जगदीश खेतान जी के लिखल भोजपुरी कहानी का हमके कुक्कूर कटले बा

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इ सन् 1960 के बात ह। तब हम बनारस पढत रहलीं। वो दिन हम अपने कमरा मे पढले मे तल्लीन रहलीं कि तबले हमके बुझाइल कि केहू हमरे लगे आके ठाढ हो गइल बा। हम आपन आंख फेरलीं त का देखतानी की येगो कुक्कूर महराज हमरे समनवे ठाढ बालं आ हमरे ओर टुकुर-टुकुर ताक रहल बालं कि जइसे हमार ओकर पुरान पहचान रहल होखे आ बहुत दिनन से बिछड़ले के बाद हमसे भेंट करे खातीर पधरले होखें।

हम सोचत रहलीं की हमार संघतीया झिनकू होइहं काहें की येही जुन आवे के कहले रहल। बाकी हमके बड़ा निराशा भइल जब हम अपने सामने येगो कुक्कूर के ठाढ देखलीं। एक त हमके कुकूरन से अइसही घृणा ह आ बिना न्योता के आ टपकल त और भी नागवार बुझाइल। हम ओके देखत भर मे आपन आपा खो देहलीं।

हम येहंर ओहंर आपन निगाह दौड़ा के कौनो छड़ी या डंडा खोजे लगलीं की जेसे ओके सबक सिखा सकीं। लेकिन येगो भलेमानुष क्षात्र के कमरा मे लाठी-डंडा कहां से मिलतs। कुकूरा के सबक देहल भी आवश्यक बुझाइल अन्यथा नियमित पहुना हो जात आ फिर अपने मित्र मंडली के भी साथे ले आवत। अबले कुकूरा ज्यों के त्यों ठाढ रहल। तब तक हमार निगाह येगो फाउन्टेन पर पड़ल। फाउन्टेनपेन आवश्यकता से ज्यादा मोट आ लमहर रहल। लिखले के काम मे कम आ देखावा के काम मे ज्यादा आवत रहल। एक बेर रोशनाई भरले के बाद महीना भर स्याही भरले से छुट्टी मिल जा। हम आव देखलीं न ताव आ पेनवे उठा के कुकूरा के खोपड़ीया पर तड़ाक से दे मरलीं। कुकूरा के चोट मजीगरे लागल होई बाकी हमरे साथे येगो ट्रेजेडी ई भइल की हमार पेन जौन पहलहीं से कुछ चिरीआईल रहल पूरा फाट गइल आ कौनो काम लायक ना रही गइल।एक दवात स्याही नोकसान भइल अलगे।लेकिन संतोष ये बात ई रहल की कुकूरा ये आकस्मिक हमला के ना संभार पइलस आ भाग खड़ा भइल

कुछ पल बादे हम उपर वाला मंजिल पर चललीं कि अपने घरवालन के अपने बहादुरी के बारे मे अवगत करवले आईं। अबहीन आधा सीढी पहुंचल रहलीं त का देखतानी कि कुकूर महोदय हमरे आगे-आगे अजीबोगरीब शान से खरामा-खरामा उपर की ओर आपन कदम बढावत चल जात बालं। हमार गुस्सा जौन अबले ठंडा पड़ गइल रहे फिर उबाल खाये लागल।हम मन ही मन ठान लेलीं कि अब ये कुकूर राम के दुरगती कई के ही चैन लेब।

उपर वाला मंजिल मे तीन कमरा रहल बाकी उपर से नीचे आवे के सीढीवाला येगो रास्ता रहल।पहिले हमरे छोट भाई संतोष के कमरा मे गइल।संतोष ओ समय कमरा मे ना रहल।अब हम सीढी वाला दरवाजा बंद कई देलीं बाकीर सिटकिनी ना चढवलीं। फेर येगो छड़ी लेके हम कुकूरा सारे के पीछे दौड़लीं। जाके हमरे दादी के कमरा मे घुस गइल।।दादी ओतनी जुन गंगा स्नान करे गइल रहली। हम वोहूं ओकर पिंड ना छोड़लीं। नीचे कइसे जात? दरवाजा हम बंद जो कइ देले रहलीं।।

अबले हमरे माई के कमरा ओकरे चरण स्पर्श से बचल रहल। ये बेरी हमरे माई के कमरा मे प्रवेश कईलस। हमार माई ओतनी जुन हमार भाई संतोष आ बहिन प्रेमा आ ओकर सहेली मनोरमा के साथे कैरम खेलत रहली। कमरा बहुत बड़ा रहल ओसे कुकूरा ओही मे येहंर से ओहंर भागल फिरल। हम छड़ी लेके ओकरे पाछे हाथ धोके पड़ल रहलीं।कुकूरा के आईल देख सब जने खेलल छोड़ खड़ा हो गइल।रंग मे भंग हो गइल रहे। तब ले कुकूरा मनोरमा के ओर झपटल। मनोरमा के बचावे बदे आ ओकरे गुस्ताखी के मजा चखावे खातीर हम मनोरमा के सामने होके कुकूरा पर छड़ी से वार करे लगलीं।

वइसे कुकूरा कौनो विशेष लमहर चाकर ना रहल अउर हम सोचलहू नाही रहलीं की छड़ी के रहत हमके काट सकेला। लेकिन अनहोनी जो होखे के रहल।कुकूरा हमरे छड़ी के मार के परवाह कइले बिना उछल के हमरे पेटे मे चार गो दांत गड़इये त देलस। कहां हम कुकूरा के दुरगती करे चलल रहलीं आ कुकूरा हमरे दुरगती कई देलस।

हमके घायल कइले के बाद उ कमरा से बाहर निकसल। तबले दादी गंगा स्नान से लौटली आ सीढी वाला दरवाजा खोल देली। कुकूरा बंद दरवाजा खुलत भर मे ओंहर झपटल आ दादी के हाथे मे दांत गड़ा के नीचे उतरे लागल। कुकूरा के कुछ अइसन भान हो गइल रहे कि जइसे सब ओकरे जान के गाहक हो गइल होखे।काहें कि कुकूरा येहंर से ओंहर भटकत रहे आ ओके रस्ता ना मिलत रहे।

हमार गुस्सा ठंडा भइले के बजाय और तेज हो गइल। बदला लेवे के खातीर हम पागल हो गइलीं।हम फेर ओकरे पाछे दौड़लीं।गली मे निकसे वाला दरवाजा दादी आवत समय बंद कई देले रहली।कौनो रस्ता न मिलले से और बौखला गइल रहे आ हमरे हमला कइले के पहिलहीं हमरे उपर तेजी से झपटल।हम त येकरे बदे तैयारे रहलीं।बस हम आव देखलीं न ताव आ ओकरे उपर तड़ातड़ छड़ी बरसावे लगलीं। और तेजी से हमरे ओर लपकल। हमार छड़ी दूइये फीट के रहल येसे ओकरे तेज आक्रमण से सहम के हम पीछे हट गइलीं।अपने आ, अपने साइकिल के ओकरे आगे कई के आपन जान बचवलीं। तब तक कुकूरा न जाने का सोच के पीछे के ओर मुड़ल आ हमहूं आपन कमरा झटपट खोल के अंदर दाखिल हो गइलीं आ दरवाजा अंदर से बंद कई देलीं।

हमके डेरा के, भागत देख कुकूरा वापस लौटल आ दरवाजा पर टक्कर पर टक्कर मारे लागल। हम सुनले रहलीं कि कुकूर अपने घरे शेर हो जालं बाकी ई त हमरीये घरे शेर भइल बा।दरवाजा के दूनो पल्ला के बीच मे करीब 2-3 इंच चौड़ा आ एक हाथ लम्बा छेद रहल। अब हम आव देखलीं न ताव आ ओही छेदे मे से छड़ी से करारा-करारा वार ओकरे खोपड़ी पर बरसावल शुरु कइ देलीं।अपने हानि लाभ के परवाह कइले बिना उहो अपने खोपड़ीया से दरवाजा पर येगो और जोर से टक्कर देलस। पूरा बौखला गइल रहे।हमरे छड़ी आ ओकरे खोपड़ी के मुलाकात के क्रम तबले चलत रहल जबले हमार कीमती छड़ी टूट ना गइल।ई कीमती छड़ी आबनूस के लकड़ी के बनल रहल आ हमरे नैनीताल यात्रा के यादगार स्वरुप रहल।तब तक कुकूरा पाछे के ओर मुड़ल आ बाहर गली मे चल गइल।गली के दरवाजा केहू खोल देले रहल।

हम पहिले “का हमके कुक्कूर कटले बा” तकिया कलाम के अकसर बात-बात मे कहत रहलीं और लोगन के बात छोड़ीं, हमरे संगतीया बुलाकीराम ये तकिया कलाम से तंग आ गइल रहल आ बहुते चिढत रहल।आखिर तंग आके एक दिन हमके दुर्वासा ऋषि के लेखां श्राप दे देलस कि “तोहार ई तकिया कलाम तब्बे छूटी जब तोके कौनो कुकूर काट खाइ ।आ ई बात गांठ बांध ल कि एक न एक दिन तोके कुकूर कटबे करी।”

ओही के श्राप हमके लाग गइल आ कुक्कूर हमके काट खइलस वैसे ओके अगर इ मालूम होत कि ओकर श्राप येतना कारगर होई त, इ श्राप कब्बो ना देत।अब तकिया कलाम हमरे मुंह मे त आवे बाकी होठे से बाहर ना आवे। कुकूरा के कटले से एक फायदा भइल कि हमार तकिया कलाम छूट गइल।

हमके त कुकूरा बउराइल ना बुझात रहे।रस्ता न मिलले पर मजबूर होके उ अपने बचाव खातिर हमके काट लेले होई, काहें कि बचाव के सबसे सरल उपाय विरोधी पर हमला कइल ह।येही लिये हम कुकूरा के कटले पर विशेष ध्यान ना देलीं हलां की हम सुनले रहलीं कि बउराइल कुक्कूर के कटले पर मनइ मर सकेला।बउराइल न होले पर कुछ ना होला बाकी जे भी कुकूरा के काटल सुनलस उ कहत रहे कि कुकूरा के कटले के सूई अवश्य लगवा ल।कौन जाने उ बउराइले होखे, थोर के कष्ट खातिर काहें खतरा मोल ले ताल। दूसर बात ई रहल कि हम दुइये भाई रहलीं आ हम जेठ रहलीं।घर के लोग,नात-हित आ संगी साथी लोग सूई लगवावे खातिर दबाव देवे लागल।

सबके ई सब कहले सुनले से हमहूं भीतरे भीतर डराये लगलीं।हम डाकटर झटका के पास पहुंच गइलीं।हमके देखत भर मे उ कहलं कि “का बात बा?बड़ा परेशान बुझाताल।” रोकतो रोकत हमरे मुंह से निकल गइल कि “का।कुक्कूर कटले बा कि हम रउवा के पास बिना तकलीफ के आइब।” फेर हम तुरते भूल सुधार के कहलीं कि हमके येगो कुक्कूरे सार काट लेलस ह ओही से रउवा पास आइल बानी।लेकिन हम के अइसन बुझात बा कि बउराईल ना रहल।हम आपन पूरा आपबीती उनके सुना देलीं।

डाकटर झटका कहलं “देख कि बउराइल रहे कि नाहीं। ई जाने के येगो उपाय बा।कुकूर बउरइले के सात दिन बाद अपने से मर जालं।रउवा अइसन करीं कि ओ कुकूरा सारे के कइसो ढूंढ निकालीं आ फेर देखीं कि सात दिन ले जीअत बा की नाहीं?जो कुकूरा के लाश मिली भा मिलबे ना करी त दस गो सूइ कोंचवही के पड़ी।

हमके सूइ लगववले से बड़ा डर लागेला फेर दस सूइ आ उहो पेटे मे।एक बेर दूसरे के सूइ कोंचात देख हमके बोखार हो गइल रहे।फेर ई सूई त हमही के लागे के रहल।हम सूइ कोंचवावल सोच के सिहुर गइलीं।हम मन ही मन निश्चय कई लेलीं कि कुकूरा के खोजले मे हम जान के बाजी लगा देब।हम ओही दिन से कुकूरा के हेरले मे बनारस के गली-गली ,बजार, सड़क ,मंदिर और घाट-घाट के चक्कर लगावे लगलीं।आसपास के सगरो गली मोहल्ला के कोना-कोना छान मरलीं बाकी ओ मनहूस के न मिले के रहल, न मिलल।

एक दिन हमार छोट भाई संतोष हमके बतवलस कि स्कूल के रस्ता मे एगो कुकूर के मरल देखले बा।हम एहतियातन ओ कुकूरा के लाश देखे खातीर पहुंचली तबले कारपोरेशन वाला ओके ठेकाने लगा चूकल रहलं।हम पूरा दौड़ धूप कइले के बाद भी ओ मनहूस के लाश देखले से वंचित रही गइलीं।हम मन ही मन सोचलीं कि हमरे भाई संतोष कुकूरा के चीन्हले मे भूल थोड़े कइले होईहं।आखिर उहो कुकूरा के काटत देखले रहल।आखिर हम सूई लगवावे के निश्चय कई लेलीं।अपने जान से मोह जो रहल।अबहीन त हमार बियाहो ना भइल रहे।
किस्त – 6

हम डाकटर झटका के सिफारिशी पत्र आ कुकूरा के कटले के सर्टीफिकेट लेके सरकारी अस्पताल पहुंच गइलीं कि कुकूरा के काटे के सूई मिल जा और हम लगवा लीं।सरकारी अस्पताल हम पहिले बेर गइल रहलीं।डा: झटका के पत्र लेके हम स्टोरकीपर के पास पहुंचलीं त डा: लकड़ा से लिखवा के ले आवे के कहलस।डा:लकड़ा हमके डा:कपूर के पास भेजलें।येही भागदौड़ मे चार बज गइल।अबले करीब सात जने के लगे जा चूकल रहलीं बाकी सूई के एको शीशी ना मिलल।पैर कुकूरा के खोजले मे पहीलहीं सूज गइल रहे।सरकारी अस्पताल आ डाकटरन के चक्कर लगा के अउर थक गइल।हम निराश होके वापस लौटे के घूमलीं त हमार मित्र असलम साहब मिल गइलं। अस्पताल अइले के प्रयोजन पूछलं।हम सगरो आपबीती बत देलीं। सून के खिलखिला के हंसे लगलं।

हम कहलीं:-येमे भला हंसले के कौन बात बा।
असलम:- हम तोहरे नासमझी पर हंसली हं।
कइसे?” हम चौंक के बोललीं।
असलम:- महानुभाव, सरकारी अस्पताल होखे, सरकारी कार्यालय होखे या सरकारी कारखाना होखे ,इहां काम करावे खातिर मुठ्ठी गरम करे के पड़ेला।तू केवल पचीस रुपया खरच कर त सूई त सूई, स्टोरकीपर तोहरे घरे हाजिर हो जाई।

हम पचीस रुपया असलम के हाथे पर रख देलीं।असलम हमके स्टोरकीपर के लगे ले गइल आ पचीस रुपया देलस आ हाथोहाथ सुई के पांच शीशी दिवा देलस।स्टोर कीपर बतवलस की सूई अस्पतलवे मे लगावावे के पड़ी।शीशी खतम भइले के बाद फेर पांच शीशी येहीतरे मिल जाई।ओही दिन हमके घूसखोरी के महत्व पता चलल।

दूसरे दिन हम अस्पताल मे सूई लगवावे बदे पहुंच गइलीं।सूई लगावे वाला के पास पहुंचली त देखतानी कि सूई लगवावे वालन के लमहर कतार लगल बा।कतार मे सौ जने से जयादे मनइ रहल होइहं।बाहर सूई लगवले मे रुपया खरच करे के पड़त। इहां फ्री रहल येसे भीड़ ज्यादे रहल।सूई लगावे खातिर एके जने रहल।एक अनार सौ बीमार वाला हाल रहे।डाकटर के तीने घंटा सूई लगावे के मिलल रहल।ओतना देर मे जेतना जने निबुक जां। ओकरे बाद जे बचत ओके वापस जाये के पड़त। डाकटर सूई मे फटाफट दवाई भरे आ चट से घुसेड़ दे। मरीज लोग दरद से बिलबिला जा। अगोरत-अगोरत हमरो नंबर आइल। डाकटर पेटे मे झट से सूई घुसेड़ के चट से दवाई पास करा देलस।हम दरद से चिल्ला उठलीं।जब हम उठे लगलीं त का देखतानी कि हमरे पीछे वाला मनया डाकटर के हाथे मे एक रुपया के नोट चुप्पे से थमा देलस।ओके डाकटर धीरे से सूई लगाके धीरे-धीरे आराम से दवाइ पास करइलस कि ओके तनीको ना दुखाइल।हमहुं दूसरे दिन ओइसे एक रुपया के नोट थमवलीं त दरद तनीको ना बूझाइल।

दूसरको दिन हम ओइसहीं कइलींं त दरद कम भइल।सूइ पेटे मे एक दिन बांयें ओर लागत रहे आ दुसरका दिन दायींं ओर। तीसरका दिन दू रुपया के नोट बढवलीं त दरद बुझइबे ना कइल।कइसो-कइसो मरत-जीअत सगरो सूई लागीये गइल त हम चैन के सांस लेलीं।

सूई लगले के कुछ दिन बाद के बात ह, हम अकसरीया सांझ के दशाश्वमेध घाट हवाखोरी बदे जात रहलीं, रोज के लेखां ओहू दिन हम घर से दशाश्वमेध घाट जाये के निकलल रहलीं।गौदोलिया चौराहा से जब हम दशाश्वमेध घाट जाये वाली सड़क की ओर मुड़लीं त सामनेवाला दृश्य देखत भर मे सकते मे आ गइलीं। हमके अपनीये आंखी पर अविश्वास होखे लागल।हम आंख मल-मल के देखलीं। नह गड़ा-गड़ा के भी देखलीं कि कहीं सपना त नाहीं देखतानी, लेकिन हम पूरा होसो हवास मे रहलीं। जौन कुछ हम देखत रहलीं सब सच रहल।हम का देखतानी कि हमरे आगे-आगे मिस जलेबा चल रहल बाली आ उनके साथे-साथे जंजीर मे बंधल उहे कुक्कूर बा जौन हमके कटले रहल। मिस जलेबा हमरे ओर घूम के देखली।वइसे त हमार प्रेम प्रसंग उनसे ढेर दिन से चलत रहे।बाकी आपन प्रेम कहानी सुना के समय नष्ट ना करब। तबले मिस जलेबा हमके पुकरली।हमरे मुह से निकलत-निकलत रही गइल कि “का हमके कुक्कूर कटले बा” जो ओ कुक्कूर के रहत रउवा लगे चली आईं। बाकी ई सब न कही के बस येतने कहलीं कि हम तोहरे प्रेम के पीछे आपन जान ना देब।

ओंहर कुकूरा भोंक-भोंक के मिस जलेबा के जंजीर से अपने के छोड़ा के हमरे पर हमला करल चाहत रहे।बुझात रहे कि न हमके भूलाइल रहे आ न हमरे छड़ी के पिटाई।
हम तेज गति से चले लगलीं। तबले जंजीर सहित अपने के छोड़ा लेलस आ हमरे ओर झपटल।हम कपारे पांव रखी के ओलम्पियन मिल्खा सिंह के लेखां भागे लगलींं।भागत-भागत हम येगो सन्यासी से टकरा गइलीं। टकरात भर मे कहलस कि “कुक्कूर कटले बा का।” जो आंखी मुंद के भाग रहल बाल।
हम पल भर मे ओ सन्यासी के गोड़े पर गिर गइलीं आ कहलीं ” रउवा महान बानी। अंर्तयामी बानी।हमके सचहूं कुक्कूरवे कटले बा।”

नोट:हमरे हिंदी कहानी “क्या मुझे कुत्ते ने काटा है?” का भोजपुरी अनुवाद। इस कहानी को प्रयाग विश्वविद्मालय हिंदी परिषद द्वारा 1961-62 मे प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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