अमन पाण्डेय जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा नवका बिहान

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आई पढ़ल जाव अमन पाण्डेय जी के लिखल एगो भोजपुरी लघु नवका बिहान, पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा इ भोजपुरी लघु कथा कइसन लागल, रउवा सब से निहोरा बा की पढ़ला के बाद शेयर जरूर करीं

सुरेश आपन माई के पकड़ के दिलासा देत रहलन की “माई ई दुख के बादर एक न एक दिन हटबे करेला” हमनियो के सुघ्घर बिहान होई, सभके लेखा हमनी के भी चूल्हा में जरल आगी अइसन पकवान बनाई की ओकरा के खा के हमनी के आद औलाद जब मजदूरी में हथौड़ा चलाई त पाथर त टुटबे करी , उ सरकार अउरी भ्रष्ट प्रशासन के करेजा फाट जाइ……

अमन पाण्डेय जी
अमन पाण्डेय जी

माई के सगरे आश विश्वास आपन संतान में ही होला माई के भी ढाढस बन्ह गइल,,,,,बाकी एगो माई बस एक सन्तान के माई होली बकिर उ मातृत्व के अइसन ममता अउरी भावना में डूबल रहेली की केहु के अनभल ना चाहस….. माई कहेली- हमनी के चैन से जी सकी बेटा अउरी का चाही जे लूट खा रहल बा ओकरा खाए द केहु के करेजा काहें फाटे?

सुरेश- पढ़ल लिखल रहलन ,,,,,कहलन “माई तहरा जइसन हमनी के समाज मे कतना माई बहिन ही ना कतना भाई लो भी बा जे उ अत्याचार अउरी जुल्मी शासन के हर जुलुम सह लेला, ओहिसे हमनी आज ले लाचार, दरिद्र बानी जा………

माई- अच्छा छोड़ ई कुल पचरा कुलवंती चाची माठा देहली ह रोटी गरम बा खा ल….ई सब बात आपन बिस्तर पे सुत के सुनत रहली ह सुहानी (सुरेश के पत्नी) सुहानी भी साक्षर बाड़ी गर्भावस्था में उनकर तबियत ठीक ना रहला के कारण कोठरी से बाहर नइखी आ सकत…..
सुरेश- माई तू खइलू ह रोटी ?

माई- हां तू कसम देले रहल न कि दवाई से पहिले खा लिहs हम खा लिहनी.
(सुरेश आपन खाना लेके सुहानी के पास गइलन ,सुहानी पतिव्रता अउरी संस्कारबद्ध नारी रहली सुरेश के बाद ही खाना खास)
सुहानी- हेतना देर से खाएम त रउआ कइसे काम धाम कर पाएम ( मुश्किल से उठ के कहली)
सुरेश- अच्छा ठीक बा! हो जाई आव हमरिये थरिया में तुहु खा ल…..

सुहानी- ना ना हम बाद में खाएम रउआ बाद….
सुरेश- खा न ल एक्के में खइला से प्यार बढ़ेला साहेब!
( सुहानी खाए लगली,,,सुरेश के ई बात सुन के सालन से आ रहल गरीबी अउरी सामाजिक कष्ट क्षन भर में भुला गइल)
माठा कमे रहे, सुहानी नून से रोटी खातरी…

सुरेश- अरे हईं हेतना माठा अकेले खाएम हम? खा न तुहु .
सुहानी- ना हम पेट से बानी हमने ई नून बहुत नीक लागता रउआ माठा खाई…
( इहे त ह भारत जहां नारी पूजल जाली जहां एगो पत्नी के ई भावना के वेदना अउरी समपर्ण पहाड़ चीर दे, )
कुछ देर बाद…….

मुखिया – हे फलनवा के बेटा सुरेशवा….. तोरा कुदार से माटी के चेका नइखे उठत आ मजूरी मांगे खातिर एक हाथ के मुँह खोल के चिलाले?
सुरेश- मुखिया जी रात हमार मउगी के दर्द उठ गइल रहे उ पेट से न बिय ,ओकरा के सरकारी अस्पताल छोड़ के आइल बानी , रात भर सुत्तल नइखे…..ना जाने का हाल होखी ओहिजा भगवान सब ठीक करिह केहु के कुछ बिगरले नइखी…..गमछा से भरल आंख पोछ के फेर कुदार चलावे लगलन..

मुखिया- हुंह ……एकनि के बिपत हरमेसा धइले रहेला…
(सुरेश के माई बहुत परिश्रम से खेत तक अइली आ कहली अरे बनरमुहवा चल हउ देख तोर कुदार सम्हारे आला आ गइल चल देख त एकदम तोरे प गइल बा)
सुरेश- कुदार फेक के बइठ गइलन उनकर नसीब जाग गइल रहे खुशी से उनकर आंसू बंद नइखे होत…..

बाकी उनकर करेजा कांप गइल की माई ई का कहतिया कुदार सम्हारे वाला?
सुरेश- भाग के मुखिया जी के गोड़ पर गिर के …..मुखिया जी हम बाप बन गइनी…जय हो काली माई, भोले बाबा…
मुखिया- हा हा ठीक बा ई मत कहे कि मजदूरी आजे चाही..
सुरेश- बाकी हमार मउगी के खाए पीए के …..
मुखिया जी के तड़क से सुरेश के जुबान बंद हो गइल….
सुरेश- जातानी मुखिया जी आखिरी दिन राउर चाकरी के रहे….( चल देहलन घर के तरफ सुरेश, मुखिया पीछे पीछे)
मुखिया- तोर हेतना औकात,,,, ते हमरा से अइसन बोल दिहले? एक मिनट में रोड पे लादेम हम ….अरे विधायक , थानेदार लो हमरा किन्हें बकरा के नल्ला चुसेला लो, अंग्रेजी ठर्रा पियावेनी, तोर सुनवाई कहां होइ सब आपन ह ….

(हँस के कहलन मुखिया)

सुरेश- उहो बिहान आई जब हम बोलम आ रउआ बस सुनब हिम्मत ना होइ बोलेके रउआ….मुखिया- (तमतमाईल चेहरा के साथ) जिनगी भर कुदार चलवले तोर बाप भी चलवलस उहो हमरा खेत मे तोर हेतना जुबान ? लइका पाके आन्हर हो गइल बाड़े…

सुरेश- ना ना मुखिया जी….. रउआ कहले रहीं न की तोरा कुदार से माटी के चेका नइखे उठत ……आज से कुदार ना छूअब जातानी परदेश तनि हमर लइका के चेहरा हमरा से दूर रही त का, मउगी से दूर रहब त का , माई के देख रेख हमर मउगी कर ही ली …

बाकी आपन औलाद के हाथ मे अतना मजबूत कुदार ना मुखिया जी अतना मजबूत कलम पकड़ाएम की एक बार चली त हमरा जइसन हजार बाप के मजबूरी के नाश कर देई………!
“खुशी भरल परिवार में भी दुख कबो आजला, तनी देर ही सही बाकी हर दुख परा जाला।”

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