गोधना पऽ तारकेश्वर राय जी के लिखल आलेख

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दिया दियारी के दुसरका दिन गोधना के परब मनावेला भोजपुरीया समाज । अपना जीनिगी के खुशहाल आ घर परिवार के उन्नति ख़ातिर पलायन एगो जरूरी तत्व बन के उभरल बा गाँव मे रहेवाला गवई के सामने । जीनिगी के बढ़त जरूरत आ मूलभूत सुविधा क अभाव येह आग में घिव क काम करता ।

छठ प लिखल अमरेन्द्र जी के एगो आलेख

आदमी जब अपना जर से टुटेला तब दुःख त होइबे करेला लेकिन धीरे धीरे येके आपन नीयति मान के आपन रोजी रोजगार में भुला जाला लेकिन आपन परब तेवहार के कहाँ भुला पावेला ? येह मोकन प परिजन क याद सतावेला आ उ अपना जर पर वापस लवटेला अगर ना लौट पावे त, उ जहां रहेला ओहिजे ई परबन के मनावे में लाग जाला । लेकिन गोधना त अईसन परब ह जे के अकेला ना मनावल जा सकेला इ त सबहर मिल के मनावे वाला परब ह, एकरा ख़ातिर चहीअन फुवा, बहिन जेकर प्रायः अभाव लउकेला शहरी जीनिगी में ।

गोधना
गोधना

गोधना त एगो त्योहार ह , जवना मे बहिन अपना भाई भतीजा के लमहर उमिर खातिर आ यम से रक्षा खातिर श्रापे ली जा, अईसन भोजपुरिया इलाका में कवनो गांव ना होखी जहवाँ एह परम्परा के आजुओ निबाहल ना जात होखे, गते गते ई परब बिलाये के कगार प बा ।

गोधना कुटे के दिन रेंगनी के कांट जोहाला, गोबर से चौकोर आकार बनावल जाला ओह में यम-यमिन के प्रतीक आकृति बनावल जाला |

यम जीनिगी के खत्म करेवाला देवता हउवन त सबसे अधिका खुनुस उनके प |

उनका आ उनका मेहरारू के गोबर से एक दूसरा की ओर पीठ क के सुतल आकृति बनावल जाला । हमनीके सनातन धरम में मर्द मेहरारू के एक साथे एह तरह रहे के मनाही बा | बाकी एहिजा मामिला त खुनुस के बा त सभे बिधि बिधान उलट पलट दियाई |

झाँवा इंटा सबसे बरियार मानल जाला, उहे बीच में रखाला | आ कुल्हिये मेहरारू मिलके मूसर से उ झाँवाँ वाला इंटा के मार मार के फोर दिहें , यम–यमिन के काम खत्म हो जाई |

अब जेकरा पर खुनुस निकाले के रहे उहे बिला जाइ त खुनुस ठंढा त होइए न जाइ | अब बाकी का बचल !?? पछतावा न !!! फजीरे जवन भाई भतीजा के श्राप देले रहली जा ओह करनी के पशचताप ख़ातिर रेंगनी के कांट से अपना जीभी में गड़ा के आ कहेली जा -जवना जिभिया से गारी दिहनी , ओह जिभिया में कांट गड़ो |

रवि सिंह जी के लिखल भोजपुरी कहानी कन्यादान के अधिकार

एकरा बाद कुल्हिये मेहरारू आपन भाई-भतीजा के आशीस देके आ बज्जरी खिया के ओहन लोग के शरीर बज्जर जइसन बनो एकर बिनती करे ली जा |

येह समय जवन लोककंठ गावेला :
“कवन भइया चलले अहेरिया, कवन बहिनी देली आसीस
जिअसु हो मोरा भइया, जीअ भइया लाख बरिस

बिलाये के कगार प गोधना के तनिको कमजोर ना समझल जाव, यम के भी बिलवा देवे के शक्ति साधना से भरल ह इ परब |

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