रवि सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी कन्यादान के अधिकार

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पूरा बीस साल बाद मंजू आपन बेटी शिवानी के लेके गाँवे आईल रहली।घर के कोना-कोना से उनकर ईयाद जुडल रहे। आँगना,दुवार,तुलसी-चौड़ा,ईनार,निम के गाछ सब मंजू के बीस बरिष पहिले के जिनगी ईयाद दिवावत रहे। केतना सुंदर हसत-खेलत परिवार रहे,सब केहू आँख में बसा के राखे नवकी दुलहिन के बाकिर उ रात उनका खातिर कवनो अमावस के रात से कम ना रहे,उनका हसत-खेलत जिनगी के आपन कालिख से तोप दिेहलस।उ तूफान भरल रात आ अचानक उठल छाती के दर्द उनका पति के हमेशा खातिर उनका से छीन लिहलस आ इहाँ से उनकर जिनगी आपन दोसरका रूप देखावे लागल।

काल्ह ले जे दुल्हिन आँखि के पुतरी नियन रहली अब बस एगो अभागिन विधवा होके रह गईल रहली। घर के लोग अंधविश्वास में बेसी भरोसा करत रहे लोग।सब केहू के ब्यवहार बदले लागल रहे।अब त निमन काम पर जाए के बेरा लोग उनकर मुँह भी देखल ना चाहे। हर काम मे शुभ-अशुभ देखाए लागल। जवन घर मे उ आँखि के पुतरी बन के रहल रहली आज ओहि घर में उनकर जगह एगो अभागिन के हो गईल रहे। एगो त पति के गईला के दुःख आ दोसर घर के लोग के ई बदलल ब्यवहार अब उनका से बर्दाश्त ना भईल। उ अपना दुधमुंही बेटी के गोदी में लेके घर से दूर एगो अनजान शहर में निकल गईली जहाँ उ ई सब भेदभाव से अलग जी सकस।शहर जाके एगो अस्पताल में नर्स के नॉकरी करे लगली आ जवन मिले ओहिसे आपन आ आपना दुधमुंही बेटी के पेट जियावे लगली।कबो-कबो एगो चिट्ठी घर से आ जाव समाचार खातिर बस। मंजू मेहनत-मजदूरी क के आज उहे दुधमुंही बेटी के डॉ. बना लिहले रहली आ ओकरे बियाह खातिर आज फेर एकबार उ आपन ओहि घर मे आईल रहली।

घर में अबहुओं कुछ बदलल ना रहे। आजो लोग के सोंच उहे रहे आ ससुरजी साफ-साफ कह दिहले रहनी की बेटी के बियाह में कन्या दान चाचा-चाची करी काहे से कन्यादान सुहागन दंपत्ति ही करेला। ससुरजी के बात सुन के मंजु दुःखी त बहुते भईली बाकिर बेटी के भविष्य के साथे उ कवनो जोखिम ना लेवे के चाहत रहली आ एहीसे ससुरजी के बात उ स्वीकार क लिहली।जवन बेटी के छाती से लगाके पोसली,आपन खून-पसीना के कमाई से पढवली-लिखवली आज जब ओकर बियाह होता त कन्यादान के हक भी छीना गईल रहे।मंजू त आपना मन के समझा लेस आ आपन करम के दोष मान के चुप रह जास। बाकिर शिवानी एगो पढ़ल-लिखल समझदार लईकी रहली उ कईसे मान लेती ई सब अंधविश्वास। कुछ क त ना सकत रहली तबहुँ मन मे ठान लिहले रहली,
“चाहे कुछउ हो जाव हमार कन्यादान होइ त माई करीहें ना त केहू ना” बाकिर उनका कवनो रास्ता ना बुझाय,आखिर ई संभव कईसे हो पाई।

घर मे खुशी के माहौल रहे, लोग-रिश्तेदार आवे लागल ,गीत-मंगल होखे लागल बाकिर मंजू कवनो ना कवनो बहाने ए सब से दूरी बनाके राखस।शिवानी सब बुझत रहली माई के ई बदलल ब्यबहार के कारण बाकिर उहो मजबूर रहली। तय तिथिनुसार बारात आईल, सब केहु बारात के स्वागत में रहे आ शिवानी के मन में त कुछ आउरी चलत रहे।बियाह के बिधि-बिधान होखे लागल। जब कन्यादान के बारी आईल पंडिजी कहनी,

“अब लईकी के माता -पिता आगा आ जाओ, कन्यादान के बेरा हो गईल बा”

पहिलही से तय बात के आधार पर चाचा-चाची आगा आईल लोग बाकिर ओहि समय शिवानी साफ इनकार क दिहली आ कहली “आज कन्यादान केहू करि त उ हमार माई ओकरा अलावा ई अधिकार केहू के नईखे…..”

सब केहू आग पीछा देखे लागल,बाराती से घाराती सगरो शोर हो गईल, लोग समझावे के कोशिश करे लागल।शिवानी कहलहम रउरा लोगिन के बात माने खातिर तइयार बानी बाकिर पहिले हमरा आपन सवाल के जवाब चाही,

“जब स्त्री के ना रहला पर पुरुष लोटा बांध के कन्यादान क सकता त स्त्री काहे ना??? जब जन्म देवे के बेरा, पालन-पोषण के बेरा, पढ़ावे-लिखावे के बेरा उ अभागिन नइखे त कन्यादान के बेरा
अभागिन कइसे हो गईल???

“का ई सब पुरुषप्रधान समाज के जबरदस्ती थोपल कानून ना ह ???”

शिवानी के बात सुनी के सब केहू के मुरी नीचा हो गईल, केहू के लगे उनकर सवाल के जवाब ना रहे। तब गाँव के मुखिया जी आग़ा बढ़के कहनि “बात त ई बेटी के सोलह आना साँच बा,दुनिया कहाँ से कहाँ चल गईल आ हमनी आजो अंधविश्वास के बोझा उठवले घुमतानी सन,हमहुँ ए बेटी के साथे बानी आ इनका बात के समर्थन करतानी।”

माई त माई होले उ अपना बच्चा खातिर अभागिन कईसे हो सकेले???…

सब केहू शिवानी के बात मान गईल आ ससुरजी के भी आपना गलती के एहसास हो गईल उ

अपना साथे आपन पतोह मंजू के लिया अइनी आ हाथ जोड़ के माफी मांगे लगनी “हमरा के माफ के द ताहरां संगे बहुत अन्याय भईल बा ए अंधविश्वास के चलते बाकिर आज से हम वचन दे तानी अब कवनो भेद-भाव ना होखे देहेम”

मंजू आग़ा बढ़ के बाबूजी के हाथ ध लिहली राजी-खुशी शिवानी के कन्यादान सम्पन्न भईल आ ओकरे संगे एगो अन्धविश्वास के भी अंत भईल।

रवि सिंह,
सिसईं-सिवान

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