गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो: पहली भोजपुरी फिल्म

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भोजपुरी की पहली फिल्म जिसने क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के लिए कीर्तिमान स्थापित किया, वह थी- गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो…जिसको बनाने की पेशकश राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी।

पहली भोजपुरी फिल्म जिसने पहली स्क्रीनिंग में ही तहलका मचा दिया था और जिसकी पहली स्क्रीनिंग सदाकत आश्रम में की गई थी और देश के प्रथम राष्ट्रपति ने इसे देखा था…जानते हैं कौन थी वो फिल्म? वो थी “गंगा मैया तोहे पियरी चढइबो।” इस फिल्म ने पहली भोजपुरी फिल्म का गौरव पाने के साथ ही धमाका मचा दिया था।

First Bhojpuri film Ganga maiya tohe piyari chadhaibo
First Bhojpuri film Ganga maiya tohe piyari chadhaibo

विधवा पुनर्विवाह पर आधारित यह फिल्म वर्ष 1963 में प्रदर्शित की गई थी जिसका निर्देशन कुंदन कुमार ने किया था और कुमकुम, असीम कुमार और नजीर हुसैन ने मुख्य किरदार निभाया था। इसमें चित्रगुप्त ने संगीत दिया था और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी ने इसके लिए गाना गाया था गीतकार शैलेंद्र ने अपने गीतों से इसे सजाया था।

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बिहार की आञ्चलिक भाषा से फिल्म निर्माण की अवधारणा सबसे पहले अभिनेत्री नरगिस की माँ जद्दनवाई की थी । मूलतः वाराणसी की रहने वाली जद्दनवाई ने इस संदर्भ में वाराणसी के ही प्रख्यात हिन्दी फिल्मों के खलनायक कन्हैयालाल से सर्म्पर्क किया । श्री लाल ने अपने मित्र और हिन्दी फिल्मों के चरित्र अभिनेता व लेखक नाजीर हुसैन को इसके लिए प्रेरित किया ।

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जद्दनवाई की बात मन में रखकर नाजीर हुसैन ने भोजपुरी में एक अच्छी पटकथा तैयार की । पटकथा इतनी सशक्त और दमदार बनी की अनेक हिन्दी फिल्मकारों ने इसे हिन्दी में भी फिल्माने की पेशकश की थी । लाख प्रलोभन देने के बावजूद नाजीर हुसैन से वह पटकथा प्रख्यात फिल्मकार विमल राय भी हासिल नहीं कर सके।

ये वही जद्दनवाई थीं, जो दरभंगा राज परिवार के संगीत परम्परा के दौरान दरभंगा में कई वर्षो तक रही थीं । उस समय बेबी फातिमा रसीद के नाम से जानी जानेवाली नरगिस मात्र दस वर्ष की थी ।
जब पटकथा तैयार हो गयी तो नाजिर हुसैन ने वर्ष1950 में एक फंक्शन के दौरान इस विषय पर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से बात की जो बिहार के ही रहने वाले थे। राष्ट्रपति ने भी इस बात की सराहना कि और कहा कि भोजपुरी में फिल्म बनाइए। उसके बाद फिल्म की पटकथा नाजिर ने विमल रॉय को दी, लेकिन बात नहीं बनी।

अब सबसे बड़ी समस्या पैसे की आन पड़ी। एक दिन उनकी मुलाकात आरा के व्यवसायी विश्वनाथ प्रसाद शाहाबाद से हो गई जिनके पास अपना स्टूडियो और सिनेमा हॉल था। शाहाबाद के रूप में उन्हें फाइनेंसर मिल गया और फिल्म का मुहूर्त शॉट पटना के शहीद स्मारक में हुआ और फिल्म का निर्माण शुरू हो गया। फिल्म के ज्यादातर हिस्से बिहटा में फिल्माए गए थे। पटना के गोलघर और आरा के रेलवे स्टेशन में भी दृश्य फिल्माए गए।
एक वर्षकी अवधि में नाजीर हुसैन की उस पटकथा पर निर्मल पिक्चर्स के बैनर तले भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो’ फिल्म बनकर तैयार हो गई । अच्छे परिणाम से भी आगे निकलने वाली यह मात्र एक फिल्म भर नहीं थी बल्कि भोजपुरी क्षेत्र की एक जबरदस्त पहचान बनी । फिल्म वर्ष1962 के फरवरी महीने में सबसे पहले वाराणसी के प्रकाश टाकीज में प्रदर्शित हुई।

अपने मधुर और कर्णप्रिय गीत-संगीत और सशक्त पटकथा पर आधारित कलाकारों के अभिनय की बदौलत पाँच लाख की लागत से बनी इस फिल्म ने नौ लाख का व्यवसाय कर प्रादेशिक भाषा की फिल्म के लिए कीर्तिमान स्थापित किया । वहीं हिन्दी फिल्म उद्योग को चुनौती भी दे डाली । फिल्म में भोजपुरी भाषी क्षेत्रों की कठिनाइयों और सामाजिक परिवेश को बड़ी मार्मिकता से उजागर किया गया था।

यह फिल्म जब पटना के वीणा टाकीज में 22 फरवरी 1963 को प्रदर्शित हुई तो सड़कों पर बैलगाड़ियों की लम्बी कतारें लग गई थीं । टिकट नहीं मिलने पर लोग पटना में रात बिता कर दूसरे दिन फिल्म देख कर ही गाँव लौटते थे । सपरिवार फिल्म देखना तब किसी उत्सव सा होता था ।
इस फिल्म का संगीत और गीत हर गली- मुहल्ले और गाँव के चौराहों पर गूंजने लगा । इस फिल्म ने कलकत्ता में भी सिल्वर जुबली मनाई थी । इसी कारण इस फिल्म के कई नवोदित कलाकार मुंबई फिल्म उद्योग के स्थापित कलाकार हो गए । जिस में रामायण तिवारी, भगवान सिन्हा, मदन सिन्हा, कोइलवर के गीतकार एसएस बिहारी, छायाकार द्रोणाचार्य आदि प्रमुख थे । यह वही एसएच बिहारी थे, जिन्हे सुर स्रमाज्ञी लता मंगेश्वर ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था ।

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