भोजपुरी लघुकथा जड़ कटल गाछ

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी लघुकथा जड़ कटल गाछ, जवन की भोजपुरी लघुकथा संग्रह एकमुश्त समाधान से लिहल गइल बा।

उनका गांव छोड़ला बीसो बरिस से अधिक हो गइल बा। अब फेरसे कवनो गांव में बसे के उमेदो नड़खे, काहे कि तीनू भाई नौकरी-पेशा बाड़े, जहां जवना शहर में नौकरी करेले, ओहीजा के वासी हो गइल बाड़े।

लइकन के परवरिस आ शिक्षा-दीक्षा ओहीजा, शहरी माहौल में भइल बा। एहसे उनका गांवे लवटे के सवाले नइखे उठत।

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तबो बनवारी का अपना खानदानी मकान आ घर-बार का जमीन से गहिरा लगाव बा, जे समय बीतला के साथे-साथे, कम होखे का बदले, बढ़ते जाता। उनका एह बात के बहुत खुशी बा कि उनको पुस्तैनी जायदाद बा। छुट्टिअन में जब कबो गांव के आपन टूटल बीरान मकान में, घड़ी-दू घड़ी खातिर जा के बइठेले, त उनकर मन हरिअर हो जाला, जइसे सुखार में बरिसन पहिले ठूंठ भइल गाछ पर, बरसात के पहिलका फुहार का बाद, पत्ती फूट आइल होखे। घर-गांव से जुड़ल लइकाईं आ जवानी के सभ इयाद एक-एक क के ताजा हो जाला।

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भोजपुरी लघुकथा जड़ कटल गाछ

मोहल्ला का कई लोगन के बनवारी का मकान पर नजर बा। उदमी, पहलाद, सुल्तान आदि कई बार उनका से कह चुकल बाड़े-

“एकरा के अब बेंच दऽ। तहरा एकरा के रखके का करे के बा ! खाली पड़ल बा, पड़ोसी दबवले जा रहल बाड़े। देखभाल का अभाव में अइसहूं खराब हो जाई।”

उनका बाकी बातन से सहमत भइलो, पर बनवारी मकान बेंचेवाली बात से सहमत ना हो पावत रहले। हं, दूनू छोट भाई गिरधारी आ हरद्वारी सहमत रहले। कहत रहले- “जब उदमी तीन हजार दे रहल बाड़े, त बेंच देबे के चाहीं। कवन खान गाड़ल बा एह में। हमनी में से त केहू के इहां रहे खातिर आवे के बा ना।”

बनवारी जानते बाड़े, खान ना सही, उनकर नाल त गड़ल बा। बाकिर ई बात उनका दूनू छोट भाइयन का समझ में नइखे आ सकत, काहे कि बनवारी के नौकरी लागते छुटपने में गांव छोड़ देले रहले आ उनके साथे रह के, शहर में पढ़ले-बढ़ले। पूरा शहरी हो गइल बाड़े, बाकिर बनवारी का मन के आधा हिस्सा में आजो गांव बसल बा।

काल्हे हरद्वारी के चिट्ठी मिलल, जवना के पढ़ के बनवारी के सांस नीचे-के-नीचे आ ऊपर-के-ऊपरे रह गइल। लिखल रहे- “गांववाला मकान आ जमीन उदमी के बेंच देले बानी। पइसा ले के कच्चा लिखा-पढ़ी कर देले बानी, पक्का रजिस्टंी गर्मी का छुट्टी में रउरा अइला पर करवा लेब।”

बनवारी के हालत जड़ कटल फेड़ नियर हो गइल रहे। उनका लागल कि हिचकोला खा रहल बाड़े आ कबो धड़ाम से गिर सकत बाड़े।

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