भोजपुरी लघुकथा बटवारा : संगीत सुभाष

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फुलेसर आ बिसेसर दुनू भाई अपना बाप का मुअते- मुअत अलगा होखे के तइयारी क लिहल लो। पंच लो जउरिआइल आ घर-दुआर, खेत-खरिहान, फेड़-खूँट, गहना- गुरिया सब चीज बराबर- बराबर बाँटि दिहल।

दुपहरिया में बँटवारा भइलसाँझि बेरा दुनू भाई का अलगा-अलगा रसोई बनल। सभे खा-पी के सूते जाए लागल तले का जाने कहाँ से फुलेसर का छोटका लइकवा का मन परल आ पूछलसि-‘ ए माई! इआ ना खइहें का?’

फुलेसर बो कहली-‘ का जाने खइहें कि ना? हम त इहो नइखीं जानत कि केकरा बखरा परल बाड़ी?’

भोजपुरी लघुकथा बटवारा : संगीत सुभाष
भोजपुरी लघुकथा बटवारा : संगीत सुभाष

बिसेसर सब बात सुनत रहलें। कहलें कि माई के त बखरा ना लागल ह। अब ओकरा खातिर बिहने पंच बोलावल जाई।उनके मलिकाइन कहली कि हमरा इहाँ त अब कुछु बचलो नइखे कि दे दीं। इहे बात फुलेसरो बो कहली।

माई दुनू जना के चिन्तामुक्त करत कहलसि-‘ तहन लोग खा लिहलऽ त बुझऽ लो हमहूँ खा लिहनीं। एक बेरा ना खइले हम मरब ना। जा लो, चैन से सूतऽ। बिहने हमार बखरा लगा लिहऽ लो त खिआ दिहऽ लोग।’

बिहानहीं पंच महतारी के बटवारा करे एकठ्ठा भइलें। फुलेसर माई के जगावे गइलें। माई ना बोललि त ना बोललि। माई दुनू जना के भीरि खतम क के हमेसा खातिर सूति गइल रहे। केहू ना जानल कि फुलेसर आ बिसेसर के माई भूखे मुअलि ह कि अपना बटवारा का सदमा से?

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