भोजपुरी के आधुनिक संदर्भ के काव्य संग्रह – रसिया जी के ‘ओरहन’

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रसिया जी के भोजपुरी रचना के संकलन ‘ओरहन’ पर आपन बात करे से पहिले हम महान कवि थॉमस ग्रे के एगो कविता – ‘Elegy Written in Country Churchyard के एगो पंक्ति लिखत चाहत बानी -“ Full many a flower is born to blush unseen”

ग्रे एह पांति में एह ला रोवत बाड़ें कि जंगल में बहुत अइसन फुल खिलेला आ खतम हो जाला बाकिर दुनिया ना देख पावेला। ओही लेखा प्रचार तंत्र के बहुत दूर बिहार के पच्छिम आ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के आखिरी छोर पर एगो गाँव बा –मोरवन। मोरवन गाँव दुनिया में भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थली के खातिर मशहूर कुशीनगर से सटले बा। एही गाँव में भोजपुरी के एगो अनन्य सेवक श्री नथुनी प्रसाद कुशवाहा उर्फ़ रामपति रसिया जी के निवास बा।

रसिया जी
रसिया जी

रसिया जी बरिसन से भोजपुरी भाषा में रचना कर रहल बानी। हमरा इहाँ के लिखल तीन गो पुस्तक पढ़े के मौक़ा मिलल, जेकरा में पहिला संग्रह बा ‘अंजोरिया में बदरी’। जवनना में 51 गो निर्गुण के संग्रह कइल बा, दूसर रचना संग्रह बा ‘श्रद्धा’ जवन कविवर पंडित धरिक्षण मिसिर जी संक्षिप्त चरितावली ह, आ तीसर संकलन बा ‘घेरले बा बदरी’।

वइसे इ ‘घेरले बा बदरी’ संकलन भोजपुरी साहित्य के समकालीन संदर्भ के बतलावे खातिर हमरा बड़ा नीक लागेला। एह संकलन में 57 गो रचना बा बाकिर 8 गो आधुनिक सन्दर्भ के रचना बाडी सन जेकरा में चेतना के संचार (stream of consciousness)बा – बहरा लिहाला ना, बरम्हा के बदली भइल, धरम, खटमल, खुटवे बा पगहा चबात, घेरले बा बदरी, मनु के मान बढ़ाव मत आ भकोल भाई..

‘घेरले बा बदरी’ में रसिया जी समाज के अन्हार जगह में दियरी बार देत बानी। एह कुल्ह कवितवन में सामाजिक जागरूकता के तत्व मौजूद बाड़ी सन आ धार्मिक रुढिवादिता, जड़ता आ ढ़ोंग-पाखण्ड के प्रतिकार कवि कर रहल बानी। एह संकलन के खूबी बा कि धर्मं-आडम्बर के जाल में, काल्पनिकता के भूत-भांवर में फंसल समाज के नींद से जगावे के उत्जोग कइल बा आ संगे संगे समाज में चेतना के प्रवाह के करल जा रहल बा। ‘मनु के मान बढ़ाव मत’ कविता में रसिया जी के कहनाम बा –

‘ मनु के मान बढ़ाव मत
जाति-पाति के भेद भाव ही सबका के छितरवले बा
सोना जइसन नगरी में सदियाँ से आग लगवले बा
कर्म काण्ड का रसरी से कसि कसि के बोझा बान्हल बा
स्वर्ग नर्क के छान लगा के भारतवासी छानल बा
कबले रहब छानल तूँ अब आगे छान लगाव मत,
मनु के मान बढ़ाव मत।’
(पृष्ठ-37 घरेले बा बदरी से )

आलेख प्रस्तुति : संतोष पटेल जी
आलेख प्रस्तुति : संतोष पटेल जी

एह कविता के भावभूमि पर गौर करल जाय त समकालीन दलित चेतना के कवितन के कसौटी पर इ अकेला कविता एतना खरा उतरत बा कि एकरा जोड़ के ना हिंदी में भा ना मराठी में कवनो दलित चेतना के कविता मिली। बहरहाल, रसिया जी के कविता जीवन के अनुभव से पाकल कविता बाड़ी सन।

आचार्य रामदेव शुक्ल जी कहस कि ‘कविता जीवन अनुभूति है’ बाकिर रसिया जी के मामला में हम कविवर जयशंकर प्रसाद के कविता में कहल बात के राखब कि “कविता सत्य की अनुभूति है’आ इ साँच के रसिया जी के कविता में निरखकल जा सकेला।

रसिया जी के कविता कौशल के इहाँ के एगो आउर काव्य संग्रह ‘अंजोरिया में बदरी’ में खिल के आइल बा। घनानंद के एगो पद इयाद आवत बा –

“लोग है लागि कवित बनावत
मोहि तो मेरे कवित बनावत”

साँचो रसिया जी के कविता उहाँ के रसिया बनावत बा। निर्गुण के एक बार सभे के पढ़े के चाहीं एकर गेयता एतना सशक्त बा कि कवनो कवनो निर्गुण आँख के बेर बेर ओद कर दी। बुझाला केतना वेदना प्रियता के एह कूल्ह रचनन में रसिया जी भर देले बानी ।

रसिया जी ‘ओरहन’ के पांडुलिपि हमरा के भेजनी जेकरा में 36 गो कविता पढ़े के मौक़ा मिलल। तक़रीबन 8 गो रचना – अबला, ओरहन, जतरा, पीयत बा खून. घुसकत घुसकत, साधू कइसे, बाबा साहेब के समरपित आ महरिन आदि कविता के तेवर काव्य संकलन के नाम ‘ओरहन’ के सार्थकता दे रहल बा।

जइसन कि ओरहन यानी शिकायत (complain) से कवि आपन मंशा साफ़ कर देले बाड़ें कि भोजपुरी के घीसल पीटल कविता नॉ चली। लीक ध के चले वाला नवही कवियन के एगो राहता देखावत रसिया जी बतावत बानी कि उहे रचना बाची जवन विमर्श से जुडल होई।

इ बात रसिया जी के काव्य चेतना के सबूत दे रहल बा। एह में बहुत ‘नकार’ के रचना बा जवन समकालीन काव्य विमर्श के उहाँ के जोड़ रहल बा उदाहरण देखीं-
काहे अइसन होला बाबा देखीं तनी पतरा
काहे अइसन होला बाबा देखीं तनी पतरा
जिनिगी में भेद भाव अधरे के बाटे
आदिमी आदिमिये से नीच ँच छांटे
बाकी लाश देखि ओकर बनि जाला जतरा
काहे अइसन होला बाबा देखीं तनी पतरा ( जतरा, ओरहन, पृष्ठ-12)

रसिया जी के रचना में गेयता बा जवना भोजपुरी कविता के विशेषता ह। उहाँ के एह संग्रह में जवन रचना कइले बानी सबके सब भोजपुरी गीत ह जेकरा में रागात्मकता के भावना बा जवन छंद में व्यक्त बा। गीत काव्य शास्त्र के नियम आ परम्परा के पालन करे, जरूरी नइखे बाकिर एह में रागात्मक तौर पर हृदय के अनुभूति के सफलता से अभिव्यक्ति होखेला। रसिया जी कविता संग्रह ‘ओरहन’ में ‘आगहूँ ना आई जी’ में देखीं-

रहल बा हमेशा रही आगहूँ ना जाई जी
धनिक आ गरीब के ना पाटी कबो खाई जी
कहेला लोग मालिके बनवलें बाड़ें देहिया
अंगूरी से छोट बड़ सजवले बाड़े बहिया
दीन बिना कइसे दीनबंधू का खेपाई जी

रहल बा हमेशा रही आगहूँ ना जाई जी ( पृष्ठ -19, ओरहन से )

उपर कविता में जनवादी विचार साफ़ साफ़ देखाई देत बा जवन बदलाव के सोच लेके लोकतंत्र आइल उ कवि के मन में समता के भाव ना भर सकल समानतापूर्ण समाज के सपना बस सपना रह गइल जइसन कि कवि जीवन के 70 श्रम वर्ष से जी रहल बानी आ महसूस क रहल बानी।

कुलमिला के भोजपुरी साहित्य में मिल के पत्थर साबित होखी नथुनी प्रसाद कुशवाहा जी के इ नवका कविता संग्रह –ओरहन। समकालीन चेतना के एह संकलन के स्वागत बा।

संतोष पटेल
राष्ट्रीय अध्यक्ष,
भोजपुरी जन जागरण अभियान, दिल्ली

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