विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा आश

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आश मनुष्य मनोवृती के अटूट शक्ती, जोन कबो आपन दम न तोडे ! आश ओह समय तक दिल मे होला. जब केहु आपन के पार्थीव शरीर भुमी पे स्वेत वस्त्र मे लिपटल परल होखे | ओर मन के बुझाए की मृत्क इंसान आपन निन्द पूरा कर के अभी उठ जाई ||

अपना अखियन मे आश के जोत ज़रावत और दिल मे दर्द के गहराई समेटले श्रीधर अकास के ओर ताकत बा, श्रीधर के बैचेनी और व्याकुलता देख के उनकर बारह साल के पोता बृजू ओह से पुछ बईठल !
बृजू, श्रीधर से : “” बाबा तु अकास मे का देखत बाड़अ “”.!

श्रीधर, बृजू से: ” अरे बृजू अकास मे तहरा कही बदरी लऊकता का , तनी बताव हम के “” ऊमीर के साथ-साथ हमार अखीयो धोखा देता. हमरा दुरी मे कमी आ गईल बा “” |
बृजू अकास मे देख के : ” बदरी त नइखे लऊकत, लेकिन बहुत तेज घाम लागता . चलअ न बाबा कही छाव मे बईठल जाव”!

श्रीधर निरास हो के ‘: ‘ अब त बइठही के बा निश्चींत हो के बृजू’. सब कईल-धईल पे पानी जे फिरे वाला बा |

बृजू ना समझी से भरल सवाल फिर कइलस:’ “कइसन पानी फिरी बाबा” हम समझनी न, तु का कहताs ||

श्रीधर गहरी सास अपना अंदर भर के बोलतारे”: “पानी फिरी हमरा कर्म के लकीर पे”, हमार कईल-धईल मेहनत पे! जोन हम अपना और तहरा लोग ला कईले बानी . हई जोन तहरा आज लऊकता रवि के खेत, जोन की अपना पूरा जवानी पे लहरत ई फसल एगो आखरी पानी खातीर बिलखता ! अगर ऐके एगो ओर आखरी पटवन पानी के न दिआई त सब बर्बाद हो जाई ! ||

बृजू उत्साहित होके भोलापन मे'”: त एमे सोचे के का बा और बदरी के आश काहे खातिर बाबा . सहुकार चाचा के पम्पीसेट से पानी चला दीआव !!

श्रीधर आह भर के उदासीन अवाज मे”‘: पानी त मिली बृजू ,”लेकिन” रूपिया लागी . और ओतना रूपिया अब हमरा पास नइखे! जो रहे तोन पहिलही खेती मे लगा देनी. “”अब त आश बा आश ऊपर वाला के””! ड़ीजल अनुदान भी मिले वाला रहे, लेकिन ऊपरे-ऊपर सब मिल बाट के खा गईल. उपर वाला लोग.! जोन आज रकक्षक बनल बारे ऊहे धीरे-धीरे दिमक नियन हमनी के चाटत बा| और हमनी नियर मजबुर किसान के अन्दर से पूरा खोखला कर देत बारन !! ||

समय गुजर गईल आश मे जीअत-जीअत श्रीधर भी स्वर्ग शिधार गईले. समय के दौड चलल बृजू जवान हो गईल और किसानी के भार ओकरा कंधा पर पड़ल !!
ओकरा साथ उ सब बितल जोन ओकरा बाबा के साथ बितल रहे. और फागुन के अंत मे रवि के फसल जवानी के उठान पर पानी के आश मे पिलीया रोगी अस भ्ईल जात रहे | बृजू के भी ऊहे हलात के मार परल रहे जोन ओकर बाबा के परल रहे! बृजू के अब बुझात रहे की बाबा काहे आश मे जीआत रहले ||

बृजू भी अकास मे आश भरल आँख से ताके और ऊहे बदरी खोजे जोन ओकर बाबा श्रीधर खोजत रहले . जोन बरखे त फसल के हरिहरी के साथे-साथे मन के भी हरीहर कर देव ……!!|||

विवेक सिंह

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