सरोज सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता अंखियन के लोर

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जिनगी के इ लमहर पाट
घाट जइसन नु लागेला,
भींजले रहेला, सुखे ना
अंखियन के लोर……

घर कहां घरजनवा मे
घरे-घरे , समहरे बा ,
सांझे बेर से, रूकेला ना
अंखियन के लोर ……

सरोज सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता अंखियन के लोर
सरोज सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता अंखियन के लोर

दवा – दुआ कहां सुनत
माटी के अइसन ह घाव
जल-जल,जलधि-अवधि
अंखियन के लोर ……

जजात कबो,सुखे सुखाड़
बाकी विलीन, बाढ़-दहाड़
इ लड़ी-झड़ी कबो टुटे ना
अंखियन के लोर …….

जब से जमले,कहंवा सम्हरले
सुखे कबो,कबो फले – फूले
धरत-धीर ,नित पियत पीड़
अंखियन के लोर …….

मुहाल-बेहाल, सुख-सुविधा
लिख-लिखतंग,समय-सीधा
आशा-अंजोर मे , अकेल
अंखियन के लोर …….

मिलन-बिछड़न, बूंद ढरके
मनमित-प्रीत, जाला छोड़के
किस्मत कोसे ,तब बरसेला
अंखियन के लोर ……

बाबा के स्नेहिया, छोड़े साथ
माई के अंचरा रहे नाथ माथ
धिया विदा के बेर झर-झर
अंखियन के लोर ……..

नाव “सरोज” जिनगी के बेचारा
कबो ऐह- त कबो ओह किनारा
धड़-धरा पर , मन गगन के ओर
अंखियन के लोर …….

जिनगी के लमहर पाट
घाट जइसन नु लागेला ,
भींजले रहेला, सुखे ना
अंखियन के लोर ……

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