भोजपुरी कहानी खूँटा में दाल बा

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आईं सुनल जाव एगो गवरइया के कहानी खूँटा में दाल बा, जवन अपना दृढ़ निश्चय के आगे सब केहू के झुका दिहलस।

एगो छोटी मुकी चिरई रहे- गवरइया । भुखाइल रहे । बहुत खोजबीन कइला प ओकरा दाल के एगो दाना भेंटाइल । ठोर में लेके एगो खूटा प जाके बइठि गइलि । ओकरा खुसी के ठेकाने ना रहे । खुद त खइबे करी, अपना लरिकनो खातिर ले जाई । अबहीं सोचते रहे कि दाल के टुकी खूटा के भितरी चलि गइल । गवरइया के मए आस निरासा में बदलि गइल ।

बाकिर गवरइया हार ना मनलस । कतना मेहनत-मशक्कत से त ओकरा दाल के दाना मिलल रहे आ ओकरा के अइसहीं गँवा देउ ? ना, ओकरा के छूटा से निकलवाइए के दम ली ।

गवरइया सोचलस कि अगर छूटा के बढ़ई से चिरवावल जाउ, त भुलाइल दाल हासिल कइ सकेले । फुर्र से उड़लि आ जाके पहुँचि गइलि बढ़ई का लगे । हाथ जोड़ि के कहलसि, “बढ़ई बाबा ! ओह खूटा के चीरि द, जवना में दाल के हमार एगो दाना अँटकल बा ।’ ओकरा बेगर हम का खाईं, का पीहीं आ का लेके अपना लरिकन का लगे परदेसे जाईं ?”

बढ़ई-बढ़ई ! छूटा चीरऽ
खूटा में मोर दाल बा
का खाईं, का पीही
का ले परदेस जाईं ?

बाकिर बूढ़ बढ़ई के गवरइया प तनिकियो दया ना आइल । डाँटि के भगा दिहलस, “हुँह ! भला एगो दाल खातिर हम खूटा चीरे जाई ? चलु, भागु इहवाँ से !”

एह बढ़ई के अइसन मजाल ! राजा से कहिके एकरा के सजाइ दियवावहीं के परी । गवरइया उड़ि चललि राजा के दरबार में आ गोहार लगावत कहलस :

राजा-राजा ! बढ़ई डॅड
बढ़ई ना खूटा चीरे,
खूटा में मोर दाल बा,
का खाईं, का पीहीं
का ले परदेस जाईं ?

बाकिर राजा त साफे इनकार कऽ दिहलन । जदी बढ़ई अपना मरजी से खूटा चीरल नइखे चाहत, त जोर-जबरजस्ती कइसे कइल जा सकेला ? डॅड़े आ सजाइ देबे के त सवाले नइखे उठत ।

गवरइया खीसि का मारे लाल-पीयर हो गइलि । जवना राजा के परजा के दु:ख-दरद के परवाहे नइखे, ओकरा के त मारिए घालल नीमन कहाई । सोचत-विचारत साँप का सोझा जा पहुँचलि । निहोरा कइलस, “साँप भाई ! तूं राजा के डॅसि लऽ । राजा बढ़ई के ना डॅडलन बढ़ई ओह झूटा के ना चिरलस, जवना में दाल के हमार दाना अँटकल बा । तूहीं बतावऽ त भला, हम का खाईं, का पीहीं आ का लेके परदेस जाई ?”

साँप-साँप ! राजा इंस
राजा ना बढ़ई डंडे,
बढ़ई ना खूटा चीरे
खूटा में मोर दाल बा,
का खाईं, का पीहीं
का ले परदेस जाईं ?

साँप साफे मना कऽ दिहलस कि एगो छोटी चुकी गलती खातिर अतहत बड़हन सजाइ ना दे सके । राजा के डॅसिके पाप के भागी ना बनी ।

साँप के बतकही सुनिके गवरइया के किरोध सातवाँ आसमान प जा पहुँचल । तुरुन्ते गवरइया लाठी का लगे चलि गइलि आ सउँसे दास्तान सुनावत साँप के जान से मारे के आरजू-मिन्नत करे लागलि :

लउर-लउर ! साँप मारऽ
साँप ना राजा डॅसे,
राजा ना बढ़ई डंडे,
बढ़ई ना खूटा चीरे,
खूटा में मोर दाल बा,
का खाईं, का पीहीं,
का ले परदेस जाईं ?

बाकिर जब गवरइया के निहोरा प लाठी तनिकियो अखियान ना कइलस, त सोझे आगी का सोझा जा पहुँचलि । आगिए नू लाठी के जरा सकेले । आगी के मए कहानी सुना दिहलस:

भउर-भउर ! लउर जारऽ
लउर ना साँप मारे,
साँप ना राजा डॅसे,
राजा ना बढ़ई डंडे,
बढ़ई ना खुंटा चीरे,
खूटा में मोर दाल बा,
का खाईं, का पीहीं
का ले परदेस जाईं ?

आगी कान रोपिके गवरइया के बात सुनलस । ओह हती मुकी जीव के बहादुरी प ओकरा बहुते हुलास भइलफेरु का रहे ! आगी गवरइया के सँगें लेके लाठी के जरावे खातिर जाए लागलि । जइसहीं लाठी के नजर गवरइया का सँगें आवत आगी प पड़ल, थर-थर काँपे लागलि । लउर खुदे भउर का लगे जाके कहलसि, “हमरा के केहू जराओ मत । हम खुदे साँप के मारब !”

हमरा के जारे-ओरे मत कोई,
हम साँप मारब लोई !

जब साँप के पता चलल कि लउर ओकरा के मारे खातिर तेयार बा, त डर का मारे काँपे लागल । अपने आप बके लागल, “हमरा के केहू मत मारो । हम राजा के डॅसे खातिर राजी बानी ।

“हमरा के मारे-ओरे मत कोई,
हम राजा डॅसब लोई ।

जब राजा के मालूम भइल कि साँप उन्हुका के डॅसे आ रहल बा, त बढ़ई के डॅड़े के निरनय लिहलन :

हमरा के डॅसे-ओसे मत कोई,
हम बढ़ई डॅडब लोई !

बढ़ई के त होसे उड़ि गइल । हाथ जोडिके लागल गिड़गिड़ाए कि ओकरा के सजाइ ना दिहल जाउ। खूटा चीरे चलि दिहलस :

हमरा के डॅड़े-ओड़े मत कोई,
हम खूटा चीरब लोई !

हथियार का सँगें बढ़ई के नियरा आवत देखिके खूटा सकपका गइल । आरी प दीठि परते दरद से बिलबिला उठल । आरतनाद कइलस,
“हमरा के चीरे के दरकार नइखे । हम अपनहीं फाटि जाइब।

“हमरा के चीरो-उरो मत कोई,
हम अपने से फाटब लोई ।

जइसहीं खूटा फाटल, गवरइया के दाल के दाना वापिस मिलि गइल । आपन हेराइल चीजु पाके खुशी से झूमि उठलि ।

गवरइया के देखे खातिर लोगन के भीड़ि लागि गइल। त बड़हन-बड़हन महारथियनो के नवा देले रहे ।

सभ केहू ओह नन्हकी चिरई के साहस के तारीफ करत रहे । गवरइया कहलसि, “अपना जायज हक खातिर निडर होके लड़ेवाला के कामयाबी जरूर मिलेला ।’ गवरइया दाल के ठोर में दबाके अपना खोता का ओर फुर्र से उड़ि गइलि ।

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