एगो जिनगानी

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कबो सुख त कबो, परेशानी से गुजरल
कबो आग त कबो, पानी से गुजरल
कबो लड़िर्काइं त कबो,जवानी से गुजरल
एगो जिनगानी, केतना कहानी से गुजरल।

कबो काम त कबो, आराम से गुजरल
कबो बदनामी त कबो, नाम से गुजरल
कबो छांह त कबो, घाम से गुजरल
कबो निहोरा त कबो, सलाम से गुजरल
कबो दिकत त कबो, आसानी से गुजरल
एगो जिनगानी, केतना कहानी से गुजरल।

कबो खिसियाके त कबो, प्यार से गुजरल
कबो नगद त कबो, उधार से गुजरल
कबो किनार त कबो, मझधार से गुजरल
कबो रुईया त कबो, पहाड़ से गुजरल
कबो सोना त कबो, चानी से गुजरल
एगो जिनगानी, केतना कहानी से गुजरल।

कबो कमजोर कबो, बरियार से गुजरल
कबो हलुकाह त कबो, भार से गुजरल
कबो गली कुची, कबो बाजार से गुजरल
कबो अकेला त कबो, हजार से गुजरल
कबो मनलस कबो, मनमानी से गुजरल
एगो जिनगानी, केतना कहानी से गुजरल।

कबो मस्ती में कबो, जिमेदारी से गुजरल
कबो भालु त कबो, मदारी से गुजरल
कबो निरोग त कबो, बेमारी से गुजरल
कबो छुंछे त कबो, तरकारी से गुजरल
कबो ठेला त कबो, दोकानी से गुजरल
एगो जिनगानी, केतना कहानी से गुजरल।

कबो मिठ त कबो, तित से गुजरल
कबो गीत त कबो, संगीत से गुजरल
कबो हार त कबो, जीत से गुजरल
कबो पट त कबो, चित से गुजरल
कबो नाफा त कबो, घानी से गुजरल
एगो जिनगानी केतना कहानी से गुजरल।

कबो गर्व त कबो, पछताके गुजरल
कबो शांत त कबो, छटपटाके गुजरल
कबो निकलल त कबो, अटकाके गुजरल
कबो सीधा कबो उल्टा, लटकाके गुजरल
कबो ईमानदारी कबो, बेईमानी से गुजरल
एगो जिनगानी केतना कहानी से गुजरल।

लेखक: मिथिलेश मैकश

ध्यान दीं: ई भोजपुरी कविता हैलो भोजपुरी पत्रिका से लिहल गइल बा

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