कवि ह्रदयानन्द विशाल जी लिखल चार पांच गो भोजपुरी कविता

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भोजपुरी कविता बदला अइसे लिहल जाला

कहली मेहरारु मरद से की
हमके शहर घुमा दिहीं
लालसा बाटे की दिल्ली वाला
कुतुम मिनार देखा दिहीं

मरद कहलन की घरनी हऊ
घरहीं मे तु रहअ ना
कवना चिझु के कमी बाटे
हमरा से तु कहअ ना

मलकिन कहली कुछु ना चाहीं
कुतुम मिनार खाली देखबि हम
नाही त आजुवे नइहर जाइब
ससुरा फेर ना निरेखबि हम

मरद सोचले की मेहरारु हटे
बाहर कइसे ले जाईं अब
ठनले बिया मानते नइखे
कवन बुद्धी लगाईं अब

ओही बेरा लेके गइलन घुमावे
भितरे भिरत इनका खलत रहे
कुछे दुरी पर राणा सिंह के
दु गो चिमनी चलत रहे

भुलि गइलन की मउगी हमार
हमरो ले ढेर हुँसियार ह
चिमनी देखा कहलें की देखअ
हइहे नु कुतुम मिनार ह

एतना बतिया सुनलसि त
मेहरारु से रहल गइल ना
कहली की हँ जी दिल्ली आवे मे
तनिको देरी भइल ना

कुतुम मिनार काहें धुआँ देता
गादहा दउरतारसन
धुरा उड़ता झिल्ली महकता
रेजा लउकतारसन

राणा सिंह के चिमनिया हउवे
हमरा के भुलियावअ जनि
सब बखेड़ा बुझिले हमसे
बेसी घाट बतियावअ जनि

मरद कहले की हम घुमवनी
हमहीं जानकारी दिहनी ह
हम कहतानी कुतुम मिनार ह त
तु काहें कहतारु चिमनी ह

गुना भाग मेहरारु कइलसि
मरद ह खिसियाइये जाई
कहली की देखलिहनी घरे चलअ
तहरो आज बुझाइये जाई

साँझि भइलमरद कहलन
आजु फरवठा बनावअ ना
बड़ा जोर से भुख लागल बा
गरमे गरम खियावअ ना

खिस के बरले मउगी पका के
मकई के रोटी परोस देहलस
जान बुझ के घिव के जगहा
रेंड़ी के तेल घोंस देहलस

मकई के रोटी देखते मरद
कइलन पुछा ताछी
मउगी कहलस चुप चाप खालीं
ढेर जनि पुछीं आछीं

बाति बढ़ल त मउगी कहलस
तहरे नु सब अधिकई
हम कहतानी फरवठा ह त
तुँ काहें कहतारअ मकई ह

ह्रदयानन्द विशाल जी कहल
केहु के कम ना आँकल जाला
आन के पइ नीहारे से पहिले
अपनो भितर झाँकल जाला

भोजपुरी कविता संजोग बिगड़ेला त बाउरे बितेला

चावँरा मे चारवाह एगो दुपहर मे
भँइस चरावत रहे
पेन्हले रहे बिदेशी घड़ी
सभके टायेम बतावत रहे

केहु आवे त टयेमवे पुछे ई
बोल बोल के थाकि गइल
बिखिन माति गइल चरवाहवा
भितर से पुरा पाकि गइल

तवने बेरा एगो राही आ के
ओही से टायेम पुछे लागल
टायेम खराब बा एतने कहि के
चरवाहवा माहुर कुँचे लागल

फेरु दोहरउनी रहिया कहलस
हमके बाड़अ भुलियावत हो
पेन्हले बाड़अ बिदेशी घड़ी त
काहें नइखअ बतावत हो

थेथर बुझाता बटोहिये रहे
एतना ज्यादा भुक देहलस
बरल खिस चरवाहवा उठि के
धइले लाठी हुँक देहलस

उठि के बटोहिया पुछे लागल
कइसन भारा उतरलअ ह
हमखाली टायेम पुछनी ह
काहें तु हमके मरलअ ह

कहलस चरवाहवा हम का करीं
तहरे कमइलका भँजल बा
एक्के लाठी मे बुझ ना ल की
एही बेरा एक बजल बा

टायेम बतावे के ओकर तरीका
बुझते बटोहिया चुपा गइल
तीसर एगो राही ई सब देखि के
पुछे खातिर उहाँ आ गइल

दुसरा से लागल तिसरका पुछे
ए भाई काहें हुँकइलअ ह
ढेर चरवाह खिसिआहे होलें
का करे लगे गइलअ ह

दुसर कहलें अबहीं बाटे गनीमत
ई लठिये के बले नु कहीत
एक घंटा पहिले पुछले रहतीं
त ई बारअ बजवले रहीत

ह्रदया विशाल जी कहेलें पहिले
होनी अनहोनी के भाप लीं
तनियो मनी गड़बड़ बुझाव त
धिरे से राहता नाप लीं

ई चुटकुला
ब्यास विजेन्द्र गिरी जी
के कहल
एकरा के हम कविता के
रुप देले बानी

भोजपुरी कविता शेर के मिल गइलन सवा शेर

ई चुटकुला ब्यास विजेन्द्र गिरी जी के कहल ह एकरा के हम कविता के रुप देले बानी

हमरे किहाँ के पंडित जी रहनी
निमने त उहाँ के नाम रहे
हर मलमाश मे सोहागरा जा के
काथा बाँचल काम रहे

नाव लिखा के बाबा के डायरी मे
सइ रुपिया अगते दिया जाव
बाबा जाईं सोहागरा सभके
नाव से काथा बाँचा जाव

उहें के गाँव के बजार मे एगो
जबर ठग बैपारी रहे
बाकी लगा दी त बात से ना दी
सबके ई जानकारी रहे

बाबा से कहलस काथा बाँच दीं
लवटते पइसा मिल जाई
लोग कहल की सोंच लीं बाबा
एकरा से केहु ना ले पाई

तब बाबा बैपरिया से कहनी
पहिले पइसवा चाहीं हो
ई कुल्ह काम उथारे ना होला
मंगनी हम बाँचिले नाही हो

ठागवा कहलस सुनी ना बाबा
हमरा पर बिस्वास करीं
एह बेरा तनी हाथ खाली बा
तनी बुझे के प्रयास करीं

बाबा के रुपिया नाहिये मिलल
काथा बाँचि के आ गइनी
पइसा मंगनी त ठागवा कहलस
आवते रउवा अकुता गइनी

ओही बेरा से हुरपेटले बानी
नइखे भरोसा हमरा बाती प
काथा आइसन काथा ना कहनी
आवते चढ़ि गइनी छाती प

कइ बजार असहीं दउरवलस
बाबा अशलियत जान लेहनी
ठागवा से रुपिया लेके मानबि
बबो हियारा मे ठान लेहनी

जाते कहनी पइसवा दअ हो
माथा ठनकल बैपारी के
धिरे धिरे उहाँ भीड़ हो गइल
लोग जउरियाइल बजारी के

ठागवा कहलस सइ रुपिया के
गेंहुवे ना हइ जोखवा लीं
बाबा सोचनी की देते बा त
काहें ना गेंहुवे उठा लीं

चले के बेरा ठागवा कहलस
हमरो बतिया सुनि के जाईं
महा मुरख होई उहे लोगवा
रउरा से काथा बँचवाई

बाबा कहनी की देले बाड़अ त
भितर खलबली मचले होई
महा मुरख त नु कहाई जे
काथवा ताहार बँचले होई

ह्रदयानन्द विशाल जी कहलें
एतना कइल जरुरी रहल
लांगा के संगे लांगा बनल
बाबा के मजबुरी रहल

भोजपुरी कविता ई घटना हमरे साथे घटल रहे

बिस बरिस पहिले के बाति ह
बन्हनी आठजाम के साटा
बाद मे हमरा नाफा भइल
बाकी पहिले लागल घाटा

पोता भइला के खुशी मे
आठजाम करावत रहे
दु बजि गइल सजिंदा लगले
भुखि के मारे सब ढहे

बगली ओहदिन खाली रहल
हमहुँ रहनी छुँछे
जगिकरता एतना कंजुस की
पनियो पिये के ना पुछे

हारि पाछि के हमहीं कहनी
जल्दी भोजन कराईं
देरी होखे त एक बाल्टी तले
रसवो घोर के पियाईं

दउरल जगिकरता घर मे गइल
ओनियो से दउरल आवता
खुशी के हमरा ठेकान ना रहे
तले साटा के पुर्जा देखावता

कहलस की हम पकिया हईं
हमरा केहु से भइ नइखे
रुपिया पर ई साटा बन्हाइल
खाना खियावे के तइ नइखे

ओहि बेरा एगो होटल वाला
सुनते हमके बोलवलन
कुल्ही जाना के हीत के तरे
भर पेट खाना खियवलन

कहलन की रतियो मे आ के
हमरे किहाँ पावे के बा
अउरी कवनो कमी होखे त
आपन जानि के बतावे के बा

बेरा आइल बिसर्जन के बाद
सोहर मंगल गावे लगनी
आधा घंटा ले खेपनी फेर
भितरे भितर गरियावे लगनी

खास पटिदार जगिकर्ता के
एगो माहटर साहेब ई देखनी
परची के साथे पइसा भेज के
आपन पासा तब फेकनी

लिखले रहनी की दस रुपिया के
सइ सइ रुपिया बताईं
अबे जगिकरता ताव मे आई
बन मति करबि गाईं

सइ सइ रुपिया माहटर जी के
नाव से लगनी हम बोले
एतना सुनते बुढवा दउरल
जेबी लागल आपन खोले

माहटर जी के निचा देखवलस
भर मुठा रुपिया ले के
हमसे बिसा कवन बा कहि के
लागल पनसइया फेंके

लोग तमाशा सब देखे लागल
एने दुनू बगली भरि गइल
जेतना गजन भइल रहल
सगरो बाति बिसरि गइल

होटल मे गइनी पइसा देबे त
माहटर जी माना क दिहनी
माहटर जी आपना पटिदार के
पोल खोल के ध दिहनी

होटल वाला बतवलन तब हम
माहटर जी के पहिचान लेहली
भाव देखि के आँखि भरल त
गोड़वे दउरि के छान लेहनी

ह्रदयानन्द विशाल जी कहल
केहु केहु अइसन भेंटा जाला
हिया के भितरी बसि जाला
चरचो से मन आघा जाला

भोजपुरी कविता लरिकाईं के घटना हमरे घर के ह

धइले रहे बचपन मे हमके
गोली खेले के नाशा
सब लइकन के जेबी देखि के
झेलत रहनी निराशा

जेबी बनाईं कवना चिझ के
जोहत रहनी मछिया के
बाउजी हमार लियाइल रहलें
नाया एगो कुर्ता सिया के

नाया कुर्ता के नाया बगली
जेबी लायेक लउकि गइल
ओही के जेबी बनावे खातिर
मनवे हमार छउकि गइल

ठेहा पर ध के गाँड़ासी से
कुर्ता के बगली कटनी
डेहरी मे कुर्ता डाल दिहनी
बनाइये के जेबी तब हटनी

बाउजी के हितई जाये के रहे
कुर्ता खुब जोहाइल
रेंगनी खुँटी बर बिछावना
चारु ओरी ओहाइल

दोसरे दिने गेंहु के संगही
कुर्ता बहरी आइल
बाउजी देखते खुश हो गइलें
ओही बेरा धोवाइल

धोती कुर्ता पेन्ह के बाउजी
मामा किहाँ चलले
माथा उनकर घुम गइल जब
बगली मे हाथ डलले

खिसिन माहुर कुँचे लगलन
नावका कुर्ता के मोहे
काँचहीं एगो कोइन काटि के
लगलन हमरा के जोहे

आजु बबुववा पक्का पिटाई
सभकर मन उदास रहे
घुम घुम के जेबी देखावला से
हमरा कहाँ सवाँस रहे

हार पाछ के बाउजी हमार
उठलन खिस के बरले
कहाँ नापाता भइल बाटे
हमरे फेरा मे उ परलें

हारल बानी त जितबे करबि
लइकन से हम बोलनी
बाउजी सोझवे परि गइलन
हम जइसे जेबी खोलनी

लोगवो लागल कहे की ए के
छर धिका के आजु दागअ
हाथ मे कोइन देखते सोचनी
हे मन जल्दी से भागअ

भगनी कइसो जान बचा के
दु दिन अइनी ना घरे
छिछी पाती जोहे लगलन
बाउजी अनहोनी के डरे

कोरा मे जाँति के सभे रोवल
हमहुँ खुब रोवत रहनी
आजु के बाद गलती ना करबि
किरिया खा के कहनी

ह्रदयानन्द विशाल कहेलें
हमरो साथे ई भइले बा
उहे ए भाव के बुझी जे जे
लरिकाईं मे गलती कइले बा

कवि ह्रदयानन्द विशाल जी के लिखल अउरी रचना पढ़े खातिर क्लिक करि

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