कन्हैया प्रसाद रसिक जी के लिखल भोजपुरी कहानी संस्कार

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जब बिरिधा आश्रम से सनेस मिलल कि बाबूजी के दुनो किडनी खराब हो गइल बा आ तोहार भाई अनुराग से कवनो संपर्क नइखे होखत । जदि तु चहतारू कि बाबूजी के जान बाचो त अपना से इलाज कराव लोग, बिरिधा आश्रम एतना बड़ इलाज खातिर समर्थ नइखे। तब बिरिधा आश्रम से अपना बाबूजी के निकाल के कुसुम कार में बइठा के अपना पति राजन से पसगयबत में बात करे लगली। बाबूजी के घरे ना ले जाके अस्पताल में भरती करा देहल जाव आ हम आपन एगो किडनी बाबूजी दान करे के सोचत बानी राउर का आदेश बा ।

कुसुम अपना पति के विचार जानल चहली, कुछ देर तक उनकर पति के कठेया मार देलस आ लोर बहावे लगलन। एह से लोर ना बहावत रहले कि उनकर पत्नी किडनी दे दीहें त आगे उनका तकलीफ हो सकेला । बाकी अपना पत्नी के कर्तव्यपरायणता पर खुशी से आँसू बहावत रहलें । कुसुम के भी एके लइकी रहे आ घर के लोग एगो लइका खातिर कुसुम पर दबाव डालत रहे। कुसुम दोबारा देह से भइली त उनकर ससुर एगो जान पहचान के डाक्टर से जाँच करवलन त लइकिये रहे, फिर का डाक्टर से बतिया के साफ करा देलन । इ बात के ओह घरी कुसुम के पता ना चलल रहे आ ना उनका पति के हीं, उ समझली कि कवनो क गलती हो गइल होई एहीसे नुकसान हो गइल ।

यह बात के पता तब चलल जब एक दिन उ अपना माई के मुह से उनका करम पो कोसत सुनले, उ कहत रही कि “बुझाता इहो निसतानिये होई का दो।” फिर बाबूजी से पुछलन त बाबूजी साफ साफ बता देलन । ओह घरी राजन के समझ में ठीक लागल रहे उहो चाहत रहले कि एगो लइका चाहता। बाकि कुसुम से कुछ ना बतवले रहलन। आज उहे घटना इयाद आ गइल रहे। हमनी के समाज में लोग लइका खातिर हाय हाय करता आ लइकी के हीन समझता लोग आज उहे कुसुम अपना बाबूजी खातिर हीन से महीन हो गइल बाड़ी । कुसुम के बाबूजी के साथे उ बात ना रहे उ बेटा बेटी में दु भाव ना करत रहन। फिर भी बेटा खातिर त पेयार उपरवछिये जाला ।

कुसुम के अपना भाई अनुराग पो नाज रहे, उ अगरा के कहत रही कि उनकर भाई विदेश में रहेला । कुसुम के ससुरा चल गइला के बाद बाबूजी के बड़हन घर भकसावन लागत रहे, उनकर माई त पहिलहीं गुजर गइल रही आ जले बाबूजी के हाथ गोड़ चलत रहे तले घर हीं में एगो नोकर राख के रहत रहन ।

कुसुम के बाबूजी के नाम बिसेसर रहे आ गाँव में उनकर एगो जिगरी दोस्त नारयण रहन।दुनो जाना एके संगे काम करत रहे लोग आ एके दिन रिटायर भइल रहन जा । नारायण के लइका बेरोजगार रहे घर के खेती बारी देखत रहे बाकि सेवा के नाम पो जहरे उगिलत रहे। एक दिन उ कहलस कि बाबूजी तु काहें नइख बिरिधा आश्रम चल जात तोहारा के निमन से देख भाल करीहेंसन।आ तोहार मनवो लागल करी, इहाँ दिन भर टरटरइला से त जान बाची ।

नारायण इ बात बिसेसर से कहलें त बिसेसरो बिरिधा आश्रम जाये के तइयार हो गइलें। बिसेसर आपन दोस्ती के फरज निभावल ना भुलइले अपना साथे साथे नारायण के भी खरचा खुदे उठावस। पिनिसिन के पइसा आ जवन खेती के नगदी करत रहन उ सभ आश्रम में दे देत रहन साथे साथे केहु के कवनो परेशानी होत रहे त बढ़ चढ़के लागल रहत रहन । एह सुभाव से बिसेसर के सभे आश्रम में चाहत रहे । कुछ दिन पहिले नारायण, नारायण लोक में चल गइलन त बिसेसर अकेले पड़ गइलन, आपन संघतीया बिनु उदास रहे लगलन आ उनका अकेलपन काटे धावे लागल ।

एही बिच उनका एकदिन बोखार आइल आ पेशाब बंद हो गइल डाक्टर घून पेशाब जाँच कइलस त उनका पेशाब में इंफेक्सन रहे , खून में किरिटिन बढ़ गइल रहे एह से किडनी काम कइल बंद क देले रहे ।

कुसुम किडनी दान करे खातिर सभ टेस्ट करा लेली सभ सही निकलल त खुसी के ठेकाना ना रहे, उ अपना सवांग से कहली “लागता भगवान हमनी के सुन लेलन अब बाबूजी के कुछ ना होई । अपरेशन के दिन तय हो गइल आ अपरेशन करेवाला डाक्टर परितोष रहले। डाक्टर परितोष लंदन रिटर्न रहन आ उनकर बहुत चलती रहे।बाकि अभी तक परितोष के पता ना रहे कि उ केकर अपरेशन करे जात बाड़न।

अपरेशन सफल हो गइल करीब एक सप्ताह तक दुनो बाप बेटी एगो स्पेशल कमरा लेके लोग रहे। डाक्टर साहेब रोज देखे आवस आ बड़ा प्रेम से बतियावस । बाबूजी के अइसन बुझात रहे कि उ अपने लइका से बतियावत रहले।

दुनो बाप बेटी के अस्पताल से छुट्टी मिल गइल रहे बस बिल चुकता करे के रहे, राजन (कुसुम के पति) जब काउंटर पर गइलन त उनका अचरज के ठेकाना ना रहे कहें से कि बिल केहु भर देले रहे । उ कैशियर से पुछले कि बिल के भरल हि त कैशियर के जबाब रहे आप डाक्टर परितोष से जाकर पुछिये। राजन डाक्टर परितोष के केबिन में जा के पुछले सर हमार बिल के भरल हा। त डाक्टर बोलले कि केहु आपन फर्ज अदा कइले बा बिल भर के। राजन कुछ समझ ना पवलन फिर से पुछलन , बाकि के ?

डाक्टर परितोष कहले कि चलीं बाबूजी भीरी हम उहँवे बताइब। दुनो जाना बाबूजी भीरी गइलें डाक्टर सहेब के देख के बाबूजी हाथ जोर लेलन आ कहलन ” रउआ भगवान बानी ।” डाक्टर साहेब बाबूजी के पैर छुवलन आ पुछलन कि “बाबूजी हमरा के पहचानतानी ?” बाबूजी ना में मुड़ी हिला देलन।

तब डाक्टर कहलहम परितोष हईं राउर लइका अनुराग के इसकुल में पढ़त रहीं हम उनका से एक कलास पीछे रहीं आ जवन भी उनकर छोड़ल किताब कापी आ टिउसन के नोट रहे रउआ हमरा के दे देत रहीं। हम एक बे रउआ से पुछले रहीं कि कितबिया के आधा पइसा लेलीं त राउर जबाब रहे कि ” विद्या के दान कइल जाला बेंचल ना जाला ।”ओह घरी हमरा घर के हालत अइसन ना रहे कि हम किताब किन के पढ़ लीं ओह घरी रउआ हमरा खातिर भगवान बन के सहायता कइले रहनी। बारह पास क के हम डाक्टरी के इंतिहान देनी त पास हो गइनी, छात्रवृति मिले लागल आ छोट मोट खरचा लइकन के टिउसन पढ़ाके चलावत रहीं आज हम एह स्थिति में रउआ कृपा से बानी। पहिलहीं दिन जब रउआ के देखनीं त पहचान गइल रहीं ।

आज हमार मोका आइल बा राउर सेवा करे के । हमहीं राउर अपरेशन कइले बानी आ हमहीं सभ खरचा उठाइब हाथ जोरके बिनती बा रउआ मना मत करब । बाबूजी के आँख लोरा गइल आ परितोष के अंकवारी में भर लेलन बाबूजी आ कुसुम के छुट्टी हो गइल आ अपना घरे लोग चल गइल।

एक दिन सुतला राते फोन आइल त कुसुम हड़बड़ाके उठली रात में दु बजे के बेरा रहे, उनका हैलो करे के पहिलहीं आवाज आइल दीदी हम अनुराग बोलतोनी , “हँ बोल कह का कहतार” कुसुम कोहना के बोलली ।

अनुराग समझ गइलन की दीदी गुस्सा में बाड़ी बाकि उनका दुख ना लागल। आपन गलती के उनका अनुमान त रहले रहे फिर भी कहलन दीदी हमार मोबाइल भुला गइल रहे एह से हमरा केहुसे संपर्क ना भइल, बाबूजी कइसन बाड़न बड़ा मुश्किल से त तोहार नंबर उपरजले बानी। कुसुम बात करेके तरीका से समझ गइली कि अनुराग झूठ नइखन बोलत फिर सउँसे कहानी अनुराग के सुनवली। अनुराग फोने पो भोकार पारके रोवे लगलन हमरा बाबूजी पो अतना संकट परल आ हमरा तनिको खबर ना मिलल। फिर कहलन दीदी हम परिवार साथे अगिला महीना आइब ।

आज खूब चहल पहल रहे अनुराग के घरे आ काहें ना होई बेटा विदेश से आइल बा आ बाबूजी के दोसरका जनम भइल बा दुगना खुशी बा चहल पहल त रहबे करी । अनुराग सतनारायन भगवान के काथा सुनके संउसे गाँव के भोज खिअवलन आ रात में भजन कीर्तन के मंडली आइल रहे, एही बिच अनुराग माइक लेके सभके से चुप रहे के गोहार लगवले। सभे चुपा गइल त अनुराग कहलन आजकल हमनी के विज्ञान पो जाता भरोसा क के आपन जिनिगी के अनमोल पल छोड़ दे तनी जा आज चिठ्ठी पतरी लाखात रहित त एको महीना में समाचार मिलिये जाइत , हमार मोबाइल भुला गइला से छव महीना से हमरा कवनो अता पता ना मिलत रहे के कइसन बा कुछ ना पता चलत रहे एही बिचे बाबूजी पो अतना बढ़ संकट परल । केहु सुनी त इहे नु कही कि बिसेसरो बाबा के लइका नालायक हो गइल ।

हम बितल समय के फेरसे ना ला सकेनी बाकी आगे अइसन संकट हमरा जियते ना आई, हम अपना साथे बाबूजी के भी विदेश ले जाइब, आ एह में बाबूजी रावा मना मत करब , बाबूजी के तरफ इसारा क के अनुराग कहले। सबहर गाँव ताली पीटके अनुराग के बारे में कानाफूसी करे लागल , “बेटा होखे त अनुराग जइसन”

आ हँ बाबूजी के गाँव से बहुत लगाव रहे उहाँके लइकन से बहुत पेयार करत रहीं त इ आपन घर में लइकन के पढ़े खातिर पुस्तकालय खोल देतानी जवन लइका पढ़ल चाहीं हमार सहयोग ओकरा खातिर रही । परितोष भी जलसा में शामिल रहले उ अनुराग के बात बिचे में काटके कहले , हमहुँ एह नेक काम में अनुराग के साथ देत बानी आ एह गाँव के केहु के तकलीफ होई त हम उनकर इलाज मय दवाई मुफुत में करब। पुरा गाँव खुशी से नाचे लागल आ अनुराग , परितोष आ कुसुम दीदी के जयकार होखे लागल । इ दृश्य देखके बाबूजी के आँख में खुशी के लोर ढ़रके लागल । राजन के अपना पत्नी पर गर्व रहे आ आगे से निरनय कइले बेटा बेटी में फरक ना करीहें एगो बेटी बड़ी उहे हमार धनसुत रहीहें ।

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