कइसन गांव-गिरांव हो गइल

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कइसन गांव-गिरांव हो गइल
अजबे चलन सुभाव हो गइल।

गांव शहर में बदले लागल
सिमटे लागल खेतिहर धरती
जाने कहां बिलाये लागल
जंगल अउरी हरियर परती
कपट-दलाली में जमीन के
आसमान में भाव हो गइल।

सूखल पइनी पोखर नदिया
जामल ओह में घास खरौली
पानी गइल पताले अब तऽ
जिनगी जीयल भइल कठौरी
देखते-देखत कहां अलोपित
अब माझी के नाव हो गइल।

भइल कमेरा लोग, गांव से
निकले लागल भरल जवानी
भीतर भरल जहर स्वारथ के
ऊपरे-ऊपर प्रेम जुबानी
इनका उनका दुअरा से अब
जाने कहां अलाव हो गइल।

ढेंकी-जांता हर-पालो से
छूट गइल अब सबकर नाता
कीन-बेसह के नीमन-चिक्कन
सभे रेडिमेडे खाता
गइया-बैला, खूंटा-पगहा का
दुअरे से अलगाव हो गइल।

सांवा, चीना, कोदो ,मड़ुआ
लाटा, तिसवट, फरुही, सतुआ
माड़-भात, रसियाव आ हलुआ
गाबा के दिन सिरनी, भरुआ
खरिहानी के रसवड़-पछवड़
सबसे बड़ा दुराव हो गइल।

कइसन गांव-गिरांव हो गइल
अजबे चलन सुभाव हो गइल।

लेखक: डाॅ पवन कुमार

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