प्रियंका त्रिवेदी जी के लिखल भोजपुरी कविता पापा कहेलन

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पापा कहेलन
लइकी चिरई हो ले,
अगर इ साच ह तो
खुले गगन में उड़े के
हमनी भिरी पंख
काहे न हो ल,
आपन सपना पूरा
करे खातिर हमनी
के काहे लज्जित
होखे के पड़ेला,
डर डर के काहे
जिये के पड़ेला।
आसमां के छूए खातिर
हमनी के पिंजरा
काहे तोड़े के पड़ेला। ‌‌

प्रियंका त्रिवेदी जी
प्रियंका त्रिवेदी जी

पापा कहेलन
लइकी दूं गो घर के
रानी हो ली,
गर इ साच ह तो
हमनी के पराई
होंखे के हर घर
में एहसास काहे
के दिलावल जा ला।
संस्कार और मर्यादा
के बेड़ियन में जकड़ल
काहे जा ल।

पापा कहेलन
लइकी, लइकन के
जन्म देके,एगो
नया समाज बसा सकें
के क्षमता रखेली सन।
गर इ साच है तो
काहे हमनी के हर
पल मजाक के पात्र
बना वर जा ल।
सरेआम यूं हे समाज
द्वारा लज्जित हो
खे के पड़ेगा।

पापा कहेलन
लइकी कमजोर ओर
बेबस न हो ली सन,
बिसरा देवेला मर्द
बड़ा होख के बाद,
नारी की शक्ति के
जो दर्द सहकर जन्म
दे सके ले मर्दन के त,
आपन लाज बचावे
खातिर उनकर संहारो
कर सकेली सन।
आपन मर्यादा में
रहकर भी आपन
सपना,आपन मंजिल
पा ले ली सन।।

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