विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी हॉट कॉफ़ी

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टेसन पर जब हम जुमनी तs आपन रुमाल निकाल के माथे से सरीक के गर्दन तक गईल पसीना पोछनि।टेसन के भीड़ भाड़ देखी के लागल की आज तs ट्रेन में लातो रखे के जगह ना मिली।

हम इ शहर से अनजान रहनी आ इ शहर हमरा से।हाला की इ शहर से मेल-मिलाप करे के कोशिश हम पहिले कइले रही।लेकिन इ शहर नवकी कनीआ नीयन हमसे लजागइल। आ हमके अपने आप दुआरी से बाहर आवे के पड़ल यानी कि शहर छोड़े के पड़ल। लेकिन हम हार ना मान के फेरूसे इहा धमक आइल रही।

इहे चइत आपन जवानी में आवत रहे, आ हम अपना मंजिल के तलास मे एहर से ओहर माकत रही। काहेकि अब एकदम से कुछ काम कइल जरूरी रहे।

हs देखी काम से इयाद पड़ल की काम कइल एकदम सब ख़ातिरि जरूरी बा। लेकिन हमरा नीयन बेफिकरा कहि ना मिली, काहे की हम अपना मन के सुनीला। आ जे मन के सुनी कहियो सफल ना हो पाइ। का हनs की मन सही आ गलत दुनु राह बतावे ला। लेकिन हमर मन हमके बहुते भटकावेला।

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हमरा त लागेला की भटकाव जरूरी हs जिनगी ला। अगर आदमी भटकी ना त सही राह कइसे पाइ।

अभी हम इहे सोचत आपन पीठि बैग प्लेटफार्म पर बनल यात्री बैठक कुर्सी पर रखत रही कि हमके केहू टोक देलस।

“यहां मैं बैठी हूं”… आप बैग कहि और रखिये….ज

हम पीछे घूमनी तs इ मधुर आवाज एगो हमारे ऊमिर के लइकी यानी कि कन्या के रहे।हम उनके अवाक होके ताकत रह गइनी पहिलका बतिया दोबारा बोलली।

“यहां मैं बैठी हूं”.. आप बैग कहि और रखिये…..

हम त ठहरनी गवइ जवान, आ इ शहर में अइला ज्यादा दिन थोडे भइल रहे। लेकिन हम हिंदी जानत त रही ऊहे हिंदी जवन लोग कहेला की भोजपुरिया हिंदी हs।

विवेक सिंह जी के साथे चन्दन जी
विवेक सिंह जी के साथे चन्दन जी

“” ह..ह ठीक है रख देते है… आपको का लगा कि इ जगहिया खाली आपका है।… हम कोइ आन्हर थोड़ी है जो नही देखते ई खाली जगह था तो हम अपना बैग रख दिये। हम का समझे कि बिक्टोरिया की महारानी बैठी है इहा पर। हमू टप से बोलनी की ओकरा इ ना लागे की हम गांव से बानी ऊहो बिहार से।

हमरा बात पे रिसीआइली ना आपन खूबसूरत हंसी बिखेर देली।

जइसे सावन के भरल जवानी में चाहूं ओर बधार से लेके बहार तक मन लोभावन हरियरी छइले रहे ला।ऊहे हरियरी के देख बदरा बेरी-बेरी आसमान के घेरे ला। आसमान अपना सजल-धजल भूमि के लुभावे ख़ातिरि सात रंग के इन्द्रधनुही के मुस्कान जब छोड़े तब गजब के कलावल इ पूरा ब्रम्हांड के जिअत जीव मे होला।

अइसने कलावल हमरी मन के अंधेर कोठरी में भइल, जब हंसली तs।

पता ना हम समझ ना पइनी की काहे हंसल लेकिन हs उनका मुख़ पर इ हँसी बहुते सुघर लागत रहे।

हम आपन आँखिन के समझाइ की तोहनी दुनु हमके आज इ शहर में बेभरम कर देबअ जा। आज हम कहि के ना रहब काहे की केतनो मनसे आँखिन के मनाइ लेकिन ऊहे नूर के देखअ सन जवन हमरी बात पर हंसली रहली।

कुछ देर तक तs हम खड़े रहनी लेकिन जब जगह मिलल तs ऊहे लइकी के बगल में मिलल। एगो नॉवेल पढ़त रही. साइद कवनो विदेसी राइटर के लिखल रहे।

अभी ट्रेन आवे में देरी रहे तs हमू आपन मोबाइल निकाल के व्हाट्सप्प के मैसेज चेक करें लगनी।

फिरो हमरा कान में एगो आवाज आइल,। स्कियूज मि…..

हम बगल में देखनी तs ऊहे लइकी सइद हमरे से कुछ कहल चाहत रही।

हम अपने लहजा में बोलनी। ह बोली का बात….. एतने सुनत हमरा से पूछ देली।

आप यूपी से हो या बिहार से…….

हम त पहिले सहम गइनी की इ काहे पूछत बाड़ी। फिर सोचनी की कहि कवनो काम होखी, हम सकोचते बोलनी।

हम बिहार से बानी…… ओहि लगले हमू पूछ देनी। “””आप कहा से बानी…?

मैं भी बिहार से ही हूँ…. आपन किताब के पन्ना मोरत बोलली।

जवन ड्रेस पहिले रही. ड्रेस के नाव हमरा मालूम ना रहे। काहे की हम ड्रेस गांव में बहुत कम देखले रही। लेकिन बहुते अच्छा लगता रहे।एकदम साधारण ड्रेस रहे, दुनु भृकुटि के बीच एगो बिंदी लागइले रही। आ पैर में सिल्वर गोल्डन स्लिम सेंडल रहे। आउर ओठ हल्लुक लाल रंग के लाली से रँगले रहली। रंग ना गोर ना सावर एकदम खाटी गेहूंअन रंग रहे ऊनकर।

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आप बिहार मैं कहा से है…..किताब अपना बगल में रखत बोलली।

हम पहिले आपन पता ना बता के, उनसे एगो सवाल पूछ देनी?

“”का आपके भोजपुरी बोले आवेला की ना…….?

हंसी के बोलली। “”आवेला…. पूरा अच्छा से आवेला बाकिर एकदम खाटी ना आवे।काहे की हम बहुत बचपन से शहर में बानी आ खाली घर मे बात होला भोजपुरी में। बाकिर जगह हम हिंदी बोली ले।

हमु हंसी देनी आ बोलनी।
“”अच्छा बात बा कमसे कम आप भोजपुरी त बोलिलें……. हम बिहार में सारण से बानी आप कहा से बानी। हम प्रॉपर पटना से बानी…. फिर मुस्किया के बोलली।

आपके हिंदी पर हमके हंसी आ गइल हs…. हम समझ गइनी की आप अभी नया बानी इ शहर मे। फिर तनी लज्जाके बोलली।
“हंसी ख़ातिरि माफ करब हम मजाक मे ना हंसनी आपके टोन अच्छा लागल हs……।
हमु थोड़ हँसी देनी आs बोलनी।

अरे ऐमे माफी का मांगे के बा आप हंसनी त हमके अच्छा लागल….. आपके शुभनाम का पड़ी।

आपन हाथ आगे बढ़ा के बतवली।

“हाये हम श्वाती सिंह फ्रॉम बिहार…..

हम एक बार उनकर हाथ देखी आ एक बार उनकर मुह। काहे की आज तक हम कवनो अंजान लइकी से बात तक ना कइले रही।आ इ त हाथ मिलावे के बात रहे।

फिरो श्वाती के इसारा पर हमू आपन हाथ आगे बढ़ा देनी आ बोलनी।

“हाये हम देव रंजन…हमू बिहार से….।

इ बात पे फिरो हंसली ऊहो जोड़ से। प्लेटफॉर्म पर खाड़ आ बइठल सब लोग हमनी दुनु आदमी के देखत रहे। ऊहो सब बिना पपनी गिड़इले, सइद सब इहे सोचत होइ।की इ सब पागल बा भा अभी नया नया प्रेमी जोड़ी बा। जवन अपना आपके इ भीड़ में दर्शावत बा, आ आपन मधुर मेल के सबूत देता।

खेर अब हमरा कहा भीड़ भा लोग के लाज रहे। इ प्रदेश हs इहा सब बात माइने नइखे राखत हमू श्वाती के साथे मे हँसी देनी। तर्किबन हमनी दुनु के बात करत ढाई घन्टा हो गइल।आ ट्रेन अब तीन घन्टा लेट हो गइल रहे।

अब श्वाती कवनो अजनबी ना रह गइल रहली हमरा ला। ऊनका बात में एगो अपनापन रहे। एगो घिचाव रहे? बात करे के जवन सलीका रहे कवनो शाइद मनोभाव जाने वाला डॉक्टर ही कर सकत बा। हम का कहल चाहत बानी हम का कहब पहिले ही जान जास। हमरा त लगबे ना करे इ अभी महज ढाई घन्टा के मुलाकात हs। हमके तs लागे की हमनी के बहुत पुरान परिचय बा।

हम श्वाती के कॉफी पिये के इन्वाइट कइनी मना ना कइली आ हमनी दुनु प्लेटफॉर्म पर बनल एगो कॉफी सेंटर में चल गइनी जा।

जब हम दु कप कॉफी ऑडर कइनी त हमके कॉफी देवे वाल चिहा के देखलस जइसे की हम ओकर अगिला जनम के कुछ बिगड़ले होखी। हमरा अजीब सा लागल?

श्वाती आपन एजुकेशन के बात आ ओकरा बाद का करे के चाहत बाड़ी सब हमके बता देली।

उनका बात से पता ना हमके काहे सुकून मिलत रहे। हम अपना आपके इ शहर में जवन अकेल महसूस करत रही अकेलपन हमरा से कोसो दूर जा चुकल रहे इ ढाई घन्टा में।

जब कॉफी देवे वाला हमनी के कॉफी देलस त ओकरा चेहरा पर अजीब सा घबराहट रहे। जब कॉफ़ी मिलल त हम बिल पे कर के श्वाती से बोलनी। की चलअ ओहि प्लेटफॉर्म पर चलल जाव ऐजा अजीब सा लागत बा आ कॉपी ओहिजा पीअल जाइ।

हम दुनु हाथ मे दुनु आदमी के कप लेके श्वाती के पीछे पीछे ओहि जगह पर आ गइनी जहा पहिले रही जा।

हम एगो कॉफी के कप जब श्वाती के पकड़े के कहनी तs हमके केहू पीछे से जोड़ से खिचलस आ बोलल।

तुम पागल हो क्या… दिखने में तो नही लगता कि तुम पागल हो…… मै तर्किबन तीन घण्टे से तुम्हे आपस मे बोलते और बाते करते देख रहा हूं मैं ही नही ये प्लेटफॉर्म के सभी लोग तुम्हारी ही बाते कर रहे है कि ये पागल है क्या ……?

पहले तो नही लगा लेकिना अब यकीन हो गया कि तुम पागल हो जब तुम एक एक्सट्रा कॉपी लाये और जो है नही उसे दे रहे हो ………..कहा खोये हो जनाब और ये एक्स्ट्रा हॉट कॉफी किसके लिए ?

हम एकदम से शुन हो गइनी। इ का होता? हमरा से पांच या छे साल बड़ जेंटलमैन रहले…..? हमके ंकर बात एकदम साफ सुनाइ देव, लेकिन हम काठ के हो गइल रही। सब चेतना काम करत रहे लेकिन हम शून्य में घुमत रही। ऊहो कब अउर शून्य हो गइनी जब दुनु हाथ में कॉफी लेके श्वाती के ओर पलटनी………?

तब हम अपना आप के खाली अपना पास पइनी। ना कवनो लइकी रहे, ना कहि उनकर बैग आ ना कवनो विदेशी राइटर के किताब…….? खाली रहे तs का रहे, कॉफी के कप ऊहो हॉट कॉफी से भरल कागज़ के कप…….? जवन हम अभी अभी लाइल रही।

सब केहू के आँखिन हमरे पर रहे।आ हमरा आँखिन में ऊहे मधुर मुस्कि भरत श्वाती के मुखड़ा। जवन की अब श्वेत होत रहे……?।।

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