कन्हैया प्रसाद तिवारी जी के लिखल बुझात नइखे हमरा कि का लिखीं

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क से लिखीं कइसन हाल बा जमाना के
ख से लिखीं खुशी के पैमाना के
ग से लिखीं गवनई प्यार के
घ से लिखीं घर में स्वागत बा यार के
च से चमकत रहे सभके चेहरा
छ से छछने ना कबहुँ छुछबेहरा
ज से जंग ना होखे जमाना में
झ से झंझट न हो मनमाना में
ट से टन टन बाजे स्कूल के घंटी
ठ से ठोकर ना खाये बबलु आ बंटी
ड से डभकत रहे घर में पतीला में चावल
ढ़ से ढ़रके ढ़र ढ़र लोर खुशी में गावल
त से तरकश तीरे से खाली रहे
थ से थप्पड़ के जगह ताली रहे
द से दामन पो कवनो दाग ना हो
ध से धरती पो कबहुँ खूनी फाग ना हो
न से नमन में सिर झुकावल जाये
रसिक से दिल के बात बतावल जाये
प से पसीना बहे खून ना
फ से फूल छिडकीं नून ना
ब से बात कभी से आघात ना हो
भ से भरल खलिहान में बरसात ना हो
म से माँ के ममता परवान चढ़े
य से यारी में सभके सम्मान बढ़े
र से रस चूवे लोगन के बोली में
व से वक्त कटे हँसी ठिठोली में
श से शरबती लगे सुन्दरी के काया
स से सुमन बरसायें प्रभु के माया
ह से हल हो जाये सारे जीवन का प्रश्न
पथ प्रकाशित हो मनाये जोश में जश्न

कन्हैया प्रसाद तिवारी रसिक

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