कवि ह्रदयानन्द विशाल जी के लिखल ठाठा के हँसीं बेमारी भाग जाई

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कवि ह्रदयानन्द विशाल जी के भोजपुरी कविता लिखल ठाठा के हँसीं बेमारी भाग जाई

घटना एगो देखनी जब
जात रहनी कमाये
एगो छाँटल कंजूस
गइलन काशी मे नहाये

गंगा जी के दार्ह पर
जइसे माथा टेकलन
भारी भइल चिंता जब
पांडा लो के देखलन

गुँणा भाग करे लगलन
बइठल एके दरी
थोर चाहें ढेर कुछ
देबहीं के परी

भर कोस फारका जा के
नहाये लगलन झार के
तले पांडा बन के अइलन
भगवान जी बिचार के

नहा के कंजूस भाई जब
पांडा के ओर तकले
सोचे लगले की ई बाबा
कैने से टपकले

पांडा जी कहनी की
अछत फुल धरअ
चलअ जजमान
कुछ दान पुन करअ

कहले कंजूस की हम
कइ बेर नहइनी
कइसे दे दीं आजु ले
जब देबे ना कइनी

बाबा कहनी बोहनी क द
कुछऊ त चाहीं
बिना दान लेहले हम
जायेब त नाहीं

कंजूस कहले जाईं बाबा
घाट कबले सेइब
जान हम दे देब बाकी
दान नाही देइब

पांडा कहलें हेतना
अपमान नाही झेलेम
दान नाही देबअ त
जान ताहार लेलेम

पाँच पइसा देब कहलन
मुवला के डरे
इहाँ ना देब उहो देब
जब अइबअ हमरा घरे

झुँठ बोल के घरे भगले
सोचले बिपति पराइल
लइका कहलस पांडा केहू
दुवारवा पर बा आइल

भारी फिकिर सतावे लागल
धइलें हाथ कापारे
हे भगवान ई कइसन पांडा
थोपलअ हमरा लिलार

खबर भेजवले घरे नइखन
जाईं कहियो आयेब
बाबा कहनी साँझियो ले
हम भेंटे क के जायेब

भइल बहाना झुँठहुँ घर मे
रोवन पिटन पर गइले
लइका जा के कहलस बाबा
बाबुजी त हमार मर गइले

बाबा कहनी दुखद बा घटना
अब राम राम गोहराईं
हमरो फरज बनता इनके
फुँकिये के तब जाई

पइसा लेइ कंजूस निकलले
दे के कहले अब जा हो
पाँच पइसा के चक्कर मे
मुवाइये के मनबअ का हो

ह्रदयानन्द विशाल कहेले
खूब कमा के धइल जाला
बाँटला से धन नाही घटेला
दान पुन कुछु कइल जाला

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