संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी झगराइन

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“इ सब नतीया केरा,जेतना बाड़ सन, सब हमार खेतवा चहल देहल सन, रे! तनी के आखवा से कम लउकता का रे” एतना खिसिआइल आवाज, बाप रे बाप, के ह, भाग रे मनबोधवा, भाग जल्दिये से, ना त इ झगराइन ईया पकड़ लिहन त बड़ी मरिहन, इतने कह सिपहिया, बिकउआ, हरे रमवा औरि मनबोधवा सब भागे लगलसन, ओकनी के पीछे 65 बरिष के एगो सांवर झगराइन बुढ़िया, हथवा मे एगो डंडा लेहले दौड़ावे लगली। लइका त भाग गईल सन, इ हार गईली।

संजीव सर, ओहि राहे जात रहलन।

“ए का हो गइल बा, हेतना परेशान बानी”, संजीव सर पूछनी।

गोड़ लागत बानी संजीव सर, का बताई, हम घर मे अकेला मेहरारू, हमार लइका, फइका, नातिया, पोतवा, पतोहिया सब बाहर चल गइलन सन,आ हमरा अकेले गांव मे छोड़ दहलसन, अब हम अकेले बानी, हइ 10 कठा खेत बा एकरा मे खीरा ककरी सब रोपले बानी, हइ सब नतीया केरा तुड़ तुड़ के जियान कर देत बाड़न सन, हम एकनि से तंग आ गइल बानी, इतने कह रोवे लगलि।”

देख ,रोव मत , खिसिया जन,सब लइका हव सन, केतना मासूम बाड़न सन, जाये द,मान जा मत खिसिया, छोड़ द, छोड़ द…”

संजीव सर, उनके समझावे लगलन।

का कहि ए सर जी, रउआ त सब जानत बानी, सब हमरा के छोड़ के बाहर चल गइलन सन, हम अब अकेले हो गइल बानी, थोड़ थोड़ रोपत बोवत रहेनी, त मन लागल रहेला, तनि जातानि सकुलिया मे त ओकनी के डाटेम जरूर,की काहे हमरा के रोवावत बाड़न सन”

“ठीक बा, हम डॉट देहब, तहरा अब तंग ना करीहन स”, संजीव सर।

एगो बात बताव,तहरा बृद्धा पेन्सन मिलेला, की ना मिलेला, संजीव सर पूछ दिहलन।

“ना मिलेला, ए सर जी, कई हालि त ब्लॉकवा के चक्कर लगा दिहनी, केहु मदद ना करे ला” बड़ी उदास होके, कहलिन।

ठीक बा हम मुखिया जी से बात करब, औरि पंचायत सेवक से भी बात करब, एगो फारम हम लाइब, ओहपर सब भरा जाइ, तहार आधार कार्ड के फोटो लागी, तहार फोटो, बैंक पासबुक के फोटो औरि तहार फारम पे निशान लगाइ के हम जमा कर देहब, तहरा बृद्धा पेंशन मिले लागी, ठीक बा। अब हम नु, स्कुले जात बानी, तु जा, कह कर संजीव सर चल गइलन।

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बुढ़ियो फेरु से खेत मे काम करे लगलिन।

सही मे कहल बा, बुढ़ापा एगो रोग से कम नइखे। जेकर बाल बच्चा, नाति पोता होखे, आ ओकर अकेले जिंदगी कटे, त बड़ा दुखदायी बाटे। बुढ़ियो के जिनगी, भी एहीसही हो गइल रहे, अब दोसर एमे का कर सकेला, राम जी जैसन चाहेले, ओइसने होखेला। गांव मे जेकरा से पूछ, की ए भाई, इ रामखेलावन ब, कइसन हई, सब लोग इहे, ओकर नाम मत लिही, उ पक्का झगराइन ह, उ खाली झगरा करत फिरेले। लइका बाहर से हर महींनवे कुछ रुपया भेज देवे ल सन, इहीसे जियत खात बाड़ी।

लइकन सब कहा सुधरे वाला बाड़ सन, लइका के बुद्धि बसे चनवे के खेत मे। समय बितत गइल, बुढ़ियो के पेन्सन भी मिले लागल। एक दिन का भइल कि संजीव सर, देखनी की बुढ़ियो बड़ी खुश बाड़ी, रोक के कहलि , “सर 2 दिन से कौनो लइका हमरा खेत मे नइख सन आवत, 4 गो मे से 3 गो लइकवा लउकत बाड़ सन, उहो तीनो बड़ी शांत चुप चाप खेत के बगल से चल जात बाड़ सन, खेतवा मे नइख सन आवत”

संजीव कुमार जी
संजीव कुमार जी

संजीव सर सोचे लगलन। कहलन, सुन, एगो जवन नइखे आवत उ हरे रमवा के बुखार हो गईल बा, बुखारवा ठीक नइखे होखत, ओकर माई बाबूजी के लगे पईसा नइखे, इहिसे हरे रमवा के सही इलाज नइखे होखत, ओकर यार इहीसे उदास बाड़न सन, अब तु आराम से रह, अब तहार खेत केहु ना लसारि। संजीव सर कहत चल गइलन।

बुढ़िया अब अपना खेत मे काम करे लगली। बुढ़ियो का मन काम मे ना लागे, बुढ़ियो भी उदास दिखे लगली।

2 दिन बीतल।

“हरे रमवा, बाबु का भइल बा तहरा, बोल बाबु” आचनक इ आवाज हरे राम के गहरे सुनाई दिहलस, अगल बगल के लोग चिहा गइल, कि इ झगराइन के का होगइल।
बुढ़िया के ओहिजा देख के सब कोई चिहा गइल,बुढ़िया के अचानक इतना परिवर्तन, इ त चिहाये वाला बात रहे।

झगराहीन बुढ़िया हरे राम के बाबूजी के हाथ मे बचावल रुपया रख दिहली, कहलि कि एके बढ़िया डॉक्टर से इलाज करवाई, आँखि से आंसू बहावत बुढ़िया चल गइली। हरेराम के इलाज, बढ़िया डॉक्टर से भइल, कुछ दिन मे हरे राम ठीक हो के घरे आ गइलन। अब त गांव मे बुढ़ियो पर लोग बात करे लगनन, बुढ़िया के लोग जहाँ भी देखे, आदर देवे लागल लो। एके बाइक झगराइन से बढ़िया रहनदार भ गइल। चारु ओर चर्चा होखे लागल।

बुढ़ियो रोज खानी,आज अपना खेत मे काम करत रहली, चारो लइका भी बुढ़िया के आगे पीछे खेत मे रहल सन। केतना सुन्दर मनमोहक दृश्य बा। नारी के मन अमृत खानी, जीवन देवे आला होखेला, इहीसे कहल बा। माता कइसनो होखि, ओकरा मन मे कइसनो बालक होइ,ओकरा प्रति प्रेम स्नेह जरूर रही।इहीसे माता सब जगह पुजल जाली। बुढ़िया माई के नाम से अब लोग उनका के जाने लागल। संजीव सर के नजर पड़ल, मन ही मन मुस्कुरइलन, कि वात्सल्य प्रेम आखिर जाग ही गइल।

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