संजय चतुर्वेदी जी के लिखल चली सभे गऊवां के ओर

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चली सभे गऊवां के ओर ,
जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे ।

बैलन के घरी- घंट जहवाँ सोहावन,
गईया आ बाछा-बाछी,बड़ी मन-भावन,
हर्ष – ख़ुशी से सराबोर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे…. ।१।

भोर–भिनसार जहवाँ देवता पुजाला ,
मंदिर के घरी-घंट दूर-दूर जाला,
प्रेम के सनेश चहुओर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे … ।२।

साँझ –भिनसार जहवाँ, चिरइन के मेला,
बांस – नीम , बरगद पे काव- कींच होला,
सुग्गा, मैना,कौआ, चकोर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे….. ।३।

सुरुज उगे से पहिले, जहां नींद भागे,
पुरइन तलबवा में, बड़ी नीक लागे,
पिहके पपीहा, बोले मोर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे….. ।४।

सरग से सुघर जहवाँ, घरवा –मकान हो,
गम-गम गमकेला, पुआ –पकवान ह ,
परब के धूम, बड़ी जोर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे…. ।५।

बुढा-बूढी, युवती आ, नन्हकी लयिकिया,
सबके दुलार एहिजा, सबके इज्ज़तिया।
ममता भरल पोर –पोर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे… ।६।

होलरी के रंग उड़े, ईद के सेवैया,
दियरी दिवाली के भा, रोज़ा रखवैया,
तीज-त्योहरवा बेजोड़, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे…… ।७।

गऊवां में सभे केहू, मिलके रहेला,
घटा–नफा, सुख-दुःख, सब ही सहेला,
काल चाहे, जतना, कठोर जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे

चली सभे गऊवां के ओर, जहवाँ गली-गली हीरा – मोती बरसे…. ।८।

संजय चतुर्वेदी
उद्घोषक आकाशवाणी, सासाराम

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