के याद क्षन भर में घूम जाला ।

गांव के पिंडदान | भोजपुरी कहानी
गांव के पिंडदान | भोजपुरी कहानी

उ हरियर हरियर खेत, गंगा जी के किनार, आम के बगइचा, पुरनका पीपर के गांछ, मठिया पर के परसादी, काली जी के मंदिल आ बरियार नीम के गाँछ, शिव जी के शिवाला, ब्रहम बाबा के स्थान, उ पोखरा , उ बनबईर के झुरमुट, उ परती खरिहान,फागुन में के मोजराइल आम के बागान, पियरका तेलहन के फुलाईल पीयर पीयर फूल, उ बूंट के लहलहाइल साग, गेहूं के बाल लागल खेत, मटर के उजर उजर फुलाईल खेत,किनारे किनारे रंगोली जईसन नीला तिशी के रेघारी, बुंट के होरहा, उ धनहरा मोचा लेल मकेया के खेत, मसूरिया के डाठा,रहर के खेत, गोबर के गोइठा , बूंट के सातू, मकेया के दारा, उ अपटुआ गेहूं के लाल लाल रोटी, देशीला गाय के गोरश,भैंस के मोटका छाली वाला दही, आजि के महल माठा, धूर- माटी में खेलत लईका, खेत में तिलंगी उड़ावला, परती खरिहान में गुल्ली डंडा, कबड्डी चिका के खेल, पूरा टोला भर के इनार पर के ढोआत पानी, सांझी के पुरनीया लोग के रामायण, गंगा जी के पानी में डेंगी नाय, उ चईत में खरीहान में के बोझा के टाल,जेठ के खरहर दुपहरीया में आम के भूंजडी, सावन में हाथिया नक्षतर के बरखा में ढहत माटी के भीेत, भादो में गंगा जी के बाढ़, कुआर के दशहरा के मेला, कातिक के बोवनी के साथे साथे छठ के उमंग, पुस के रात के सिहरावन जाड़ ,माघ के सितलहरी में दुआर पर के कऊडा के आग, आ फागुन के फगुनहटा हवा।

गांव के मेहरारूं के घुंग्घ में लुकाईल मुखड़ा, उ अपनापन, उ दुख में छापे वाला गोतीया पटीदार, उ नाता हित के इज्जत- सत्कार, उ संस्कार उ लाज ना जाने अवरू कातना क्षीरसागर जईसन कबो ना ओराए वाला बात याद आ जाला अवरू रोआ रोआ गनगना जाला। अईसे भी कहल जाला भारत देश के गांव में ही भारत के आत्मा बसेला। भारत के गांव के भी देश कहाला काहे की तीन हिसा लोग गांव में रहेला।

अईसे भी हमनी भारत के लोग के लोग आपन गांव से विशेष लागाव रहेला चाहे आपन गांव में कवनो विशेषता होखे भा मत होखे गांव हमनी खातिर विशेष रहेला। बहूते पुरान से ही कहाला की भारत के हिरदया गांव में बसेला बाकिर आज के समय में गांव के नाम सुनते लोग के नाक मुंह बने लागत बा आ गांव पर रहे के नाम पे महाभारत चालू हो जाता घर में हम ना रहब त हम ना रहब, गावों के आधा लोग शहर में रहे लागल भोजपुरी में एगो कहवात कहल जाला की माई बेच के मऊसी ना किनल जाए मतलब पहिले माई के रक्षा ओकरा बाद मौसी के।पुरनिया लोग गाव के खेत आ धरती के आपन माई कहत रहे लोग लेकिन आज माई के ही बेच के ही मौसी के किनात बा गावे के जमीन बेच बेच शहर के मईलगडहा में जमीन ले के लोग एक दू गो कमरा बना के रहता अा आपन कुकुर माडे आंनद वाला झूठ मूठ के शान देखावत बा गांव के घर दुआर त्याग के।

बहाना बा कि लइका के पढ़ावे के बा लेकिन आज तक केहू के लइका ना पढल अगर पढ़ भी लेता त का पढल जवन पढ़ाई अापन माई बाबू के छोड़े के शिक्षा देता। गलती खाली लइका के नईखॆ सबसे बड़ गलती ओकरा माई बाबू के बा जे आपन माई बाप के छोड के अा सेवा करे के समय अकेले तेज के ओकर बुढ़ापा के सब खुशी के आहुति दे के शहर में बस जाता ।जवन माई बाप ओकरा के पाल-पोस कईल ओकरा छोडे में उ तनिको ना विचार कइले त उनकर लईकवा त एईसे करबे करी जेकर पालन पोषण त प्ले स्कूल के कवनो आया कईले बीया उ का जानत बा अपनापन अा दुलार।

शहर में संभावना आनघा बा आगे बढे के बकिर उ संभावना अगर संस्कार के जवरे मिले तब सफल मानल जाव। जवन लइका के आपन माई बाबू के आजी बाबा के कंधा पर ही ना खेलले होखे जे आपन चाचा चाची के संघे फुआ के सघे रहल ही ना होखे ओकरा में कहां से अपनापन आयी। शहर में बसे के लोभ में गांव के टोपरा बेच के कबूतर के दरबा नीयन कीनल कोठारी में कहां केहू के सावंग बा लमहर परिवार के राखल बड़ बने में केहू राखत भी बा त पहीलका ता उनकर मेहर के प्राइवेसी भंग हो जाता जे से उ दिन रात मरद के खोभसन देत रहतारी की जल्दी इनका लोग के गांव चहुपावा परिवार सोसाइटी में फिट नईखॆ होत लोग। जे रहल बा बड़े बड़े खरिहान नियन दुआर अा लमहर ओसरा बढ़हन आंगन में उ कहा रह पाई 10×10 के कोठारी में उ भी तीन तल्ला पर ओकरा जेल नीयन बुझाईबे नू करी त ओकरा बाद बाबूजी अा माई के चहुपवा द गावे उनका लोग के आपन भाग्य भरोसे पर जिये यही संस्कार मिलत बा शहर में।

शहर में आज के समय में अगर केहू के मऊवत हो जाता तीन तल्ला पर त ओकर लाश ओकर गोतिया पटीदार ना या त रिक्शावाला ढेलावाला या निगम के मोरी साफ करे वाला से उठवा के रंथी पर राखे में नव करम कर देता माने की मरला के बादों लाश के गिंजन जियता में त जवन भइलभइल ही। जवन गांव देहात में दसकरम होत रहे उ पहिलके दिन हो जाता।अगर केहू खाहमोखाह रात बिरात अा गइल त उनकरा बयेखरा ले लेता की कहा सुतिहन उ रात उनका कपारे विपत पर जाता अा बीस बेरा पुछता रहबा की जइबा।शहर में आधा से ज़ादा लोग खाली एडी आलगा के उंच बने में भी रहता कि सभ्य कहाईम।तनीको केहू कुछ पूछल त तुरतले तापाक से एगो भोजपुरी कहाउत कहत बा ” लइका के पढावा ना त शहर में बसावा पूरानिया लोग कहत रहे। सही बा त बा लईका के कहत रहे लोग तहरा के माई बाबू के छोड़ के शहर में जाए के ना कहले रहे लोग पढ़ाई करे वाला कहीं से पढ़ जाई।

अशहू द्वापर त्रेता जुग से ही परंपरा बा गुरुकुल में पढ़े अवरू गुरुकुल शहर में ना शांत वन में रहत रहे खैर छोडी बात पढ़ाई के बात गांव अा शहर के होता।आज गांव के जवन हालत खराब भइल बा ओकर जिम्मेदार वहीं लोग बा जे गांव छोड़ के शहर में भागत बा कहाऊत बा नू की सियार के जब मऊवत आवेला नू ता शहर में भागेला आज लोग के मऊवत भी सियार से भी बाऊर होता अंत समय में मरत बेरा आदमी के बाया छछन जाता आपन नाता हित गोतिया पटीदार बाल बच्चा के देखे खातिर लेकिन इ शहर के फेर में ना केहू से भेंट होता बा ना केहू के मुअला के बाद आत्मा के शांति मिलता।

शहर में एगो बात बा बियाह के भोज में सब लोग आवेला बाकी अगर कीरिया होखे त लोग उजरका लिफाफा धरा के निकल जाला ।पानी तक ना अरघे श्राद्ध के माने की सुख में संगे दुख में अलगा ।आज लोभ में बस के लोग आपन गांव के अपेक्षा करत बा जहा जन्म भइल बा जहा मतारी बाप बा गोतिया पटीदार बा वैसे भी वाल्मीकि रामायण में श्लोक लिखल बा। ……………………………….. अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अर्थात : ” लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। लेकिन कलियुगी मानव एकरा के भी झूठ साबित करे के उतारू बाडन। सबसे पहिले आपन जननी अा जन्मभूमि के ही स्वर्ग के फेरा में छोड़त बा अा शहर के करीखाही कोठरी में आपन स्वर्ग बूझता।अंत में हमारा तरफ से एगो सलाह बाकी आजकल सब लोग एक से बढ़ के एक धुरिया काबार विद्वान बा।

अरगन जईबा परगन जईबा माथ मुड़ा के गावे ही आईबा।

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