संजीव कुमार जी के लिखल भोजपुरी कहानी मेहनताना

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“ए का हो भाई, लउकत नइख, ए घरी कहवा रहत बाड़ हो”, टुकर कहलन। हजारी भाई कुछउ ना बोललन।

टुकर भाई फेरु कहलन, “ए हजारी भाई, कम सुनात बा का हो, हेतना जोर से बोलनी ह, कुछउ ना बोलत बाड़, कौनो बात होखे त बताव, हम एहिजा बड़ले बानी”

हजारी एगो लम्बा सांस लईके, शुरू कइलन, ई बताव तु हमरा के चैन से ना रहे देब,एक दिन हमरा घरे जाइके, का का कह आइल बाड़…हमरा मलकिनी से।

पूरा कहनिया अब खुल गईल…
“एक दिन टुकर गइलन, हजारी भाई के घरे…
आवाज लगिलन..”ए हजारी भाई बाड़े”
“ना ए टुकर बाबु कहि गईल बानी” हजारी ब कहली।
“रउआ से एगो बात कही”
“कही”
“रउआ के केहु पांच सौ ब कहि, त बोलेब नु”
अब टुकर बाबु के बात सुनी के मने मन हसली और मन मे सोचलि की ई टुकुर बाबु के जवाब देवहि के पड़ी।

“ए टुकर बाबु, रउआ मेहरारू के केहु सोजहग ब कहि त रउआ कइसन लागी”…
अब त टुकर बाबु उलटे पाव भगलन….
इहे बात के झगड़ा चलत रहे, हमरा मेहरारू के तू काहे कहल ह…. कोहराम मचइले रहे लो…..बुझात रहे कि दुनु जाना सबेरे सबेरे दु दु घुट पी ले ले रहल लो।

ओहि डगरिया से, प्रभात मास्टर साहब, चल आवत रहनी। प्रभात सर पुरनका में के मास्टर रहनी। उ चली त कुछ दुरे से सायकिल के चोय चोय के आवाज से बुझा जाव की प्रभात मास्टर साहब आवत बानी।

अब दुनु जाना लोग आवाज सुन के चुप हो गइल लोग,सगरी नाशा एक ही बार मे उतर गईल। अब प्रभात मास्टर साहब लगे अइनी, दुनु लोग परनाम कइल लोग। आपन झगड़ा सुनावल लोग, प्रभात मास्टर साहब सब सुननी आ कहनी की सुन लोग दुनु जाना में केहु केहु से कम नइखे, दुनु जाना एक से बढ़ के एक बालो, हजारी के त मेहरारू टुकरो से तेज बाड़ी।

ई 500 कहलन त उ सोझहग 1000 कह दिहली। त जालो आपन आपन काम देख लो, हेतना तेज मेहरारु घर मे रखले बाड़ लोग, कुछ पढ़ा लिखा द लोग, मरदवा, तू लोग के कुछु बुझाते नइखे। रुपया ना कौड़ी, बीच बाजार में दौड़ा दौड़ी। कमात बाड़ लो ना, आ खाली लड़ाइये होइ। अब हजारी अपना मेहरारू पर भितरे भितरे गर्व करे लगलन।

“एगो काम कर, तहनी दुनु लोग,सजीव मास्टर साहब के लगे जा लोग, उ चारो औरि घुमत रहेनी, उ सब तहार समस्या हल कर देहब, उहा के हप्तावारी हप्तावारी अतवार के कुछ अनपढ़ लोग के लिखे पढ़े के सिखाइले, सीखे पढ़े के होइ त जा लो उहा से भेंट कर ल लोग, आ हई जहे ना तहे शुरू हो जाता बाड़ लोग,ठीक नइखे” प्रभात मास्टर साहब कह के आगे बढ़ गइनी।

अब हजारी भाई के मन मे बात बइठ गईल, की हमार मेहरारु तेज बिया, ई कुछ कर सकेले। अब उ चललन स्कूल में संजीव सर के लगे। गाँव मे दु गो स्कूल रहे। एगो में संजीव मास्टर साहब पढ़ाई दूसरे में प्रभात मास्टर साहब। गाँव बहुत अनपढ़ लोग के रहे त संजीव मास्टर साहब ,गांव के लोगन के कुछ कुछ हर , अतवार के पढ़ाई औरि कुछ कुछ बनावे के सिखाई।

जैसे कि दउरी बीने के। हाथ पंखा बनावे के। ई सब सिखाई त लोग बनावे औरि बाजार में बेच देवे लोग। उहा के दिमाग मे रहे कि गांव के गरीबी के ए तरह से लोग के आत्म निर्भर बना के गरीबी दूर कइल जा सकेला। प्रखंड में बाजार में राजकुमार के दुकान में बइठ के इहे सोचत रहनी, तले राजकुमार चाय लेके अइले, “सर ली चाय पी”।
“का हो राजकुमार, खाली नमवे के राजकुमार बाड़ की तहार काम भी राजकुमार खानी बा”, संजीव सर कहनी।

“ना गुरु जी, हमार कामो बड़का बा, हेतना बड़का मिठाई, चाय के दुकान हमरे नु ह, 5 गो आदमियों रखले बानी, रउआ हमार पहिलका गाहक हइ, एहीसे खाली रउआ के अपना हाथ से बना के चाय पियावे नी”।

“का बड़का बा, हम जहवा पढावे नि, ओहिजा के लोग एकदम गरीब बा, मरद सब दिन भर काम कर के शाम के सगरी पइसा, शराब में खत्म कर देवे ला लोग, गांव गरीब के गरीब रह जाला, ओहिजा के औरत सब के आत्मनिर्भर बनावल जाव त, उ गांव के विकास होइत।”
ओहिजन, दुगो लोग रहे जे सब बात सुनत रहे लो।

लगे आइल लो, संजीव सर से पूरा गांव के पता पुछल लोग,कहल लोग की हमनी अतवार के आइब जा, रउआ अगिला अतवार के गांव के सब महिला लोग के बटोर के रखब। हमनी आइब त बताइब।

मास्टर साहब, चाय पी के चल दिहनी। रिपोर्ट जमा कर के रहे उ हो गइल रहे।

अगिला अतवार के गांव के 20 से 25 महिला आ गईल लो, पाठशाला चलत रहे। ओहि समय उ दुनु लोग औरि 4 गो महिला, कुल 6 जाना गाड़ी से स्कूल में आ गईल लोग। उ लोग कौनो संस्था के रहे लो। बड़ी खुशी भइल, कुर्सी पर सबके बैठावल गईल। महिला ईगो खड़ा भइली, कहली….

“देख लोग, हमनी तहरा लोगन के भविष्य बनावे खातिर आइल बानी लोग, हमनी के राष्ट्रीय संस्था के बानी सन, हमनी तहरा लोग के 15 दिन के प्रशिक्षण देके, कुछ कुछ बनावे के सिखावल जाइ, ओकरा बाद सामग्री सबके दिआइ और रउआ लोग ओके बना के देहब लोग, रउआ के ओकर मजदूरी मिली, राउर परिवार के हालत सुधर जाइ…….

त सब कोई आपन आपन नाम लिखवा दी, के कौन काम सिखी….

त हाथ उठाई…..कपड़ा सिलाई के के सिखी….

अगरबत्ती बनाये के के के सिखी……

20 महिला तैयार हो गइल लोग, कुछ किशोरी लोग भी तैयार भइल लोग….टुकर के मेहरारु औरि हजारी के मेहरारु भी नाम लिखइली…प्रशिक्षण खत्म भइल, हजारी के मेहरारु औरि टुकर के मेहरारु दुनु जानी कपड़ा बनावे के औरि सिये के सिख गईल लो। संस्था में अब कुछ कुछ काम के बदले मेहनताना मिले लागल। पहिलका बार पइसा मिलल, गांव में खूब खुशी के माहौल भर गईल। अब घर के लक्ष्मी के हाथ मे साँचहू के लक्ष्मी आवे लगली।

तले बिहार में शराब बन्द हो गइल। पइसा के संचय होखे लागल। गांव में परिवर्तन देख के संजीव मास्टर साहब के अउरी प्रभात मास्टर साहब के खुशी के ठिकाना ना रहल। गांधी जी के सपना साकार हो गइल। गांव के विकास से देश विकसित होखेला। लोग आपन मेहनत के फल पावे लागल। पहली बार हाथ मे मेहनत के पइसा देख के टुकर ब औरि हजारी ब के किस्मत बदले लागल।

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