माई के ममता आ आशीष ह भोजपुरी! : पप्पू मिश्र ‘पुष्प’

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आज रउवा के सामने बा पप्पू मिश्र ‘पुष्प’ जी के लिखल आलेख माई के ममता आ आशीष ह भोजपुरी! पढ़ीं सभे आ शेयर करीं।

भोजपुरी के पुरोधा, अमर लोकगायक, आपन पूर्वी धुन के जनक, भोजपुरी के रवीन्द्र महेन्द्र मिसिर जी के सादर नमन !

गुलाम देश के आजाद व बेबाक लाल आदरणीय मिसिर जी 16 मार्च 1886 के सारण के कान्ही मिश्रवलिया गांव में जनम ले के धरती के धन्य कइले रहनी। भोजपुरी आ भोजपुरिया लोक-संस्कृति, लोकगीत-संगीत आ लोकगाथा के आज देश-विदेश में डंका बाज रहल बा त ओइमें श्री मिसिर जी के भी अभूतपूर्व कौशल आ अमूल्य योगदान बा…।

भोजपुरी !…केतना निमन लागेला बोल के,लिख के,सुन के,पढ़ के ।…का ठीक कहअ तानी नू ?

पप्पू मिश्र 'पुष्प' जीदेखीं, हम ई नइखी कहत कि अउर दोसर भाषा निमन ना ह। सब भाषा निमन ह। बाकिर महतारी से जुडल चीज सब ले निक लागेला। जइसे सब रिश्ता सुन्दर होला, महत्वपूर्ण होला,आवश्यक होला। बाकिर माई के रिश्ता के कवनो विकल्प बा ? ओहीतरे मातृभाषा से भी रिश्ता बा। काहे कि ओइमें माई के गंध होला। ओइमें माई के ममता होला। ओइमें माई के प्यार होला। ओइमें माई के दुलार होला। ओइमें माई के उम्मीद होला। ओइमें माई के आशीष होला। ओइमें माई के सम्मान होला। आ ओइमें माई के स्वाभिमान होला। उ माई से जुडल बा। उ कबो कटाह ना होई। उ कहियो गैर ना होई।उ कबो घात ना करी। उ हमेशा रउआ नियरा रही। उ रउआ के कबो उदास, निराश आ हताश ना होखे दी। आ अइसन प्रिय आ नियरा रहे वाला ममता के त्याग आसान बा का ? बाकिर अफसोस! एकरा के जबरन आसान क के बहुते लोग एकर ‘विकल्प’ के परिक्रमा कर रहल बा। जेकर आँचर के छाया में संत कवि गोरखनाथ आ कबीरदास से ले के तमाम कवि आ रचनाकार मील के पत्थर गढ़ गइले,ओकरा के अब कुछ फैशनपरस्त लोग चिथड़ा कर रहल बा। जवन भोजपुरी देश के एक से बढ़ के एक ‘ललाट’ आ ‘कंधा’ देहलस उ कमजोर आ कमतर ना हो सकेले। बाकिर कुछ अपने लोग ओकरा के बेबस आ हिन क देले बा।…जेकरा अपना माई के माई कहे में लाज लागअ ता उ भोजपुरी के माई कही…?

भोजपुरी भरल-पूरल आ भरकम भाषा ह। भोजपुरी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद,फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, दिनकर, शिवपूजन सहाय, बेनीपुरी, वीर कुँवर सिंह सहित महेन्द्र मिसिर, भिखारी ठाकुर, महेंद्र शास्त्री, रघुवीर नारायण, मनोरंजन प्रसाद सिन्हा, रामनाथ पाण्डेय, नाजिर हुसैन, चित्रगुप्त, शैलेन्द्र, कुणाल, शारदा सिन्हा, अंजन जी, मैनेजर पाण्डेय, अनिरुद्ध तिवारी ‘संयोग’, अर्जुन पाठक ‘विकल’, मोती बीए, लक्ष्मण शाहाबादी, समीर, जनार्दन सिंह, शैलेश पाण्डेय आदि जइसन लाखों-करोड़ों सपूतन के भाषा आ हिम्मत ह।

ई परेशान हो सकेले बाकिर पराजित ना। काहे कि आज भी साहित्य के पद्य-गद्य आ चंपू विधा में भोजपुरी खूब लिखल-पढ़ल जा ता। भोजपुरी में दैनिक अखबार आ मासिक पत्रिका भी निकल रहल बा। देश आ विदेश में तमाम रचनात्मक काम आ शोध हो रहल बा।

भोजपुरी में समाचार चैनल, न्यूज़ पोर्टल, मनोरंजन चैनल त चलते बा, अब भोजपुरी में विज्ञापन भी आवअ ता। साहित्य के एगो विधा के रूप में सिनेमा के भी मानल जाला। त ओहू में भोजपुरी के झंडा लहरा रहल बा। ई सही बा कि ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ से शुरू भइल भोजपुरी सिनेमा के सफर उतार-चढ़ाव से भरल बा। बाकिर तमाम उलझन, व्यावसायिक सोच आ अश्लील-श्लील दाग-धब्बा के बावजूद भोजपुरी सिनेमा आ गीत-संगीत आज उ मुकाम पर जरूर बा कि ओपर अभिमान कईल जा सके!

ए तरे से देखल जाव त भोजपुरी के दशा-दिशा आ भविष्य निर्णायक मोड़ पर बा। जरूरत बा आम से लेके खास तक के ईमानदार कोशिश, स्वस्थ सोच आ निष्पक्ष निर्णय के। आ जहां कहीं जवन सुधार के गुंजाइश बा ओके ठीक कइला के। आ ई सब सम्पूर्ण हो जाई त उ दिन दिन दूर नइखे जब ‘लजाये’ वाला लोग एकरा से आँख मिलावे में लजायी… !

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