बाह रे जमाना | भोजपुरी कविता | शैलेन्द्र कुमार साधु

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बाह रे जमाना,
तोरा मे गजबे,बदलाव आईल बा।
होते जनम बबुआ के बाजा अंगरेजी बजववनी,
बबुआ खातिर ,बनावटी झुला लगाईल बा ।

शैलेन्द्र कुमार साधु जी
शैलेन्द्र कुमार साधु जी

बहुत मेहनत से , दिन-रतिया एककराईल बा।
एही तरे बबुआ पोसाईल बा।
जारा,घामा आ बरखा,कुछउ ना बुझाइल बा।
माई भुखे आ बाबू के पाईट पर चेपी सटाईल बा।
होत सयान मे बबुआके,
ख्वाब पुरा कराईल बा ,
आपन मुहवा मे जबिया लगाईल बा।
छाती चउरा कके , इसकुल भेजाईल बा।
जाते बबुआ के हाथे,माहटर पिटालईल बा ।
करत मजदूरी बाबू के,देहिया से पसीना आईल बा।
आ ईहा बबुआके,दारू मेगजबे स्टाईल बा।
होते सयान बबुआ से, आस लगईनी,
आ ईहा बबुआके हाथे,तास पता कटाईल बा।
बुढापा मे बारा आशा कईनी,
बाद मे कवनो जनम के, कईल करम याद आईल बा ।
होत बुढापा मे,मेहरी के कहला पर,
बबुआ!माई-बाबु से खुबे अगुताईल बा ।
रोज माई- बाबू भूखे मरस,
मेहरी के हाथवा मे सुधा मलाई बा।
माई-बहिनिया के, उलटा भाषा बोल बोलवले।
आ इहा ! सासु-सालीजी के चरण अमरित पिआईल बा ।
एक देहिया से निकलल के लात देखवनी ,
बहरी मे बेसवाके बनारसी किनाईल बा ।
“साधुजी”के बतिया पर ,
खुबे खिसीआईल बा।
बाह रे जमाना,तोरा मे गजबे बदलाव आईल बा ।

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