देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल भोजपुरी कविता मुंह कहवां बोरीं

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कह ए भोजपुरिया भईया
हीक भ भोजन कहां झोरी
कमाईल त मिलत नईखे
कह मुंह कहवां बोरीं?

कतना दिन ले आस लगवनी
कुछ कटि जाई दिन मोर
तुहीं कह हाथ कहवां जोरीं
कह मुंह कहवां बोरीं?

आशा भईल निराशा के दिन
फिर भी गाईं रात दिन हम
सुशासन के लोर
कह मुंह कहवां बोरीं?

दलित के चूरा से
महादलित के दही से
रोजे सरकार भरेली बोरी
कह मुंह कहवां बोरी?

मिलल ना संकराति के दिन
देखेके हमरा तिलकुट
मन के लाई प बईठल
रोईले हम फुट फुट
अब हम जाईं कवना खोरी
कह मुंह कहवां बोरी?

भसन के गुर नियम के चबेनी
राजनीति के पाग में पगाईल
संस्कार के स्वाद त अब
लाते खुब धंगाईल
अब केकर कपार फोरीं
कह मुंह कहवां बोरीं?

देवेन्द्र कुमार राय
(ग्राम+पो०-जमुआँव, पीरो, भोजपुर)

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