घर में ही दम तोड़ दिया ‘भोजपुरी’ ने

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भोजपुरी भाषा की हृदय स्थली भोजपुर जनपद में अवस्थित एकमात्र वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय का भोजपुरी विभाग, विभागीय अकर्मण्यता के कारण मृत हो गया है। विश्वविद्यालय के लापरवाही का नमूना उस वक्त देखने को मिला जब पटना हाईकोर्ट में चल रहे केस के आलोक में भोजपुरी विभाग को बंद करने का आदेश राजभवन द्वारा पारित कर दिया गया। इसकी मान्यताए रद्द कर दी गई है। जिससे भोजपुरी भाषियों व छात्रों के बीच मायूशी छा गई है।

सन 1992 से वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में चल रहा शाहाबाद क्षेत्र के एकलौता भोजपुरी अध्ययन केंद्र अब पूरी तरह से बंद हो जायेगा| यही नही इस विभाग से अब तक स्नातकोतर की उपाधि पा चुके एक हजार से अधिक छात्रों के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है|

वर्ष 2012 में विभागीय बैठक के बाद जब भोजपुरी भाषा के अस्तित्व पर सवाल उठा और 2013 में राजभवन ने एक पत्र कुलपति को भेजा था। जिसमें विश्वविद्यालय द्वारा खुद से डिपार्टमेंट खोल कर चलाने के लिए स्पस्टीकरण मांगा गया था। वहीं से मामला न्यायालय और विश्वविद्यालय के बीच एक दूसरे के पाले में फेंका जाने लगा। राजभवन के इस पत्र के आने के बाद 2014 में, 1998 से 2007 तक भोजपुरी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रोफेसर गदाधर सिंह ने भोजपुरी विभाग में 2008 से लगातार सेवा दे रहे लोगों के लिये हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से भोजपुरी में स्नातकोतर की पढाई कर डिग्रीधारी छात्रा सतीश कुमार का कहना है कि यह छात्रों के साथ सरासर अन्याय है, यदि भोजपुरी विभाग बंद होता है तो इसकी सारी जवाबदेही विश्वविद्यालय की ही होगी | आखिर किस स्थिति में उसने छात्र/छात्राओं का नामांकन किया, सभी प्रकार के शुल्क भी लिए तथा परीक्षा के उपरांत परिणाम भी घोषित किये और उतीर्णता का प्रमाण पत्र भी दिया इसके बाद अब अपनी ही द्वारा दिए प्रमाण पत्र को अवैध घोषित कर रहा है | उन्होंने कहा कि अगर विश्वविद्यालय छात्रों के भविष्य के साथ खेलने की कोशिश भी कर्रेगा तो विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन होगा|

कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में चल रहा एकलौता भोजपुरी अध्ययन केंद्र बंद
कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में चल रहा एकलौता भोजपुरी अध्ययन केंद्र बंद

विश्वविद्यालय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजभवन का कहना है कि विभाग की स्थापना में प्रक्रियागत गड़बड़ियों के चलते इस विभाग की स्थापना ही अवैध है ऐसे में इस विभाग को तत्काल बंद कर दिया जाय साथ ही सभी छात्रों की डिग्रियों भी अवैध मानी जाएँगी | यहाँ पाठकों को बताते चले कि 1992 में हिंदी के विभागाध्यक्ष गदाधर सिंह ने इस विभाग की नीव रखी थी | तब से लेकर अब तक वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय अंतर्गत अन्य विभागों की तरह ही इस विभाग में भी छात्रों का प्रवेश, परीक्षा एवं परिणाम घोषित होते रहे | मजे की बात यह है कि नए अध्ययन पद्धति के अनुसार भोजपुरी की पढाई एवं परीक्षा होती रही | छात्रों को बाजाप्ता स्नातकोतर की डिग्रियां भी बांटी गयी | लेकिन उस समय भी वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर भोजपुरी विभाग का जिक्र ना होना कहीं न कहीं छात्रों के मान में संशय पैदा करता था | फिर भी मातृभाषा के प्रति लगाव और विश्वविद्यालय द्वारा संचालित परीक्षाओं में उतीर्णता के पश्चात् प्राप्त डिग्रियों को देखकर उन्हें संतोष होता था |

वही दूसरी ओर विश्वविद्यालय ने विभाग में विभागाध्यक्ष को पदस्थापित कर बार-बार यह संकेत दिया है कि यह विभाग उसकी जानकारी में चल रहा है | हालाँकि विभाग में व्याख्याताओं की स्थायी नियुक्ति नही की गयी है, जिसको लेकर हाई कोर्ट में परिवाद भी दाखिल किया गया था | अब जबकि विभाग ही बंद होने जा रहा है, यह परिवाद भी स्वतः समाप्त हो जायेगा | साथ ही भोजपुरी को आठवी अनुसूची में शामिल करने की जंग में अपना महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले छात्र/छात्राओं को भी गहरा सदमा लगा है |

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