संजीव शुक्ल जी के लिखल भोजपुरी कविता नवका जमाना

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आईल घोर कलयुग भरल सगरो हताशा
जेने देखीं ओने लऊके बीगड़ल जमाना,
कइसन ई जुग आईल कइसन ई जमाना
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।१।।

संजीव शुक्ल जी
संजीव शुक्ल जी

बबुआ बबुनी घुमत बाड़े बाईक पर सटके
लाज लजाई बाकीर बईठी नाही हट के,
बापू , भाई देखे देखे सगरो जमाना
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।२।।

बबुआ बड़हन बाल राखे मोछ राखे छील के
बबुनी के चाल बीगड़ल, सेन्डिल ऊचा हील के,
शरम सगरो छुटल उठल लाज के जनाजा
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।३।।

माई बाबू तीत भईलें रोजे बा तमाशा
सास ससुर मीठ जईसे चीनीया बतासा,
बाप माई बोझ लागे ससुर भाग्य दाता
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।४।।

कहाँ से हम शुरू करीं कहाँ ले हम जाईं
भाई – भाई मुदई भईले रोजे बा लड़ाई,
चोरी कईके घरमें करे भाई से बहाना
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।५।।

खोज ना खबर तनिको बाटे माई बाप के
बबुआ फुटानी जोते जघे जघे चांप के,
बबुआ निकम्मा खेरलस बाप के हताशा
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।६।।

जेने देखीं झूठ-सांच पाप के बाजार बा
पापीयन के चलत नाहीं दउड़त सरकार बा
धरम करम पर जे रहे खायेला तमाचा
कइसनकइसन खेल कईसे होत बा तमाशा।।७।।

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