अँजोर : कक्षा 7 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक

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जब मातृभाषा के दीया- बाती जरेला त राह में ज्ञान के अँजोर फइल जाला। जिनगी में सब भषन के महत्त्व बा बाकिर मातृभाषा लड़िकन के विकास में सबसे निर्णायक भूमिका निभावेला। एकर उपेक्षा कइला से लड़िकन के व्यक्तित्व के विकास में बाधा पड़ी। भोजपुरी बड़हन क्षेत्र के लोगन के मातृभाषा हिया एकरा के बोले वाला देश-विदेश सब जगे बाड़े। एह में लड़िकन के भाषिक कौशल के विकास पर ध्यान दिहल गइल बा। पाठ चयन में एह बात के ध्यान राखल गइल बा कि लड़िका हरेक पाठ से भाषा के कवनो-ना-कवनो कौशल से परिचित होखो आ पहिले से सीखल भाषिक क्षमता विकसित आ मारक क्षमता वाला बनो।

अँजोर : कक्षा 7 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक
अँजोर : कक्षा 7 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक

किताब के शुरुआत रामेश्वर सिन्हा पीयूष के कविता ‘हमहूँ खेले जाइब’ से होता। एह कविता में अइसन रवानगी बा कि सहजे जबान पर चढ़ जाता। एह में शब्द-युग्म के संगे-संगे खेल-कूद के नया-नया शब्दन से लड़िका परिचित होइहें। शब्द कवना तरे अपना परंपरागत अर्थ छोड़ के नया अर्थ स्थापित क लेला-ई बात एह कविता में प्रयुक्त गाँज आ अइसन आउर शब्दन से बुझाता।एह में बाल मनोविज्ञान के नीमन पकड़ बा। आशारानी लाल के लिखल ‘ हमार रहे’ भोजपुरी के प्रतिनिधि रेखाचित्र ह। एह से लड़िका रेखाचित्र विधा से परिचित होइहें। ई समाज में अबले उपेक्षित वर्ग के प्रति सहानुभूति जगावता। एह में लड़िका शब्दन के पर्यायवाची सीखीहेंएकांकी ‘छाता’ (जगदीश सहाय ‘असीम’) कई तरह के भाषिक क्षमता से परिचित करावतानाटकीय भंगिमा से भरल एह एकांकी में लड़िका विराम चिन्ह के प्रभाव आ उपयोगिता आउर बॉडी लैंग्वेज के महत्त्व के जानकारी भी प्राप्त करीहें।

सरहुल आदिवासी लोग के महान पर्व हवे। एह अवसर पर गावल जायेवाला लोकगीत के भोजपुरी अनुवाद दिहल गइल बा। एह से लड़िका आदिवासी संस्कृति से परिचित होइहें। एह में लड़िका विशेषण बनावे के सीखीहें। आजादी के लड़ाई में भोजपुरिया क्षेत्र के महान योगदान रहल बा। ‘बहुरिया के ललकार’ निबंध अइसने गौरवगाथा कह रहल बा। मेहरारू लोग के नेतृत्वकारी भूमिको पर एह में प्रकाश पड़ल बा। एह में लड़िकन के दोसरा भाषा के शब्दन के संगे साहचर्य के सीख मिलता। घाघ- भडुरी के कहाउत आजो लोग का जबान पर बा। कृषि-कार्य आ मौसम परिवर्तन से संबंधित ई कहाउत भोजपुरी भाषा के प्रभावी क्षमता आ वक्रता के ज्ञान करावता। एह से परंपरो के संरक्षण होता प्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी के कहानी ‘डाइन’ समाज में फइलल अंधविश्वास आ मेहरारू के प्रति होखेवाला भेदभाव के खिलाफ भाव जगावता। बंगला में लिखल एह कहानी के साँच भोजपुरियो जिनगी के साँच बा। एह से लड़िका संवाद- कला आ अनुवाद-कला से भी परिचित होइहें। भोजपुरिया क्षेत्र में संत साहित्य आजो जनता के कंठहार बनल बा। संत कबीर आ संत टेकमन राम के पद जिनगी के सुख-दुःख से जुड़ल बा। एह से छात्र प्रतीक आ सांकेतिक भाषा सीखे कावर बढ़िहें। बिस्मिल्लाह खाँ भोजपुरिया गौरव रहीं। एह से छात्र संगीत के कई गो नया-नया शब्दन से परिचित होइहें। बिस्मिल्लाह खाँ के जीवन-यात्रा प्रेरणा से भरल बा। उहाँ के शून्य से शिखर पर पहुँचनी।

भोजपुरी लोक साहित्य बड़ा समृद्ध रहल बा। ‘नीमिया के डाड़ि’ नाँव के लोकगीत क्रिया आ आउर भाषिक क्षमता सीखावता। संगही हृदय के भीतर छू लेवे के लोक गीत के शक्ति बतावताभोजपुरी कवि रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’ के कविता ‘बिलाई भगतिन’ हास्य से भरल बा। एह में लड़िका के मुहावरा, प्रत्यय, लिंग से परिचित करावल गइल बा। हँसी-ठिठोली में कहलो बात प्रभावी हो सकता-भाषा के एह क्षमता से ई कविता परिचित करावतिया । ‘जंगल में मंगल’ (भगवती प्रसाद द्विवेदी) कहानी पर्यावरण पर आधारित बिया। ई कहानी गाछ बचावे के भाव भरतिया। एह में छात्र वाक्य संरचना विशेष रूप से सीखिहें।

किताब के आखिर में रोचक सामग्री दिहल बा। एह से परीक्षा में प्रश्न ना पूछल जाईपरंपरागत खेल गीत, बुझउवल, लोरी बड़ा मजदार बा। एह में दूगो कविता आ दू गो कहानी दिहल बारामलखन सिंह के कविता ‘आम’ आ लक्ष्मीकांत सिंह के कविता ‘चाँद’ में लड़िकन के मनोभावन के अभिव्यक्ति भइल बा। भोजपुरी के प्रसिद्ध कहानीकार गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’ के कहानी ‘डेढ़ लाख टकिया सिपाही’ आ विजय कुमार तिवारी के कहानी ‘भभूत’ समाज के सही राह देखावता।

पाठ से अभ्यास बनावे में एह बात के ध्यान राखल गइल बा कि छात्र में सोच के क्षमता विकसित होखे। पाठ के संगे-संगे छात्र के परिवेश से जुड़ल प्रश्न भी कइल गइल बा। व्याकरण के प्रश्न पाठ से पूछल गइल बा। एकरा के रोचक बनावल गइल बा। कुछ अइसनों प्रश्न पूछल गइल बा, जवन छात्र के कल्पना शक्ति के बढ़ावता।

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रउवा खातिर 
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
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